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दुमका सीट पर सीता और नलिन के बीच कांटे की टक्कर, किसकी होगी जीत, किसे मिलेगी हार, जानिए विशेषज्ञों की राय - Lok Sabha Election 2024

झारखंड का दुमका लोकसभा सीट भारत से सबसे हॉट सीटों में से एक माना जा रहा है. यहां पर शिबू सोरेन की पुत्रवधू सीता सोरेन का मुकाबला झामुमो के वरिष्ठ नेता नलिन सोरेन से है. ऐसे में दोनों के बीच कड़ी टक्कर होने का अनुमान लगया जा रहा है. दोनों की इस टक्कर में किसका पलड़ा भारी है और विशेषज्ञ क्या कहते हैं इस रिपोर्ट में जानिए.

LOK SABHA ELECTION 2024
LOK SABHA ELECTION 2024
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 7, 2024, 6:36 PM IST

दुमका: झारखंड राज्य के संथाल परगना प्रमंडल में दुमका ही ऐसी सीट है जहां भारतीय जनता पार्टी और इंडिया गठबंधन दोनों ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. भाजपा ने पाला बदलकर आने वाली गुरुजी की पुत्रवधू सीता सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है. तो दूसरी ओर एक लंबे अरसे के बाद इस सीट से शिबू सोरेन की जगह झामुमो के वरिष्ठ और कद्दावर नेता नलिन सोरेन प्रत्याशी हैं. इन दोनों प्रत्याशियों के कारण देश स्तर पर दुमका सीट काफी हॉट हो गया है. दोनों गठबंधन दुमका को जीतने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.

दोनों प्रत्याशी के हैं अपने-अपने जीत के दावे

जैसे ही भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों ने दुमका लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे. लोगों को यह महसूस हो गया कि मुकाबला कांटे का है. भाजपा प्रत्याशी सीता सोरेन और झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन दोनों के यह दावे हैं कि उनकी जीत पक्की है. एक तरफ सीता सोरेन को खुद पर और मोदी लहर पर विश्वास है, वे जहां भी जा रही हैं यह कहती हुई नजर आती हैं कि उनके पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा को खड़ा किया, अलग झारखंड की लड़ाई लड़ी, राज्य को अलग कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की उस पार्टी और परिवार में ना तो उनका और ना ही उनकी मेरे दोनों बेटियों के साथ न्याय किया गया.

सीता सोरेन लोगों के बीच क्या उठा रही हैं मुद्दा

सीता सोरेन लोगों के बीच जाकर लगातार ये कह रही हैं कि उन्हें पार्टी और परिवार में जो हक मिलना चाहिए था वह नहीं मिला. वह अपने पति की मौत को भी संदेहास्पद बता रही हैं और उसकी जांच की मांग कर रही हैं. सीता सोरेन को यह भी उम्मीद है कि सोरेन परिवार ने उसके साथ जो व्यवहार किया, जनता उसे हृदय से महसूस करेगी और लोकसभा चुनाव में इसे एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए जीत दिलाने का काम करेगी.

सीता सोरेन में क्या है मजबूत पक्ष

सीता सोरेन का मजबूत पक्ष है कि वह दुमका लोकसभा क्षेत्र के जामा विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार से विधायक बन रही हैं. सोरेन परिवार की पुत्रवधू होने की वजह से जनता में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. सीता यह भी कहती हैं कि उन्हें अपने ससुर शिबू सोरेन का भी आशीर्वाद प्राप्त है. वह कहती हैं कि झारखंड मुक्ति मोर्चा में अब गुरु जी की नहीं चलती है. अगर वे वहां प्रभावी होते तो उन्हें झामुमो छोड़ना ही नहीं पड़ता. सीता सोरेन ये तक कह रही हैं कि उन्हें भाजपा कार्यकर्ताओं का तो साथ मिलेगा ही, साथ ही साथ झामुमो कार्यकर्ता जो सब कुछ समझ रहे हैं, वे भी उनके साथ होंगे.

