ETV Bharat / state

हिमाचल में 20 साल बाद दिसंबर में चिलिंग आवर्स पीरियड शुरू, इस साल सेब की बंपर पैदावार की उम्मीद - HIMACHAL CHILLING HOURS PERIOD

हिमाचल में बर्फबारी के चलते सर्दियों में होने वाले फलों की पैदावार को संजीवनी मिली है. जिससे इस बार ज्यादा उत्पादन की उम्मीद है.

Himachal Apple
हिमाचल में सेब की पैदावार (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 31, 2024, 10:13 AM IST

Updated : Dec 31, 2024, 10:36 AM IST

शिमला: हिमाचल में इस महीने कड़ाके की ठंड पड़ने से सेब सहित अन्य फसलों को संजीवनी मिली हैं. प्रदेश में 20 साल बाद दिसंबर महीने में सेब सहित अन्य फलों के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू हो गए हैं. ऐसे में आने वाले समय में भी अगर मौसम ने साथ दिया तो इस बार फलों के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स समय पर पूरा होने की अधिक संभावना है. जिससे इस बार प्रदेश में सेब की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है. इससे पहले जनवरी महीने में मौसम खराब रहने के बाद चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होते था. जिससे फलों को लंबे समय तक जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पाते थे. जिसका असर पिछले कुछ सालों में फल उत्पादन पर पड़ा है. अबकी बार समय पर चिलिंग ऑवर्स के पीरियड शुरू हो चुके हैं. जिससे आने वाले समय में बागवानों में अच्छी पैदावार की उम्मीद जगी है.

6 हजार करोड़ की बागवानी अर्थव्यवस्था

देश में फल राज्य के नाम से विख्यात हिमाचल में बागवानी अर्थव्यवस्था 6 हजार करोड़ की है. प्रदेश में फलों का कारोबार सर्दियों में पड़ने वाली बर्फ और कड़ाके की ठंड पर निर्भर है. सर्दियों के मौसम में सेब सहित स्टोन फ्रूट (बादाम, प्लम, खुबानी, आड़ू, बेर, आम, लीची, स्ट्रॉबेरी, खजूर आदि) के अच्छे उत्पादन के लिए चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ने से चिलिंग आवर्स पूरा होने की ज्यादा संभावना रहती है. ऐसे में जिस साल सर्दियों के मौसम में चिलिंग आवर्स का पीरियड पूरा होता है और फ्लोरिंग और गर्मियों में भी मौसम साथ देता है, उस साल प्रदेश में फलों का अच्छा उत्पादन हुआ है.

Himachal Apple
सेब की पैदावार के लिए चिलिंग आवर्स पीरियड शुरू (File Photo)

चिलिंग आवर्स क्या हैं, क्यों है जरूरी?

सर्दियों के मौसम में जब एक सप्ताह तक 24 घंटे के दौरान सामान्य तौर पर तापमान 0 से 7 डिग्री सेल्सियस रहता है. वो ही चिलिंग आवर्स होते हैं. इससे ही चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होता है. सेब सहित अन्य फलों के चिलिंग आवर्स का पीरियड दिसंबर से मार्च महीने तक रहता है, लेकिन दिसंबर और जनवरी महीने में कड़ाके ठंड रहने से ही चिलिंग आवर्स के पूरे होने की अधिक संभावना रहती है. इसके लिए दिसंबर महीने की बर्फबारी किसी संजीवनी से कम नहीं है. विशेषज्ञों के मुताबिक चिलिंग आवर्स पूरा होने से पौधों में एक समय पर फ्लोरिंग एक बराबर होती है. सभी बीमों में फूल सही तरह से खिलता है. जिससे फलों की सेटिंग अच्छी होने की संभावना रहती है.

