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काशी में कचरे से बन रहा कोयला, देश का इकलौता प्लांट दूर करेगा भविष्य के ईधन की समस्या

काशी में कचरे से कोयला बन रहा है. देश का इकलौता प्लांट भविष्य के ईधन की समस्या दूर करेगा.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 9, 2024, 11:51 AM IST

Updated : Feb 9, 2024, 2:19 PM IST

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वाराणसी: वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने अपने संसदीय क्षेत्र आने वाले हैं और उनके हाथों से लाखों करोड़ों की योजनाओं की सौगात बनारस को मिलेगी माना जा रहा है कि लगभग 16 परियोजनाओं का लोकार्पण और 7 परियोजनाओं का शिलान्यास पीएम मोदी के हाथों किया जाएगा, लेकिन इन सब के बीच वाराणसी में लंबे वक्त से चल रही कचरे से कोयला बनाने की कवायत के काम को भी पूरा कर लिया गया है, दो सफल ट्रायल के बाद अब इस प्लांट की शुरुआत पीएम मोदी के हाथों होगी. 600 टन कचरे से 200 टन कोयला तैयार करने का यह प्रोजेक्ट एनटीपीसी और नगर निगम वाराणसी के सहयोग से तैयार हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि एनटीपीसी यानी नेशनल नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन की तरफ से नियुक्त की गई कार्यवाही संस्था मेकाबर बीके इस प्लांट को सफलता से संचालित कर रही है और इसके संचालन की सफलता के बाद अब देश के अन्य हिस्सों में भी इसे शुरू करने की तैयारी की जा रही है. फिलहाल देश का इकलौता कचरे से कोयला बनाने का यह प्लांट आने वाले समय में कोयले की चिंता को तो दूर करेगा ही साथ ही हरित कोयले के रूप में पॉल्यूशन फ्री कोयले का भी प्रोडक्शन करके नया कीर्तिमान रचने जा रहा है.




इस बारे में इस प्लांट को संचालित करने वाली कार्यवाही कंपनी मेकाबर बीके के सीनियर जनरल मैनेजर चंद्रोदय सिंह ने बताया कि यह पूरी कवायद बनारस में कचरे के ढेर को खत्म करके स्वच्छता मिशन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी. 2022- 2023 में दो अलग-अलग ट्रायल पूरा करने के बाद अब यह संयंत्र पूरी तरह से कोयला निर्माण के लिए तैयार हो चुका है. सबसे बड़ी बात यह है कि एमएसडब्ल्यू यानी म्युनिसिपल सॉलि़ड वेस्ट जिन्हें हम सभी कचरे के रूप में जानते हैं, बनारस से निकलने वाला 600 टन कचरा प्रतिदिन इसके निस्तारण का काम यहां पर किया जाएगा. वैसे तो कचरा निस्तारण सबसे बड़ा चैलेंज है, क्योंकि पूरे देश में कचरा निस्तारण के लिए कोई व्यवस्था नहीं है और हर इलाके में कचरा का ढेर बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में वाराणसी में रमन इलाके में 600 टन कचरे को 200 टन कोयले में परिवर्तित करने का प्रतिदिन का काम इस प्लांट से किया जाएगा. तीन अलग-अलग स्तर पर तैयार हुआ यह प्लांट प्रतिदिन बनारस के कचरे के डंपिंग की बड़ी समस्या का निस्तारण होने वाला है. बनारस के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे प्लांट संचालित हो रहे हैं लेकिन वहां सिर्फ डंपिंग ग्राउंड है. बनारस के इस प्रोजेक्ट से एनटीपीसी कोयला तैयार कर रही है और इस कोयले का इस्तेमाल अपने ही कार्यों में करके बिजली उत्पादन व अन्य कामों में लगी और जरूरत पड़ी तो इसका कमर्शियल उसे भी शुरू किया जाएगा.



चंद्रोदय सिंह ने बताया कि बनारस शहर के अलग-अलग हिस्सों से कचरा इकट्ठा करके जो गाड़ियां आती हैं. वह एक पिट में कचरे को डालने के बाद वहां से चली जाती हैं. उसके बाद ग्रैब क्रेन की मदद से हम आगे इन कचरे को हापर तक पहुंचाते हैं. इसके बाद इस कचरे को प्री हीट करके इसके अंदर मौजूद मॉश्चर को खत्म किया जाता है. उन्होंने बताया कि इसके लिए हमें किसी भी तरह का कचरा चाहिए होता है. चाहे वह गिला हो चाहे सूखा. आगे के प्रक्रिया में उन्होंने बताया कि फिर बैलिस्टिक सेपरेटर जिसे हम उस प्रक्रिया के रूप में जानते हैं जिसमें कचरे से मिट्टी, लोहा, तांबा और अन्य तरह के ठोस पदार्थ अलग हो जाते हैं और कपड़ा, प्लास्टिक, टायर और अन्य तरह के कचरे आगे बढ़ते जाते हैं या वह प्रोडक्ट होते हैं, जो ज्वलनशील होते हैं इन सारी चीजों के आगे बढ़ाने के बाद अगला प्रोसेस होता है. छोटे टुकड़ों में इसको डिवाइड करने का इस सारे कचरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में डिवाइड करने के बाद यह पाउडर फॉर्म में बदलने लगता है इस प्रक्रिया को हम रिफ्यूज्ड डिराइवड फ्यूल यानी आरडीएफ के नाम से जानते हैं.