नलिन सोरेन को चार दशक का राजनीतिक अनुभव, गुरुजी-हेमंत के भरोसे से जीत की उम्मीद

इधर, झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन के का मजबूत पक्ष यह है कि वे लगातार सात टर्म से शिकारीपाड़ा विधानसभा से चुनाव जीत रहे हैं. नलिन सर्वसुलभ, मिलनसार और मृदु भाषी व्यवहार की वजह से क्षेत्र में वे काफी लोकप्रिय हैं. सिर्फ झामुमो में ही नहीं बल्कि दूसरे राजनीतिक दल के भी लोगों में उनका काफी सम्मान करते हैं. कहा जाता है कि उनके यहां जो भी किसी काम को लेकर चले जाएं चाहे वह व्यक्ति दूसरे दल से भी क्यों न तालुकात रखता हो, नलिन उनका काम जरूर कर देते हैं.

जहां तक दुमका लोकसभा सीट पर जीत हासिल करने की बात है नलिन सोरेन को अपने चार दशक के राजनीतिक कैरियर पर काफी भरोसा है. वे बिना हारे सात बार से विधायक बन रहे हैं, तो लोगों में अच्छी पकड़ मानी जाती है. इसके साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उन पर जो विश्वास जताया है. गुरुजी और हेमंत सोरेन ने टिकट पर मुहर लगाई है तो नलिन सोरेन को यह उम्मीद है कि झामुमो का जो बड़ा वोट बैंक है वे सभी इस बार भी साथ निभाएंगे और चुनावी वैतरणी पार लगाने का काम करेंगे. सीता सोरेन के संबंध में नलिन सोरेन का कहना है कि वह अपने घर में बीमार ससुर शिबू सोरेन और अस्वस्थ सास रूपी सोरेन को छोड़कर दूसरे घर में गई है तो जनता उसे कभी माफ नहीं करेगी.

क्या कहते हैं चुनावी विशेषज्ञ

इस दिलचस्प चुनावी मुकाबले को लेकर पिछले चार दशक से अधिक समय से पत्रकारिता क्षेत्र में काम करने वाले शिव शंकर चौधरी का मानना है कि पिछले चुनाव में भाजपा बाहरी भीतरी के मुद्दे ( शिबू सोरेन बाहरी जबकि सुनील सोरेन लोकल ) को उछाल कर अपनी जीत दर्ज करने में सफल हुई थी. वहीं इस बार झामुमो ने नलिन सोरेन जैसे स्थानीय नेता को मैदान में उतार कर भाजपा के पुराने मुद्दे को छीन कर असमंजस में डाल दिया है. अगर थोड़ी सी इतिहास पर नजर डालें तो 1990 के बाद से भाजपा ने अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास शुरू किया. 1991 में भाजपा ने पहली बार बाबूलाल मरांडी को इस क्षेत्र से मैदान में उतारा पर वे शिबू सोरेन से चुनाव हार गये. हार के बाद भी भाजपा ने इस क्षेत्र को नहीं छोड़ा और कमल खिलाने को लेकर लगातार प्रयासरत करती रही. तीसरे प्रयास यानि 1998 भी बाबूलाल मरांडी भाजपा के टिकट पर झामुमो के शिबू सोरेन को परास्त करने में सफल हो गए.

भीतरी और बाहरी मुद्दे पर 2019 में बीजेपी को मिला लाभ

वहीं, इस चुनाव के बारे में शंकर चौधरी कहते हैं कि हाल के वर्षों में यानी 2009 में झामुमो के शिबू सोरेन के खिलाफ भाजपा ने सुनील सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया. तब से इस क्षेत्र में बाहरी भीतरी का मुद्दा गरमाने लगा. अंततः 2019 में दुमका से भाजपा के सुनील सोरेन ने अपने ही गुरु को पटखनी दे दी. इस बार भाजपा के निवर्तमान सांसद सुनील सोरेन का टिकट काट कर सीता सोरेन और झामुमो ने उनके खिलाफ सात बार के विधायक स्थानीय प्रत्याशी नलिन सोरेन को मैदान में उतार कर राजनीतिक पंडितों के गुणा भाग को गड्ड-मड्ड कर दिया है. इस बार झामुमो ने बाहरी-भीतरी के पुराने मुद्दे को भाजपा से छीन कर उसे सकते में डाल दिया है. अब आने वाले समय बताएगा कि भाजपा कैसे झामुमो के बाहरी भीतरी के चक्रव्यूह से बाहर निकलती है.

