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हाईकोर्ट ने कहा- लंबित वाद के विरुद्ध कमिश्नर को निगरानी की सुनवाई करने का अधिकार नहीं

मोहम्मद मुस्लिम और पांच अन्य की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति डॉक्टर वाई के श्रीवास्तव ने दिया.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी प्रकरण में राजस्व न्यायालय में लंबित वाद के विरुद्ध कमिश्नर को निगरानी की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है. राजस्व संहिता के प्रावधानों के अनुसार कमिश्नर किसी अधीनस्थ राजस्व न्यायालय द्वारा निर्णीत किए जा चुके वाद के विरुद्ध ही निगरानी सुन सकता है. कोर्ट ने प्रयागराज के बेली कछार स्थित एक भूखंड को लेकर कमिश्नर द्वारा परित निगरानी आदेश को रद्द कर दिया है. मोहम्मद मुस्लिम और पांच अन्य की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति डॉक्टर वाई के श्रीवास्तव ने दिया.

याची का पक्ष रख रहे अधिवक्ता विभू राय का कहना था कि याची बेली कछार स्थित एक भू खंड का स्वामी है तथा राजस्व अभिलेखों में उसका नाम दर्ज है. इस जमीन को लेकर उसका विपक्षी मो. सलीम से सिविल वाद चल रहा है. सिविल सूट अदालत में लंबित है. इसमें अंतरिम निषेधाज्ञा की अर्जी खारिज हो चुकी है. विपक्षी ने इस तथ्य को छिपा कर एसडीएम सोराव के न्यायालय में उद्घोषणा वाद दाखिल किया और साथ ही निषेधाज्ञा की अर्जी भी दाखिल कर दी.

एसडीएम ने 17 अक्टूबर 2022 को यथा स्थिति का एक पक्षीय आदेश पारित कर दिया, लेकिन जब याची ने अपनी विस्तृत आपत्ति दाखिल की तो एसडीएम ने उक्त आदेश को वापस ले लिया. विपक्षी ने एसडीएम के आदेश के खिलाफ कमिश्नर के यहां निगरानी दाखिल की और कमिश्नर ने इसे स्वीकार कर लिया. अधिवक्ता का कहना था कि एसडीएम द्वारा पारित आदेश जिसके विरुद्ध कमिश्नर के यहां निगरानी दाखिल की गई अंतिम आदेश नहीं था. इसलिए इस आदेश के खिलाफ निगरानी पोषणीय नहीं है और ना ही कमिश्नर को इसका अधिकार है.

कोर्ट ने कहा कि राजस्व न्यायालय के विरुद्ध निगरानी दो ही स्थितियों में सुनी जा सकती है. पहले यह की प्रकरण ऐसे सूट या कार्रवाई से संबंधित हो जिसे राजस्व न्यायालय द्वारा निर्णीत किया जा चुका हो. दूसरा यह कि निर्णय ऐसे सूट या कार्रवाई से संबंधित होना चाहिए जिसके खिलाफ अपील का प्रावधान न हो. निगरानी अदालत का क्षेत्राधिकार इन दो शर्तों पर निर्भर करेगा. कोर्ट ने कहा कि एसडीएम ने निषेधाज्ञा अर्जी निस्तारित नहीं की थी. वह अभी उनके न्यायालय में लंबित है. इस स्थिति में या मामला निर्णीत वाद की श्रेणी में नहीं आएगा. इसलिए इस आदेश के विरुद्ध निगरानी पोषणीय नहीं है.

ये भी पढ़ें- हाईकोर्ट ने हरदोई डीएम मंगला प्रसाद सिंह को 24x7 मोबाइल ऑन रखने को कहा, जानें वजह

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी प्रकरण में राजस्व न्यायालय में लंबित वाद के विरुद्ध कमिश्नर को निगरानी की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है. राजस्व संहिता के प्रावधानों के अनुसार कमिश्नर किसी अधीनस्थ राजस्व न्यायालय द्वारा निर्णीत किए जा चुके वाद के विरुद्ध ही निगरानी सुन सकता है. कोर्ट ने प्रयागराज के बेली कछार स्थित एक भूखंड को लेकर कमिश्नर द्वारा परित निगरानी आदेश को रद्द कर दिया है. मोहम्मद मुस्लिम और पांच अन्य की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति डॉक्टर वाई के श्रीवास्तव ने दिया.

याची का पक्ष रख रहे अधिवक्ता विभू राय का कहना था कि याची बेली कछार स्थित एक भू खंड का स्वामी है तथा राजस्व अभिलेखों में उसका नाम दर्ज है. इस जमीन को लेकर उसका विपक्षी मो. सलीम से सिविल वाद चल रहा है. सिविल सूट अदालत में लंबित है. इसमें अंतरिम निषेधाज्ञा की अर्जी खारिज हो चुकी है. विपक्षी ने इस तथ्य को छिपा कर एसडीएम सोराव के न्यायालय में उद्घोषणा वाद दाखिल किया और साथ ही निषेधाज्ञा की अर्जी भी दाखिल कर दी.

एसडीएम ने 17 अक्टूबर 2022 को यथा स्थिति का एक पक्षीय आदेश पारित कर दिया, लेकिन जब याची ने अपनी विस्तृत आपत्ति दाखिल की तो एसडीएम ने उक्त आदेश को वापस ले लिया. विपक्षी ने एसडीएम के आदेश के खिलाफ कमिश्नर के यहां निगरानी दाखिल की और कमिश्नर ने इसे स्वीकार कर लिया. अधिवक्ता का कहना था कि एसडीएम द्वारा पारित आदेश जिसके विरुद्ध कमिश्नर के यहां निगरानी दाखिल की गई अंतिम आदेश नहीं था. इसलिए इस आदेश के खिलाफ निगरानी पोषणीय नहीं है और ना ही कमिश्नर को इसका अधिकार है.

कोर्ट ने कहा कि राजस्व न्यायालय के विरुद्ध निगरानी दो ही स्थितियों में सुनी जा सकती है. पहले यह की प्रकरण ऐसे सूट या कार्रवाई से संबंधित हो जिसे राजस्व न्यायालय द्वारा निर्णीत किया जा चुका हो. दूसरा यह कि निर्णय ऐसे सूट या कार्रवाई से संबंधित होना चाहिए जिसके खिलाफ अपील का प्रावधान न हो. निगरानी अदालत का क्षेत्राधिकार इन दो शर्तों पर निर्भर करेगा. कोर्ट ने कहा कि एसडीएम ने निषेधाज्ञा अर्जी निस्तारित नहीं की थी. वह अभी उनके न्यायालय में लंबित है. इस स्थिति में या मामला निर्णीत वाद की श्रेणी में नहीं आएगा. इसलिए इस आदेश के विरुद्ध निगरानी पोषणीय नहीं है.

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