यहां पर इसे बाहर से 250 से 300 डिग्री पर हिट किया जाता है. जिसके बाद यह छोटे-छोटे टुकड़े में कन्वर्ट हुआ कचरा धीरे-धीरे काले रंग की राख में तब्दील होने लगता है और लगभग 2 घंटे के प्रक्रिया के बाद यह पूरी तरह से पाउडर फॉर्म में तैयार होता है. इसके बाद हम इसे आगे बढाते हैं और ठंडा करके ब्रिकेटिंग यानी पाउडर को कोयले की छोटी छोटी ब्रिक फ़ॉर्मेट में तब्दील किया जाता है. इसके बाद इस कोयले को फिर से एक प्रोसेस से गुजारकर इस कोयले को फिर से पूरी तरह सुखाया जाता है ताकि ये जलने में दिक्कत न करे.



चंद्रोदय सिंह ने बताया कि सबसे बड़ी बात यह है कि यह पूरा प्रोजेक्ट पूरी तरह से मेड इन इंडिया है. राजस्थान में इसे हमने तैयार करके बनारस मिलकर पूरी तरह से इंस्टॉल किया है देश का पहला का प्रोजेक्ट है. जहां कचरे के निस्तारण के लिए इस तरह की व्यवस्था की जा रही है और एनटीपीसी इसका इस्तेमाल अभी अपने अलग-अलग प्लांट में करेगी और बाद में इसका इस्तेमाल कमर्शियल रूप में भी किया जाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि इस कोयले को हरित कोयले के रूप में जाना जा रहा है जो पूरी तरह से हंड्रेड परसेंट पॉल्यूशन फ्री होगा. नगर निगम के नगर स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि नगर निगम के साथ मिलकर यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ है. हमने वहां जगह उपलब्ध करवाई और कूड़े के निस्तारण का यह सबसे अच्छा तरीका है.

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वाराणसी: वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने अपने संसदीय क्षेत्र आने वाले हैं और उनके हाथों से लाखों करोड़ों की योजनाओं की सौगात बनारस को मिलेगी माना जा रहा है कि लगभग 16 परियोजनाओं का लोकार्पण और 7 परियोजनाओं का शिलान्यास पीएम मोदी के हाथों किया जाएगा, लेकिन इन सब के बीच वाराणसी में लंबे वक्त से चल रही कचरे से कोयला बनाने की कवायत के काम को भी पूरा कर लिया गया है, दो सफल ट्रायल के बाद अब इस प्लांट की शुरुआत पीएम मोदी के हाथों होगी. 600 टन कचरे से 200 टन कोयला तैयार करने का यह प्रोजेक्ट एनटीपीसी और नगर निगम वाराणसी के सहयोग से तैयार हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि एनटीपीसी यानी नेशनल नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन की तरफ से नियुक्त की गई कार्यवाही संस्था मेकाबर बीके इस प्लांट को सफलता से संचालित कर रही है और इसके संचालन की सफलता के बाद अब देश के अन्य हिस्सों में भी इसे शुरू करने की तैयारी की जा रही है. फिलहाल देश का इकलौता कचरे से कोयला बनाने का यह प्लांट आने वाले समय में कोयले की चिंता को तो दूर करेगा ही साथ ही हरित कोयले के रूप में पॉल्यूशन फ्री कोयले का भी प्रोडक्शन करके नया कीर्तिमान रचने जा रहा है.




