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बिजली निजीकरण के UPPCL के फैसले को उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग में किया चैलेंज - CONSUMER COUNCIL

उपभोक्ता परिषद ने कहा कि किसी भी प्रकार से पावर कॉरपोरेशन कोई भी आदेश बिजली कंपनियों के लिए जारी नहीं कर सकता

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विद्युत नियामक आयोग. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 6, 2024, 10:51 PM IST

Updated : Dec 7, 2024, 9:54 AM IST

लखनऊ: पूर्वांचल व दक्षिणांचल बिजली निगम को पीपीपी मॉडल के तहत निजी क्षेत्र में दिए जाने के लिए पावर कारपोरेशन के बोर्ड आफ डायरेक्टर की तरफ से विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(4 ) के तहत प्रस्ताव पास कर एनर्जी टास्क फोर्स में अनुमोदन ले लिया गया. इसके विरोध में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने शुक्रवार को विद्युत नियामक आयोग में पावर कारपोरेशन के आदेश को चैलेंज कर दिया. एक विरोध प्रस्ताव दाखिल कर कहा कि पावर कॉरपोरेशन ने जिस धारा का प्रयोग किया है उसे शायद नहीं मालूम कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(4) के तहत ही पावर कारपोरेशन ने मध्यांचल, पूर्वांचल, दक्षिणांचल व पक्षमांचल निगम का गठन किया था. आज भी वह विद्युत वितरण संहिता 2005 की प्रस्तावना में दर्ज है, जो अधिसूचित दस्तावेज है. अब धारा 131 (4) का प्रयोग किया जाना पूरी तरह गलत है क्योंकि अब इस धारा का प्रयोग प्रदेश की चार बिजली कंपनियां तो कर सकती हैं, लेकिन पावर कॉरपोरेशन नहीं कर सकता, क्योंकि अब पावर कॉरपोरेशन का कोई लीगल अस्तित्व नहीं है.


साल 2007 के एक मामले का संदर्भ देते हुए उपभोक्ता परिषद ने अपने प्रस्ताव में इंगित किया कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद की पीठ ने मां विंध्यवासिनी के केस में 2007 में पावर कॉरपोरेशन पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिजली कंपनियां स्वतंत्र हैं. किसी भी प्रकार से पावर कॉरपोरेशन कोई भी आदेश बिजली कंपनियों के लिए जारी नहीं कर सकता. बिजली कंपनियां स्वतंत्र हैं और ऑटोनॉमस हैं. दूसरा सबसे बड़ा सवाल विद्युत नियामक आयोग लगातार अपने टैरिफ आदेश में पावर कारपोरेशन के खर्चे को खारिज कर रहा है, क्योंकि नियामक आयोग को यह पता है कि पावर कॉरपोरेशन की कोई लीगल वैल्यू नहीं है, ऐसे में पावर कॉरपोरेशन ने जो प्रस्ताव पास कराकर एनर्जी टास्क फोर्स में अनुमोदित कराया गया है, वह असंवैधानिक है.

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने अपने विरोध प्रस्ताव में यह भी दाखिल किया कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(4) के तहत पूर्वांचल व दक्षिणांचल पीपीपी मॉडल के तहत प्रस्ताव पास करा सकता है, लेकिन वर्तमान में उसके सामने भी एक विधिक अड़चन है. दोनों बिजली कंपनियों ने वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) वर्ष 2025-26 पहले ही विद्युत नियामक आयोग में 30 नवंबर को दाखिल कर दिया है. इसका मतलब यह है कि दोनों बिजली कंपनियां 2025- 26 तक अपना व्यवसाय करेंगी. विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 19(3) में रिवॉक्ड ऑफ लाइसेंस के लिए दोनों बिजली कंपनियों ने कोई भी एप्लीकेशन आयोग को नहीं दिया है. इससे ये साबित होता है कि बिजली कंपनियों की मंशा पीपीपी मॉडल में देने की वर्तमान परिस्थितियों में नहीं है, लेकिन पावर कॉरपोरेशन को कोई लीगल पावर भी नहीं है वह उच्च प्रबंधन के नाम पर उसका उपयोग कर रहा है, इसलिए विद्युत नियामक आयोग पूरे मामले पर तत्काल हस्तक्षेप करे.

