बदायूं : जामा मस्जिद को नीलकंठ महादेव मंदिर का दावा करने के मामले में आज सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में सुनवाई हुई. मुस्लिम पक्ष की सुनवाई आज पूरी नहीं हो पाई. मामले में अगली सुनवाई 10 दिसंबर को सुबह 10:30 बजे से होगी. 8 अगस्त 2022 से इस मुकदमे में सुनवाई चल रही है.
हिंदू महासभा ने अध्यक्ष मुकेश पटेल ने अदालत में वाद दायर करते हुए कहा है कि जहां पर जामा मस्जिद है, वहां पर पूर्व में नीलकंठ महादेव का मंदिर था. जिसके सबूत हैं. आज भी मूर्तियां हैं, पुराने खंभे हैं, नीचे सुरंग है. पूर्व में यहां पास में तालाब हुआ करता था. जब मुस्लिम आक्रांता आए तो मंदिर तोड़ा गया. वहीं मान्यता है इस मंदिर के शिवलिंग थोड़ी दूर एक दूसरे मंदिर में लाकर स्थापित कर दिया गया, जिसकी आज भी मंदिर में पूजा होती है. मुकेश पटेल ने दावा किया है कि कुतुबुद्दीन ऐबक के समय मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई. 1875 से 1978 तक के गजट में इसके प्रमाण मौजूद हैं. जिसमें लिखा है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई.
इससे पूर्व सुनवाई में सरकार की तरफ से पक्ष रखा जा चुका है. पुरातत्व विभाग ने इसे राष्ट्रीय धरोहर बताया है. साथ ही कहा कि राष्ट्रीय धरोहर से 200 मीटर तक सरकार की जगह है. कोर्ट इंतजामिया कमेटी, यूपी सेंटर सुन्नी वक्फ बोर्ड, भारत सरकार, मुख्य सचिव यूपी, पुरातत्व विभाग और DM बदायूं को नोटिस जारी कर जवाब मांगा जा चुका है. इसके बाद वक्फ बोर्ड और इंतजामियां कमेटी की तरफ से बहस की जा रही है. इसमें अब सुनवाई होनी है. इसी बीच असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को ट्वीट कर इस मामले को भी गरमा दिया.
जामा मस्जिद का मुकदमा लड़ रहे एडवोकेट असरार अहमद सिद्दीकी बताते है कि यह 850 साल पुरानी जामा मस्जिद है. यहां कभी मंदिर नहीं था. मंदिर का दावा पेश करने का हिंदू महासभा को कोई अधिकार नहीं है. इनके दावे के हिसाब से मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है, जो चीज अस्तित्व में नहीं है, उसकी तरफ से कोई दावा नहीं हो सकता. अदालत में दावे को खारिज करने पर बहस की जा रही है. बताया कि पुराना रिकॉर्ड भी उठाकर देख लिया जाए तो भी सरकारी रिकॉर्ड में यहां जामा मस्जिद दर्ज है.
जामा मस्जिद शम्सी के आसपास के मुस्लिम समुदाय के लोग मानते हैं कि गुलाम वंश के शासक शमसुद्दीन अल्तमश ने 1223 ईस्वी में अपनी बेटी राजिया सुल्तान की पैदाइश पर इस मस्जिद का निर्माण कराया था. राजिया सुल्तान पहली मुस्लिम शासक बनी. शमसुद्दीन सूफी विचारधारा का प्रबल प्रचारक था. वह जब बदायूं आया तो यहां कोई मस्जिद नहीं थी. इसी वजह से उन्होंने इस मस्जिद का निर्माण कराया था.