संवेदना और मोदी लहर पर सवार सीता सोरेन

इधर, इस मामले में तीस वर्षों का अनुभव रखने वाले पत्रकार अमरेन्द्र सुमन जो अधिवक्ता भी हैं, कहते हैं कि झामुमो के सर्वोच्च नेता शिबू सोरेन के 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन से हार के बाद से ही यह कयास लगाया जाने लगा था कि मोदी लहर में परिस्थितियां बदलने लगी हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में सुनील सोरेन को जोर का झटका तब लगा जब उनकी टिकट की घोषणा हो गई पर सोरेन परिवार की बहू और झामुमो के टिकट पर तीन बार जामा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकीं सीता सोरेन को भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.

हेमंत सोरेन के जेल चले जाने के बाद अचानक बदल चुकी राजनीतिक परिस्थिति में पार्टी की ओर से उम्मीदवार के रूप में नलिन सोरेन को चुनावी जंग में उतारना दुमका की वर्तमान राजनीतिक फिजा में एक नये हस्तक्षेप की तरह देखा जा रहा है. राजनीतिक महत्वाकांक्षा में पार्टी और परिवार से खुला विद्रोह कर भाजपा की शरण में जाने वाली सीता सोरेन को जहां एक ओर मोदी लहर पर अटूट विश्वास दिखता है, वहीं दूसरी ओर पार्टी और परिवार से अलग होने के पीछे के कारणों, पार्टी में महत्व नहीं मिलना, दुर्गा सोरेन की मौत पर जांच के लगातार फेंके जाने वाले पासो से मतदाताओं की संवेदनाएं उनके साथ होंगी, ऐसा सीता सोरेन को लगता है. जबकि दूसरी ओर झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन को लगभग 40-42 वर्षों का राजनीतिक अनुभव है, पार्टी में रहते हुए क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रभाव, सरल स्वभाव व सहृदयी व्यवहार से उन्होंने अपनी जो छवि बना रखी है, लोगों को वह आकर्षित करता है.

मुकाबला जोरदार होने की उम्मीद

इस तरह हम देख रहे हैं कि सीता सोरेन और नलिन सोरेन दोनों के अपने-अपने मजबूत पक्ष हैं. किसी को कम आंकना किसी भी राजनीतिक विशेषज्ञ के लिए मुश्किल कार्य है. ऐसे में अगर दोनों पक्ष अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ते हैं तो मुकाबला जोरदार होने की उम्मीद है और अभी से यह अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि ऊंट किस ओर करवट लेगा.

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दोनों प्रत्याशी के हैं अपने-अपने जीत के दावे

जैसे ही भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों ने दुमका लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे. लोगों को यह महसूस हो गया कि मुकाबला कांटे का है. भाजपा प्रत्याशी सीता सोरेन और झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन दोनों के यह दावे हैं कि उनकी जीत पक्की है. एक तरफ सीता सोरेन को खुद पर और मोदी लहर पर विश्वास है, वे जहां भी जा रही हैं यह कहती हुई नजर आती हैं कि उनके पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा को खड़ा किया, अलग झारखंड की लड़ाई लड़ी, राज्य को अलग कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की उस पार्टी और परिवार में ना तो उनका और ना ही उनकी मेरे दोनों बेटियों के साथ न्याय किया गया.

सीता सोरेन लोगों के बीच क्या उठा रही हैं मुद्दा

सीता सोरेन लोगों के बीच जाकर लगातार ये कह रही हैं कि उन्हें पार्टी और परिवार में जो हक मिलना चाहिए था वह नहीं मिला. वह अपने पति की मौत को भी संदेहास्पद बता रही हैं और उसकी जांच की मांग कर रही हैं. सीता सोरेन को यह भी उम्मीद है कि सोरेन परिवार ने उसके साथ जो व्यवहार किया, जनता उसे हृदय से महसूस करेगी और लोकसभा चुनाव में इसे एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए जीत दिलाने का काम करेगी.