Himachal Apple
इस साल अधिक सेब उत्पादन की उम्मीद (ETV Bharat)

किन फलों को कितने चिलिंग आवर्स की जरूरत

हिमाचल में सेब सहित अन्य फलों के लिए भी चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. विशेषज्ञों के मुताबिक सेब की रेड डिलीशियस वैरायटी के लिए सबसे अधिक 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है. रॉयल सेब के लिए 1000 से 1100 घंटे के चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. स्पर वैरायटी के लिए 800 से 900 घंटे व गाला प्रजाति सेब के लिए 700 से 800 घंटे तक के चिलिंग आवर्स पूरा होना आवश्यक है. इसी तरह से स्टोन फ्रूट में प्लम के लिए 300 से 400 घंटे, खुबानी 300 से 400, नाशपाती के लिए 700 से 800 घंटे व अंगूर के लिए 300 से 400 घंटे, चेरी के लिए 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. तभी सेब सहित स्टोन फ्रूट का उत्पादन अच्छा रहता है.

बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज का कहना है, "इस बार कड़ाके की ठंड पड़ने से चिलिंग आवर्स का पीरियड दिसंबर में शुरू हो गया है. ऐसा 20 साल बाद हुआ है. जिससे इस बार चिलिंग आवर्स समय पर पूरा होने की अधिक संभावना है. जो सेब की पैदावार के लिए बहुत जरूरी है. दिसंबर में अभी उम्मीद के मुताबिक बर्फबारी नहीं हुई है, लेकिन प्रदेश में बारिश अच्छी हुई है. लंबे सूखे की वजह से अधिक गहराई तक अभी नमी नहीं पहुंची है."

Himachal Apple
1,16,240 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन (File Photo)

प्रदेश में कितने हेक्टेयर में बागवानी?

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में बागवानी का योगदान करीब 6 हजार करोड़ का है. प्रदेश में बागवानी के तहत कुल 2,36,950 हेक्टेयर पड़ता है. जिसमें सेब का हिस्सा करीब 85 फीसदी है. प्रदेश में बागवानी का लगातार विस्तार हो रहा है. हिमाचल में 2023-24 में 1,16,240 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब के तहत आता है. इसी तरह से 27,373 हेक्टेयर में स्टोन फ्रूट के तहत है. ड्राई फ्रूट का उत्पादन 9,277 हेक्टेयर में लिए जा रहा है. सिट्रस के तहत बागवानी का 26,432 हेक्टेयर एरिया कवर होता है. प्रदेश में वर्ष 1950-51 में 400 हेक्टेयर में सेब की पैदावार होती थी, ये क्षेत्र 2023-24 में अब बढ़कर में 1,16,240 हेक्टेयर तक फैल गया है. चिंता की बात ये है कि प्रदेश में बागवानी के तहत क्षेत्र तो लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उत्पादन में इतनी अधिक बढ़ोतरी नजर नहीं आ रही है. जिसमें पिछले कई सालों से मौसम में हो रहा बदलाव एक मुख्य कारण है.

Himachal Apple
हिमाचल में सेब का उत्पादन (ETV Bharat)

पिछले 10 सालों में सेब उत्पादन

उद्यान विभाग की ओर से जारी आंकड़ों पर गौर करें तो हिमाचल में सेब उत्पादन कम रहा था. प्रदेश में साल 2024-25 में सेब उत्पादन 2,09,43,552 पेटी है. इसमें अभी MIS और सीए स्टोर के सेब का आंकड़ा जुड़ना बाकी है. इसी तरह से 2023-24 में प्रदेश में 2,11,11,972 पेटियां सेब का उत्पादन हुआ था. उस दौरान सेब के बॉक्स का स्टैंडर्ड साइज 24 किलो का था. इसी तरह से साल 2022-23 में हिमाचल में सेब उत्पादन 3,36,17,133 पेटी रहा था. उस समय सेब के बॉक्स का स्टैंडर्ड साइज 20 किलो वजन का था. वहीं, 2021-22 में प्रदेश में 3,05,95,058 पेटी उत्पादन रहा था. 2020-21 में भी सेब की पैदावार कम रही थी, उस दौरान प्रदेश में 2,40,53,099 सेब पेटियों का उत्पादन हुआ था. इसी तरह से 2019-20 में सेब उत्पादन 3.24 करोड़, साल 2018-19 में प्रदेश में सेब की पैदावार 1.65 करोड़ पेटी रही थी. वहीं, साल 2017-18 में सेब उत्पादन 2.08 करोड़ पेटी रहा था. इसी तरह से साल 2016-17 प्रदेश में 2.40 करोड़ सेब की पेटियां हुई थी. वहीं, 2015-16 में सेब उत्पादन 3.88 करोड़ पेटी रहा था.

