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बनारस की 150 साल पुरानी इस कला को मिला GI का सहारा!, अब हो रही खूब डिमांड, जानिए इसकी खासियत - clay stick art of banaras - CLAY STICK ART OF BANARAS

बनारस को विरासत में मिली क्ले आर्ट कला को जल्द ही जीआई टैग मिलने वाला है. यह कला विलुप्त होने की कगार पर थी, लेकिन अब इसे जीआई का वरदान मिल गया है. जानिए क्या है इसकी खासियत.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 2, 2024, 10:18 AM IST

वाराणसी: बनारस को कला और विरासतों का शहर कहा जाता है. इन्ही विरासत में से एक कला है क्ले आर्ट. जो विलुप्तता के कगार पर है. लेकिन, अब विलुप्त हो रही है इस कला को जीआई का वरदान मिल गया है. जी हां! आगामी दिनों में इसे जीआई टैग मिल जाएगा. इसके बाद इस कला को नया जीवनदान मिलेगा. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे, कि बनारस की विलुप्त हो रही यह क्ले आर्ट क्या है. और इसकी खासियत क्या है.

बनारस की क्ले आर्ट कला को मिला जीआई टैग, जी आई विशेषज्ञ पद्मश्री डॉक्टर रजनीकांत ने दी जानकारी (video credit- Etv Bharat)
दरअसल, यह क्ले आर्ट बनारस की पुस्तैनी कला है, जिसे डेढ़ सौ सालों से बनाया जा रहा है. इस कला में बनारस के गंगा मिट्टी से गणेश लक्ष्मी जी की मूर्तियों को तैयार किया जाता है. जिसे तीली वाले गणेश और लक्ष्मी जी कहा जाता है. यह प्रतिमा बनारस के लक्सा क्षेत्र में कुम्हरो के यहां बनाया जाती है. जिनकी डिमांड पूर्वांचल समेत महाराष्ट्र तक में होती है.तिली क्राफ्ट भी है नाम: इन मूर्तियों को क्ले तीली क्राफ्ट भी कहा जाता है. ये खास भी होती हैं. क्योंकि एक तो यह गंगा की मिट्टी से तैयार की जाती है. दूसरा इनके ऊपर तिलिया लगाकर मुकुट बनाया जाता है, जो इन मूर्तियों को अनोखी और खास बनाती हैं. इसलिए इन्हें तीली वाली गणेश लक्ष्मी के प्रतिमा का नाम दिया गया है. बनारस में दीपावली और धनतेरस के अवसर पर उनकी खूब बिक्री होती है, इसे मराठा समाज के लोग गणेश पूजन करते समय अपने घर में रखते हैं. वर्तमान समय में बनारस में लगभग 50 से ज्यादा परिवार इस कला से जुड़े हुए हैं, जिनकी कई पीढ़ियां क्ले तीली आर्ट से जुड़कर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा तैयार करती हैं.इसे भी पढ़े-जीआई फैसिलिटेशन में बनारस बना देश का सबसे बड़ा केंद्र, 5 महीने में 12 राज्यों के 80 जीआई आवेदन वाराणसी से फाइल - GI Facilitation


8 महीने में मिल जाएगा जीआई टैग: इस बारे में विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ रजनीकांत बताते हैं, कि भारत सरकार की पहल के बाद विलुप्त हो रही इस कारिगरी को जीआई का टैग मिलने जा रहा है. बनारस ह्यूमन वेलफेयर संस्था और भारत सरकार की मदद से इसका एप्लीकेशन तैयार करके जीआई के लिए फाइल कर दिया गया है.आने वाले 8 महीने में इसे जीआई मिल जाएगा.जिसके बाद इसको नई पहचान मिलेगी. देश दुनिया से इसके लिए आर्डर भी आएंगे. उन्होंने बताया, कि यह बनारस की प्राचीन कलाओं में से एक है. इसमें बेहद शुद्धता के साथ गणेश लक्ष्मी जी की प्रतिमा तैयार की जाती है.ये बनारस के अलावा अन्य कही भी तैयार नहीं की जाती है.

जल्द बहुरेंगें दिन, कारीगरों को उम्मीद: इसकी खास बात यह है कि, इसमें कच्ची मिट्टी का प्रयोग किया जाता है जो पर्यावरण के लिए हितकारी होता है. इसके साथ ही केमिकल रहित रंगों का प्रयोग कर तिलों के जरिए मूर्तियों का मुकुट तैयार किया जाता है. इससे जुड़े हुए कारीगर बताते हैं कि, धीरे-धीरे आधुनिक चकाचौंध में इन मूर्तियों की डिमांड कम होती जा रही है. हालांकि, महाराष्ट्र से इन मूर्तियों को सबसे ज्यादा मंगाया जाता है. हमें उम्मीद है कि,जीआई मिलने के बाद अन्य कलाओं की तरह इस कला के भी दिन बहुरेंगे और इसे नई संजीवनी मिलेगी.