सीता सोरेन में क्या है मजबूत पक्ष

सीता सोरेन का मजबूत पक्ष है कि वह दुमका लोकसभा क्षेत्र के जामा विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार से विधायक बन रही हैं. सोरेन परिवार की पुत्रवधू होने की वजह से जनता में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. सीता यह भी कहती हैं कि उन्हें अपने ससुर शिबू सोरेन का भी आशीर्वाद प्राप्त है. वह कहती हैं कि झारखंड मुक्ति मोर्चा में अब गुरु जी की नहीं चलती है. अगर वे वहां प्रभावी होते तो उन्हें झामुमो छोड़ना ही नहीं पड़ता. सीता सोरेन ये तक कह रही हैं कि उन्हें भाजपा कार्यकर्ताओं का तो साथ मिलेगा ही, साथ ही साथ झामुमो कार्यकर्ता जो सब कुछ समझ रहे हैं, वे भी उनके साथ होंगे.

नलिन सोरेन को चार दशक का राजनीतिक अनुभव, गुरुजी-हेमंत के भरोसे से जीत की उम्मीद

इधर, झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन के का मजबूत पक्ष यह है कि वे लगातार सात टर्म से शिकारीपाड़ा विधानसभा से चुनाव जीत रहे हैं. नलिन सर्वसुलभ, मिलनसार और मृदु भाषी व्यवहार की वजह से क्षेत्र में वे काफी लोकप्रिय हैं. सिर्फ झामुमो में ही नहीं बल्कि दूसरे राजनीतिक दल के भी लोगों में उनका काफी सम्मान करते हैं. कहा जाता है कि उनके यहां जो भी किसी काम को लेकर चले जाएं चाहे वह व्यक्ति दूसरे दल से भी क्यों न तालुकात रखता हो, नलिन उनका काम जरूर कर देते हैं.

जहां तक दुमका लोकसभा सीट पर जीत हासिल करने की बात है नलिन सोरेन को अपने चार दशक के राजनीतिक कैरियर पर काफी भरोसा है. वे बिना हारे सात बार से विधायक बन रहे हैं, तो लोगों में अच्छी पकड़ मानी जाती है. इसके साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उन पर जो विश्वास जताया है. गुरुजी और हेमंत सोरेन ने टिकट पर मुहर लगाई है तो नलिन सोरेन को यह उम्मीद है कि झामुमो का जो बड़ा वोट बैंक है वे सभी इस बार भी साथ निभाएंगे और चुनावी वैतरणी पार लगाने का काम करेंगे. सीता सोरेन के संबंध में नलिन सोरेन का कहना है कि वह अपने घर में बीमार ससुर शिबू सोरेन और अस्वस्थ सास रूपी सोरेन को छोड़कर दूसरे घर में गई है तो जनता उसे कभी माफ नहीं करेगी.

क्या कहते हैं चुनावी विशेषज्ञ

इस दिलचस्प चुनावी मुकाबले को लेकर पिछले चार दशक से अधिक समय से पत्रकारिता क्षेत्र में काम करने वाले शिव शंकर चौधरी का मानना है कि पिछले चुनाव में भाजपा बाहरी भीतरी के मुद्दे ( शिबू सोरेन बाहरी जबकि सुनील सोरेन लोकल ) को उछाल कर अपनी जीत दर्ज करने में सफल हुई थी. वहीं इस बार झामुमो ने नलिन सोरेन जैसे स्थानीय नेता को मैदान में उतार कर भाजपा के पुराने मुद्दे को छीन कर असमंजस में डाल दिया है. अगर थोड़ी सी इतिहास पर नजर डालें तो 1990 के बाद से भाजपा ने अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास शुरू किया. 1991 में भाजपा ने पहली बार बाबूलाल मरांडी को इस क्षेत्र से मैदान में उतारा पर वे शिबू सोरेन से चुनाव हार गये. हार के बाद भी भाजपा ने इस क्षेत्र को नहीं छोड़ा और कमल खिलाने को लेकर लगातार प्रयासरत करती रही. तीसरे प्रयास यानि 1998 भी बाबूलाल मरांडी भाजपा के टिकट पर झामुमो के शिबू सोरेन को परास्त करने में सफल हो गए.