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि अगर नियामक आयोग कोई हस्तक्षेप नहीं करता है तो उस स्थिति में उपभोक्ता परिषद को रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत सक्षम न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लेना पड़ेगा.

लखनऊ: पूर्वांचल व दक्षिणांचल बिजली निगम को पीपीपी मॉडल के तहत निजी क्षेत्र में दिए जाने के लिए पावर कारपोरेशन के बोर्ड आफ डायरेक्टर की तरफ से विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(4 ) के तहत प्रस्ताव पास कर एनर्जी टास्क फोर्स में अनुमोदन ले लिया गया. इसके विरोध में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने शुक्रवार को विद्युत नियामक आयोग में पावर कारपोरेशन के आदेश को चैलेंज कर दिया. एक विरोध प्रस्ताव दाखिल कर कहा कि पावर कॉरपोरेशन ने जिस धारा का प्रयोग किया है उसे शायद नहीं मालूम कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(4) के तहत ही पावर कारपोरेशन ने मध्यांचल, पूर्वांचल, दक्षिणांचल व पक्षमांचल निगम का गठन किया था. आज भी वह विद्युत वितरण संहिता 2005 की प्रस्तावना में दर्ज है, जो अधिसूचित दस्तावेज है. अब धारा 131 (4) का प्रयोग किया जाना पूरी तरह गलत है क्योंकि अब इस धारा का प्रयोग प्रदेश की चार बिजली कंपनियां तो कर सकती हैं, लेकिन पावर कॉरपोरेशन नहीं कर सकता, क्योंकि अब पावर कॉरपोरेशन का कोई लीगल अस्तित्व नहीं है.


साल 2007 के एक मामले का संदर्भ देते हुए उपभोक्ता परिषद ने अपने प्रस्ताव में इंगित किया कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद की पीठ ने मां विंध्यवासिनी के केस में 2007 में पावर कॉरपोरेशन पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिजली कंपनियां स्वतंत्र हैं. किसी भी प्रकार से पावर कॉरपोरेशन कोई भी आदेश बिजली कंपनियों के लिए जारी नहीं कर सकता. बिजली कंपनियां स्वतंत्र हैं और ऑटोनॉमस हैं. दूसरा सबसे बड़ा सवाल विद्युत नियामक आयोग लगातार अपने टैरिफ आदेश में पावर कारपोरेशन के खर्चे को खारिज कर रहा है, क्योंकि नियामक आयोग को यह पता है कि पावर कॉरपोरेशन की कोई लीगल वैल्यू नहीं है, ऐसे में पावर कॉरपोरेशन ने जो प्रस्ताव पास कराकर एनर्जी टास्क फोर्स में अनुमोदित कराया गया है, वह असंवैधानिक है.

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने अपने विरोध प्रस्ताव में यह भी दाखिल किया कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(4) के तहत पूर्वांचल व दक्षिणांचल पीपीपी मॉडल के तहत प्रस्ताव पास करा सकता है, लेकिन वर्तमान में उसके सामने भी एक विधिक अड़चन है. दोनों बिजली कंपनियों ने वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) वर्ष 2025-26 पहले ही विद्युत नियामक आयोग में 30 नवंबर को दाखिल कर दिया है. इसका मतलब यह है कि दोनों बिजली कंपनियां 2025- 26 तक अपना व्यवसाय करेंगी. विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 19(3) में रिवॉक्ड ऑफ लाइसेंस के लिए दोनों बिजली कंपनियों ने कोई भी एप्लीकेशन आयोग को नहीं दिया है. इससे ये साबित होता है कि बिजली कंपनियों की मंशा पीपीपी मॉडल में देने की वर्तमान परिस्थितियों में नहीं है, लेकिन पावर कॉरपोरेशन को कोई लीगल पावर भी नहीं है वह उच्च प्रबंधन के नाम पर उसका उपयोग कर रहा है, इसलिए विद्युत नियामक आयोग पूरे मामले पर तत्काल हस्तक्षेप करे.

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि अगर नियामक आयोग कोई हस्तक्षेप नहीं करता है तो उस स्थिति में उपभोक्ता परिषद को रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत सक्षम न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लेना पड़ेगा.

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Last Updated : Dec 7, 2024, 9:54 AM IST
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