यह भी पढ़े-बनारस के 4 स्पॉट आपको बनाएंगे सेहतमंद; VDA बनाएगा 2-2 किमी का वाकिंग ट्रैक, लोगों में डालेगा पैदल चलने की आदत - VDA Scheme

वाराणसी: बनारस को कला और विरासतों का शहर कहा जाता है. इन्ही विरासत में से एक कला है क्ले आर्ट. जो विलुप्तता के कगार पर है. लेकिन, अब विलुप्त हो रही है इस कला को जीआई का वरदान मिल गया है. जी हां! आगामी दिनों में इसे जीआई टैग मिल जाएगा. इसके बाद इस कला को नया जीवनदान मिलेगा. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे, कि बनारस की विलुप्त हो रही यह क्ले आर्ट क्या है. और इसकी खासियत क्या है.

बनारस की क्ले आर्ट कला को मिला जीआई टैग, जी आई विशेषज्ञ पद्मश्री डॉक्टर रजनीकांत ने दी जानकारी (video credit- Etv Bharat)
दरअसल, यह क्ले आर्ट बनारस की पुस्तैनी कला है, जिसे डेढ़ सौ सालों से बनाया जा रहा है. इस कला में बनारस के गंगा मिट्टी से गणेश लक्ष्मी जी की मूर्तियों को तैयार किया जाता है. जिसे तीली वाले गणेश और लक्ष्मी जी कहा जाता है. यह प्रतिमा बनारस के लक्सा क्षेत्र में कुम्हरो के यहां बनाया जाती है. जिनकी डिमांड पूर्वांचल समेत महाराष्ट्र तक में होती है.तिली क्राफ्ट भी है नाम: इन मूर्तियों को क्ले तीली क्राफ्ट भी कहा जाता है. ये खास भी होती हैं. क्योंकि एक तो यह गंगा की मिट्टी से तैयार की जाती है. दूसरा इनके ऊपर तिलिया लगाकर मुकुट बनाया जाता है, जो इन मूर्तियों को अनोखी और खास बनाती हैं. इसलिए इन्हें तीली वाली गणेश लक्ष्मी के प्रतिमा का नाम दिया गया है. बनारस में दीपावली और धनतेरस के अवसर पर उनकी खूब बिक्री होती है, इसे मराठा समाज के लोग गणेश पूजन करते समय अपने घर में रखते हैं. वर्तमान समय में बनारस में लगभग 50 से ज्यादा परिवार इस कला से जुड़े हुए हैं, जिनकी कई पीढ़ियां क्ले तीली आर्ट से जुड़कर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा तैयार करती हैं.इसे भी पढ़े-जीआई फैसिलिटेशन में बनारस बना देश का सबसे बड़ा केंद्र, 5 महीने में 12 राज्यों के 80 जीआई आवेदन वाराणसी से फाइल - GI Facilitation


8 महीने में मिल जाएगा जीआई टैग: इस बारे में विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ रजनीकांत बताते हैं, कि भारत सरकार की पहल के बाद विलुप्त हो रही इस कारिगरी को जीआई का टैग मिलने जा रहा है. बनारस ह्यूमन वेलफेयर संस्था और भारत सरकार की मदद से इसका एप्लीकेशन तैयार करके जीआई के लिए फाइल कर दिया गया है.आने वाले 8 महीने में इसे जीआई मिल जाएगा.जिसके बाद इसको नई पहचान मिलेगी. देश दुनिया से इसके लिए आर्डर भी आएंगे. उन्होंने बताया, कि यह बनारस की प्राचीन कलाओं में से एक है. इसमें बेहद शुद्धता के साथ गणेश लक्ष्मी जी की प्रतिमा तैयार की जाती है.ये बनारस के अलावा अन्य कही भी तैयार नहीं की जाती है.

जल्द बहुरेंगें दिन, कारीगरों को उम्मीद: इसकी खास बात यह है कि, इसमें कच्ची मिट्टी का प्रयोग किया जाता है जो पर्यावरण के लिए हितकारी होता है. इसके साथ ही केमिकल रहित रंगों का प्रयोग कर तिलों के जरिए मूर्तियों का मुकुट तैयार किया जाता है. इससे जुड़े हुए कारीगर बताते हैं कि, धीरे-धीरे आधुनिक चकाचौंध में इन मूर्तियों की डिमांड कम होती जा रही है. हालांकि, महाराष्ट्र से इन मूर्तियों को सबसे ज्यादा मंगाया जाता है. हमें उम्मीद है कि,जीआई मिलने के बाद अन्य कलाओं की तरह इस कला के भी दिन बहुरेंगे और इसे नई संजीवनी मिलेगी.

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