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कबूलनामे को विश्वसनीयता की कसौटी पर खरा होना चाहिए, हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास के फैसले को पलटा - JABALPUR HIGH COURT

जबलपुर हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा को पलटते हुए उसे दोषमुक्त करार दे दिया. अपील लंबित रहने के दौरान एक आरोपी की मौत होने से केस में से उसका नाम हटा दिया गया था.

jabalpur high court
जबलपुर हाईकोर्ट (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 8, 2024, 5:41 PM IST

Updated : Dec 8, 2024, 6:01 PM IST

जबलपुर: जबलपुर हाईकोर्ट ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि कबूलनामा को विश्वसनीयता की कसौटी पर खरा होना चाहिए. जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस देव नारायण मिश्रा की युगलपीठ ने तीन दशक पूर्व जिला न्यायालय द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को पलटते हुए आरोपी को दोषमुक्त कर दिया. अपील के लंबित रहने के दौरान एक आरोपी की मौत होने के कारण उसका नाम हटा दिया गया था.

जिला अदालत ने दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी

हत्या के आरोप में सजा से दंडित किये जाने की सजा के खिलाफ आरोपियों ने साल 1995 में क्रिमिनल अपील दायर की थी. अपील के अनुसार मुन्ना की हत्या के आरोप में पुलिस ने मनोज राठौर व शिवनारायण राठौर को गिरफ्तार किया था. जिला न्यायालय ने प्रकरण की सुनवाई करते हुए दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई थी. अपील के लंबित होने के दौरान मनोज की मृत्यु हो गई थी.

युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर प्रकरण को विवेचना में लिया था. प्रकरण के अनुसार आरोपियों ने गला दबाकर तथा पोकर से हमला कर हत्या की थी. पुलिस द्वारा जब्त पोकर को जांच के लिए डॉक्टर के पास नहीं भेजा गया था. इसके अलावा पोकर की जब्ती का पंचनामा घटनास्थल पर नहीं बल्कि थाने में बनाया गया.

हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ न्यायेतर स्वीकृति के आधार पर सजा दी गई है

इसके अलावा मृतक के भाई ने एक अन्य व्यक्ति पर संदेह व्यक्त किया था, जिससे उनके परिवार की रंजिश चल रही थी. पुलिस ने उसके संबंध में कोई जांच नहीं की. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सिर्फ न्यायेतर स्वीकृति के आधार पर सजा से दंडित किया है. युगलपीठ ने ये आदेश जारी करते हुए अपीलकर्ता को दोषमुक्त करार दिया.

जबलपुर: जबलपुर हाईकोर्ट ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि कबूलनामा को विश्वसनीयता की कसौटी पर खरा होना चाहिए. जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस देव नारायण मिश्रा की युगलपीठ ने तीन दशक पूर्व जिला न्यायालय द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को पलटते हुए आरोपी को दोषमुक्त कर दिया. अपील के लंबित रहने के दौरान एक आरोपी की मौत होने के कारण उसका नाम हटा दिया गया था.

जिला अदालत ने दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी

हत्या के आरोप में सजा से दंडित किये जाने की सजा के खिलाफ आरोपियों ने साल 1995 में क्रिमिनल अपील दायर की थी. अपील के अनुसार मुन्ना की हत्या के आरोप में पुलिस ने मनोज राठौर व शिवनारायण राठौर को गिरफ्तार किया था. जिला न्यायालय ने प्रकरण की सुनवाई करते हुए दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई थी. अपील के लंबित होने के दौरान मनोज की मृत्यु हो गई थी.

युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर प्रकरण को विवेचना में लिया था. प्रकरण के अनुसार आरोपियों ने गला दबाकर तथा पोकर से हमला कर हत्या की थी. पुलिस द्वारा जब्त पोकर को जांच के लिए डॉक्टर के पास नहीं भेजा गया था. इसके अलावा पोकर की जब्ती का पंचनामा घटनास्थल पर नहीं बल्कि थाने में बनाया गया.

हाईकोर्ट ने कहा कि सिर्फ न्यायेतर स्वीकृति के आधार पर सजा दी गई है

इसके अलावा मृतक के भाई ने एक अन्य व्यक्ति पर संदेह व्यक्त किया था, जिससे उनके परिवार की रंजिश चल रही थी. पुलिस ने उसके संबंध में कोई जांच नहीं की. युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि सिर्फ न्यायेतर स्वीकृति के आधार पर सजा से दंडित किया है. युगलपीठ ने ये आदेश जारी करते हुए अपीलकर्ता को दोषमुक्त करार दिया.

Last Updated : Dec 8, 2024, 6:01 PM IST
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