भीतरी और बाहरी मुद्दे पर 2019 में बीजेपी को मिला लाभ

वहीं, इस चुनाव के बारे में शंकर चौधरी कहते हैं कि हाल के वर्षों में यानी 2009 में झामुमो के शिबू सोरेन के खिलाफ भाजपा ने सुनील सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया. तब से इस क्षेत्र में बाहरी भीतरी का मुद्दा गरमाने लगा. अंततः 2019 में दुमका से भाजपा के सुनील सोरेन ने अपने ही गुरु को पटखनी दे दी. इस बार भाजपा के निवर्तमान सांसद सुनील सोरेन का टिकट काट कर सीता सोरेन और झामुमो ने उनके खिलाफ सात बार के विधायक स्थानीय प्रत्याशी नलिन सोरेन को मैदान में उतार कर राजनीतिक पंडितों के गुणा भाग को गड्ड-मड्ड कर दिया है. इस बार झामुमो ने बाहरी-भीतरी के पुराने मुद्दे को भाजपा से छीन कर उसे सकते में डाल दिया है. अब आने वाले समय बताएगा कि भाजपा कैसे झामुमो के बाहरी भीतरी के चक्रव्यूह से बाहर निकलती है.

संवेदना और मोदी लहर पर सवार सीता सोरेन

इधर, इस मामले में तीस वर्षों का अनुभव रखने वाले पत्रकार अमरेन्द्र सुमन जो अधिवक्ता भी हैं, कहते हैं कि झामुमो के सर्वोच्च नेता शिबू सोरेन के 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन से हार के बाद से ही यह कयास लगाया जाने लगा था कि मोदी लहर में परिस्थितियां बदलने लगी हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में सुनील सोरेन को जोर का झटका तब लगा जब उनकी टिकट की घोषणा हो गई पर सोरेन परिवार की बहू और झामुमो के टिकट पर तीन बार जामा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकीं सीता सोरेन को भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया.

हेमंत सोरेन के जेल चले जाने के बाद अचानक बदल चुकी राजनीतिक परिस्थिति में पार्टी की ओर से उम्मीदवार के रूप में नलिन सोरेन को चुनावी जंग में उतारना दुमका की वर्तमान राजनीतिक फिजा में एक नये हस्तक्षेप की तरह देखा जा रहा है. राजनीतिक महत्वाकांक्षा में पार्टी और परिवार से खुला विद्रोह कर भाजपा की शरण में जाने वाली सीता सोरेन को जहां एक ओर मोदी लहर पर अटूट विश्वास दिखता है, वहीं दूसरी ओर पार्टी और परिवार से अलग होने के पीछे के कारणों, पार्टी में महत्व नहीं मिलना, दुर्गा सोरेन की मौत पर जांच के लगातार फेंके जाने वाले पासो से मतदाताओं की संवेदनाएं उनके साथ होंगी, ऐसा सीता सोरेन को लगता है. जबकि दूसरी ओर झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन को लगभग 40-42 वर्षों का राजनीतिक अनुभव है, पार्टी में रहते हुए क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रभाव, सरल स्वभाव व सहृदयी व्यवहार से उन्होंने अपनी जो छवि बना रखी है, लोगों को वह आकर्षित करता है.

मुकाबला जोरदार होने की उम्मीद

इस तरह हम देख रहे हैं कि सीता सोरेन और नलिन सोरेन दोनों के अपने-अपने मजबूत पक्ष हैं. किसी को कम आंकना किसी भी राजनीतिक विशेषज्ञ के लिए मुश्किल कार्य है. ऐसे में अगर दोनों पक्ष अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ते हैं तो मुकाबला जोरदार होने की उम्मीद है और अभी से यह अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि ऊंट किस ओर करवट लेगा.

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