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कोरबा के इस गांव में भीषण गर्मी में भी कूल कूल मौसम, वजह आपको कर देगी हैरान - Korba Cool village Patrapali

कोरबा के पतरापाली ग्राम पंचायत में भीषण गर्मी में भी लोगों को ठंडक महसूस होती है. यहां के लोग ना तो पंखा चलाते हैं, ना ही कूलर का इस्तेमाल करते हैं. शहर के तापमान से इस गांव का तापमान 5-10 डिग्री सेल्सियस कम रहता है.

Korba Cool village Patrapali
कोरबा के पतरापाली गांव में कूल मौसम (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 16, 2024, 10:28 PM IST

कोरबा के इस गांव में कूल-कूल मौसम (ETV Bharat)

कोरबा: छत्तीसगढ़ में इस साल भीषण गर्मी ने लोगों को अहसास कराया कि पर्यावरण के लिए हरे-भरे पेड़ कितने जरूरी हैं. पेड़ों की कटाई से लगातार बढ़ते तापमान ने लोगों के पसीने छुड़ा दिए. कोरबा जैसे औद्योगिक जिले से लेकर रायपुर, मुंगेली और जांजगीर चंपा तक गर्मी का भीषण प्रकोप रहा. बात अगर तापमान की करें तो 45 से 47 डिग्री तक तापमान दर्ज किया गया.

इस गांव में गर्मी में कूल-कूल अहसास: कोरबा जिला का लगभग 70 फीसद विभाग घने वनों से घिरा हुआ है. कई वनांचल गांव हैं, जहां गर्मी का असर तो है, लेकिन यहां के लोग उतने व्याकुल नहीं हैं. जितने कि शहरी परिवेश में रहने वाले लोग हैं. कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत पतरापाली में आदिवासी और स्थानीय लोग भीषण गर्मी में बिना पंखा-कूलर के आरामदायक जीवन जी रहे हैं. दोपहर में पेड़ के नीचे ही सो जाते हैं. तो कभी रात को छत या आंगन में सोकर ठंडी और मीठी हवा के बीच अपना जीवन यापन कर रहे हैं. शहर में जहां तापमान 40 पार है. वहीं, इस गांव में शहर की तुलना में 5 से 10 डिग्री तक तापमान कम है.

नहीं चलाते कूलर-पंखा: ईटीवी भारत की टीम पतरापाली पहुंची. यहां ईटीवी भारत ने पतरापाली के देवन से बातचीत की. देवन ने कहा कि, "गांव में बिजली बहुत कम रहती है. सोलर प्लेट मिला था, लेकिन वह भी खराब है. इसलिए हमारे घर में कूलर नहीं है. हमारे पास पंखा था, लेकिन अब वह भी खराब है. भीषण गर्मी का असर गांव में तो है, लेकिन उतना नहीं है, जितना कि शहरों में होता है. हम जैसे गांव के लोग शहर में बिल्कुल नहीं रह सकते. वहां चारों ओर कंक्रीट के रोड और बड़ी बिल्डिंग है, जिससे सूरज की तपिश ज्यादा ही महसूस होती है. हमारे गांव में चारों तरफ हरे-भरे पेड़ हैं. दोपहर में जब गर्मी ज्यादा लगती है तो हम पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं. यहां हमें ठंडक मिलती है. बिना कूलर और पंखे के भी हमारा जीवन चल रहा है. रात के समय भी कोई खास दिक्कत हमें नहीं होती."

सुबह काम और दोपहर को पेड़ के नीचे आराम: पतरापाली के जेम्स लकड़ा कहते हैं, "गांव आदिवासी बाहुल्य है. चारों ओर घने जंगल हैं. गांव के लोग सुबह खेतों पर काम पर चले जाते हैं, जो भी काम रहता है, सुबह उठकर उसे जल्दी से निपटा लेते हैं. धूप तेज होने पर ज्यादातर लोग पेड़ के नीचे ही खाट लगाकर लेट जाते हैं. गर्मी के मौसम में भी पेड़ के नीचे ही हमें ठंडक मिलती है. रात को भी हम आंगन में ही सोकर आराम से नींद ले लेते हैं. ग्रामीण परिवेश में लोगों के पास पंखे, कूलर का अभाव है. हमारा जीवन ऐसे ही चल रहा है. शहर की तुलना में यहां गर्मी का काफी कम अहसास होता है. इस कारण सिर्फ और सिर्फ घने वन, जंगल, पेड़, पहाड़ और नदी है. हालांकि गर्मी के मौसम में इसका असर भी देखने को मिला है, लेकिन उतना नहीं जितना कि गांव से बाहर निकलने पर महसूस होता है."