इस बारे में इस प्लांट को संचालित करने वाली कार्यवाही कंपनी मेकाबर बीके के सीनियर जनरल मैनेजर चंद्रोदय सिंह ने बताया कि यह पूरी कवायद बनारस में कचरे के ढेर को खत्म करके स्वच्छता मिशन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी. 2022- 2023 में दो अलग-अलग ट्रायल पूरा करने के बाद अब यह संयंत्र पूरी तरह से कोयला निर्माण के लिए तैयार हो चुका है. सबसे बड़ी बात यह है कि एमएसडब्ल्यू यानी म्युनिसिपल सॉलि़ड वेस्ट जिन्हें हम सभी कचरे के रूप में जानते हैं, बनारस से निकलने वाला 600 टन कचरा प्रतिदिन इसके निस्तारण का काम यहां पर किया जाएगा. वैसे तो कचरा निस्तारण सबसे बड़ा चैलेंज है, क्योंकि पूरे देश में कचरा निस्तारण के लिए कोई व्यवस्था नहीं है और हर इलाके में कचरा का ढेर बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में वाराणसी में रमन इलाके में 600 टन कचरे को 200 टन कोयले में परिवर्तित करने का प्रतिदिन का काम इस प्लांट से किया जाएगा. तीन अलग-अलग स्तर पर तैयार हुआ यह प्लांट प्रतिदिन बनारस के कचरे के डंपिंग की बड़ी समस्या का निस्तारण होने वाला है. बनारस के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे प्लांट संचालित हो रहे हैं लेकिन वहां सिर्फ डंपिंग ग्राउंड है. बनारस के इस प्रोजेक्ट से एनटीपीसी कोयला तैयार कर रही है और इस कोयले का इस्तेमाल अपने ही कार्यों में करके बिजली उत्पादन व अन्य कामों में लगी और जरूरत पड़ी तो इसका कमर्शियल उसे भी शुरू किया जाएगा.



चंद्रोदय सिंह ने बताया कि बनारस शहर के अलग-अलग हिस्सों से कचरा इकट्ठा करके जो गाड़ियां आती हैं. वह एक पिट में कचरे को डालने के बाद वहां से चली जाती हैं. उसके बाद ग्रैब क्रेन की मदद से हम आगे इन कचरे को हापर तक पहुंचाते हैं. इसके बाद इस कचरे को प्री हीट करके इसके अंदर मौजूद मॉश्चर को खत्म किया जाता है. उन्होंने बताया कि इसके लिए हमें किसी भी तरह का कचरा चाहिए होता है. चाहे वह गिला हो चाहे सूखा. आगे के प्रक्रिया में उन्होंने बताया कि फिर बैलिस्टिक सेपरेटर जिसे हम उस प्रक्रिया के रूप में जानते हैं जिसमें कचरे से मिट्टी, लोहा, तांबा और अन्य तरह के ठोस पदार्थ अलग हो जाते हैं और कपड़ा, प्लास्टिक, टायर और अन्य तरह के कचरे आगे बढ़ते जाते हैं या वह प्रोडक्ट होते हैं, जो ज्वलनशील होते हैं इन सारी चीजों के आगे बढ़ाने के बाद अगला प्रोसेस होता है. छोटे टुकड़ों में इसको डिवाइड करने का इस सारे कचरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में डिवाइड करने के बाद यह पाउडर फॉर्म में बदलने लगता है इस प्रक्रिया को हम रिफ्यूज्ड डिराइवड फ्यूल यानी आरडीएफ के नाम से जानते हैं.



यहां पर इसे बाहर से 250 से 300 डिग्री पर हिट किया जाता है. जिसके बाद यह छोटे-छोटे टुकड़े में कन्वर्ट हुआ कचरा धीरे-धीरे काले रंग की राख में तब्दील होने लगता है और लगभग 2 घंटे के प्रक्रिया के बाद यह पूरी तरह से पाउडर फॉर्म में तैयार होता है. इसके बाद हम इसे आगे बढाते हैं और ठंडा करके ब्रिकेटिंग यानी पाउडर को कोयले की छोटी छोटी ब्रिक फ़ॉर्मेट में तब्दील किया जाता है. इसके बाद इस कोयले को फिर से एक प्रोसेस से गुजारकर इस कोयले को फिर से पूरी तरह सुखाया जाता है ताकि ये जलने में दिक्कत न करे.



चंद्रोदय सिंह ने बताया कि सबसे बड़ी बात यह है कि यह पूरा प्रोजेक्ट पूरी तरह से मेड इन इंडिया है. राजस्थान में इसे हमने तैयार करके बनारस मिलकर पूरी तरह से इंस्टॉल किया है देश का पहला का प्रोजेक्ट है. जहां कचरे के निस्तारण के लिए इस तरह की व्यवस्था की जा रही है और एनटीपीसी इसका इस्तेमाल अभी अपने अलग-अलग प्लांट में करेगी और बाद में इसका इस्तेमाल कमर्शियल रूप में भी किया जाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि इस कोयले को हरित कोयले के रूप में जाना जा रहा है जो पूरी तरह से हंड्रेड परसेंट पॉल्यूशन फ्री होगा. नगर निगम के नगर स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि नगर निगम के साथ मिलकर यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ है. हमने वहां जगह उपलब्ध करवाई और कूड़े के निस्तारण का यह सबसे अच्छा तरीका है.

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Last Updated : Feb 9, 2024, 2:19 PM IST
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