भरतपुर : दुनिया भर में पक्षी प्रेमियों के लिए प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (घना पक्षी अभयारण्य) में दस वर्षों के लंबे अंतराल के बाद यूरोप से कॉमन शेल्डक पक्षी ने वापसी की है. यह दुर्लभ और आकर्षक पक्षी करीब चार हजार किलोमीटर का सफर तय करके यहां पहुंचा है. इस वर्ष उद्यान में पानी की प्रचुर मात्रा को इस पक्षी की वापसी का मुख्य कारण माना जा रहा है.
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि घना में दस साल बाद कॉमन शेल्डक पक्षी पहुंचे हैं. ये पक्षी यूरोप से लगभग 4 हजार किलोमीटर का सफर तय कर यहां पहुंचे हैं. इस बार घना में पानी की पर्याप्त उपलब्धता, विशेष रूप से पांचना बांध से पानी मिलने के कारण, इन पक्षियों का आगमन संभव हुआ है. निदेशक मानस ने कहा कि इस पक्षी का यहां आना इस बात का प्रमाण है कि केवलादेव अभयारण्य प्रवासी पक्षियों के लिए एक आदर्श स्थल है.
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जानिए कॉमन शेल्डक के बारे में : कॉमन शेल्डक एक आकर्षक और दुर्लभ प्रवासी पक्षी है. इसका आकार छोटे गर्दन वाले हंस जैसा होता है. इसकी चोंच गुलाबी-लाल, पैर गुलाबी, सिर और गर्दन गहरे हरे रंग के होते हैं. पेट काले रंग का और पंखों पर सफेद, हरे और भूरे रंग की विशेष धारियां होती हैं. उड़ान के दौरान इसके पंखों की सफेदी और हरे-भूरे रंग में चमक दिखती है. इसकी लंबाई 58 से 67 सेंटीमीटर, पंखों का फैलाव 110 से 133 सेंटीमीटर और वजन 850 से 1450 ग्राम होता है. इस पक्षी का जीवनकाल लगभग 19 वर्ष तक होता है. इसका आहार कीड़े, कृमि और छोटी मछलियां होते हैं.
प्रकृति प्रेमियों में खुशी : इन पक्षियों के नर और मादा में मामूली अंतर होता है. नर पक्षी की चोंच प्रजनन के समय चमकदार लाल हो जाती है और उसके माथे पर एक उभरी हुई घुंडी बनती है. मादा नर की तुलना में थोड़ी छोटी होती है और उसके चेहरे पर सफेद निशान होते हैं. इनके बच्चे सफेद रंग के होते हैं, जिनकी पीठ और पंखों पर काले धब्बे होते हैं. कॉमन शेल्डक का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में दस साल बाद लौटना इस बात का संकेत है कि वेटलैंड्स के संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के प्रयास सफल हो रहे हैं. शेल्डक के आने से प्रकृति प्रेमियों में खुशी है.
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गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जो एक विश्व धरोहर स्थल है, सर्दियों के दौरान प्रवासी पक्षियों का प्रमुख प्रवास्थल बनता है. यहां 350 प्रजातियों से अधिक के पक्षी आते हैं, जिनमें से कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियां भी शामिल होती हैं. इस स्थिति को देखते हुए उद्यान प्रशासन ने सख्त कदम उठाए हैं.
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