5 से 10 डिग्री तक तापमान में गिरावट: मौजूदा परिवेश में कोरबा जिले में भी लगभग हर दिन पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार रहता है. ये पारा 44 से 45 डिग्री तक भी पहुंच चुका था, लेकिन दोपहर के एक से डेढ़ बजे एक्यूवेदर के मुताबिक पतरापाली का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ. लू के थपेड़ों के बजाय पेड़ के नीचे लोग ठंडी हवा में बैठे हुए दिखाई दिए. यह इस बात का उदाहरण है कि घने वन और पेड़ तापमान को कितना नीचे ले आते हैं. लगातार बढ़ती गर्मी को कम करने के लिए पुराने वृक्ष और जंगल ही कारगर होते हैं. खास तौर पर इस वर्ष की गर्मियों ने लोगों को यह एहसास कराया कि घटते वन और बढ़ते औद्योगीकरण में गर्मी ने कितना विकराल रूप ले लिया है, जबकि गांव का जीवन अभी उतना कठिन नहीं है. जितना कि लोग शहरों में गर्मी से परेशान होते हैं.

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इस गांव में गर्मी में कूल-कूल अहसास: कोरबा जिला का लगभग 70 फीसद विभाग घने वनों से घिरा हुआ है. कई वनांचल गांव हैं, जहां गर्मी का असर तो है, लेकिन यहां के लोग उतने व्याकुल नहीं हैं. जितने कि शहरी परिवेश में रहने वाले लोग हैं. कोरबा जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत पतरापाली में आदिवासी और स्थानीय लोग भीषण गर्मी में बिना पंखा-कूलर के आरामदायक जीवन जी रहे हैं. दोपहर में पेड़ के नीचे ही सो जाते हैं. तो कभी रात को छत या आंगन में सोकर ठंडी और मीठी हवा के बीच अपना जीवन यापन कर रहे हैं. शहर में जहां तापमान 40 पार है. वहीं, इस गांव में शहर की तुलना में 5 से 10 डिग्री तक तापमान कम है.

नहीं चलाते कूलर-पंखा: ईटीवी भारत की टीम पतरापाली पहुंची. यहां ईटीवी भारत ने पतरापाली के देवन से बातचीत की. देवन ने कहा कि, "गांव में बिजली बहुत कम रहती है. सोलर प्लेट मिला था, लेकिन वह भी खराब है. इसलिए हमारे घर में कूलर नहीं है. हमारे पास पंखा था, लेकिन अब वह भी खराब है. भीषण गर्मी का असर गांव में तो है, लेकिन उतना नहीं है, जितना कि शहरों में होता है. हम जैसे गांव के लोग शहर में बिल्कुल नहीं रह सकते. वहां चारों ओर कंक्रीट के रोड और बड़ी बिल्डिंग है, जिससे सूरज की तपिश ज्यादा ही महसूस होती है. हमारे गांव में चारों तरफ हरे-भरे पेड़ हैं. दोपहर में जब गर्मी ज्यादा लगती है तो हम पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं. यहां हमें ठंडक मिलती है. बिना कूलर और पंखे के भी हमारा जीवन चल रहा है. रात के समय भी कोई खास दिक्कत हमें नहीं होती."

सुबह काम और दोपहर को पेड़ के नीचे आराम: पतरापाली के जेम्स लकड़ा कहते हैं, "गांव आदिवासी बाहुल्य है. चारों ओर घने जंगल हैं. गांव के लोग सुबह खेतों पर काम पर चले जाते हैं, जो भी काम रहता है, सुबह उठकर उसे जल्दी से निपटा लेते हैं. धूप तेज होने पर ज्यादातर लोग पेड़ के नीचे ही खाट लगाकर लेट जाते हैं. गर्मी के मौसम में भी पेड़ के नीचे ही हमें ठंडक मिलती है. रात को भी हम आंगन में ही सोकर आराम से नींद ले लेते हैं. ग्रामीण परिवेश में लोगों के पास पंखे, कूलर का अभाव है. हमारा जीवन ऐसे ही चल रहा है. शहर की तुलना में यहां गर्मी का काफी कम अहसास होता है. इस कारण सिर्फ और सिर्फ घने वन, जंगल, पेड़, पहाड़ और नदी है. हालांकि गर्मी के मौसम में इसका असर भी देखने को मिला है, लेकिन उतना नहीं जितना कि गांव से बाहर निकलने पर महसूस होता है."

5 से 10 डिग्री तक तापमान में गिरावट: मौजूदा परिवेश में कोरबा जिले में भी लगभग हर दिन पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार रहता है. ये पारा 44 से 45 डिग्री तक भी पहुंच चुका था, लेकिन दोपहर के एक से डेढ़ बजे एक्यूवेदर के मुताबिक पतरापाली का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ. लू के थपेड़ों के बजाय पेड़ के नीचे लोग ठंडी हवा में बैठे हुए दिखाई दिए. यह इस बात का उदाहरण है कि घने वन और पेड़ तापमान को कितना नीचे ले आते हैं. लगातार बढ़ती गर्मी को कम करने के लिए पुराने वृक्ष और जंगल ही कारगर होते हैं. खास तौर पर इस वर्ष की गर्मियों ने लोगों को यह एहसास कराया कि घटते वन और बढ़ते औद्योगीकरण में गर्मी ने कितना विकराल रूप ले लिया है, जबकि गांव का जीवन अभी उतना कठिन नहीं है. जितना कि लोग शहरों में गर्मी से परेशान होते हैं.

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