सालउत्पादन (पेटियां)
20153.88 करोड़
20162.40 करोड़
20172.08 करोड़
20181.65 करोड़
20193.24 करोड़
20202.40 करोड़
20213.5 करोड़
20223.36 करोड़
20232.11 करोड़
20242.09 करोड़

सेब की पैदावार के लिए अभी क्या न करें

बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने बताया कि सेब की पैदावार के लिए अभी ये काम न करें:

  • सेब के तौलिए (पौधों के आसपास खुदाई) न करें.
  • अभी घास से भी छेड़छाड़ न करें, इससे नमी गायब हो सकती है.
  • सेब की प्रूनिंग में भी अभी जल्दबाजी न करें.
  • अभी जरूरी होने पर हल्की कांट छांट कर सकते हैं.
  • प्रूनिंग के लिए अभी फरवरी तक का समय है.
  • जल्दी प्रूनिंग करने से कई बीमारियां लगने की आशंका रहती है.
ये भी पढ़ें: किसानों-बागवानों के लिए वरदान साबित हुई बारिश-बर्फबारी, मुरझाई फसलें फिर लगी खिलने

शिमला: हिमाचल में इस महीने कड़ाके की ठंड पड़ने से सेब सहित अन्य फसलों को संजीवनी मिली हैं. प्रदेश में 20 साल बाद दिसंबर महीने में सेब सहित अन्य फलों के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू हो गए हैं. ऐसे में आने वाले समय में भी अगर मौसम ने साथ दिया तो इस बार फलों के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स समय पर पूरा होने की अधिक संभावना है. जिससे इस बार प्रदेश में सेब की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है. इससे पहले जनवरी महीने में मौसम खराब रहने के बाद चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होते था. जिससे फलों को लंबे समय तक जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पाते थे. जिसका असर पिछले कुछ सालों में फल उत्पादन पर पड़ा है. अबकी बार समय पर चिलिंग ऑवर्स के पीरियड शुरू हो चुके हैं. जिससे आने वाले समय में बागवानों में अच्छी पैदावार की उम्मीद जगी है.

6 हजार करोड़ की बागवानी अर्थव्यवस्था

देश में फल राज्य के नाम से विख्यात हिमाचल में बागवानी अर्थव्यवस्था 6 हजार करोड़ की है. प्रदेश में फलों का कारोबार सर्दियों में पड़ने वाली बर्फ और कड़ाके की ठंड पर निर्भर है. सर्दियों के मौसम में सेब सहित स्टोन फ्रूट (बादाम, प्लम, खुबानी, आड़ू, बेर, आम, लीची, स्ट्रॉबेरी, खजूर आदि) के अच्छे उत्पादन के लिए चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ने से चिलिंग आवर्स पूरा होने की ज्यादा संभावना रहती है. ऐसे में जिस साल सर्दियों के मौसम में चिलिंग आवर्स का पीरियड पूरा होता है और फ्लोरिंग और गर्मियों में भी मौसम साथ देता है, उस साल प्रदेश में फलों का अच्छा उत्पादन हुआ है.

Himachal Apple
सेब की पैदावार के लिए चिलिंग आवर्स पीरियड शुरू (File Photo)

चिलिंग आवर्स क्या हैं, क्यों है जरूरी?

सर्दियों के मौसम में जब एक सप्ताह तक 24 घंटे के दौरान सामान्य तौर पर तापमान 0 से 7 डिग्री सेल्सियस रहता है. वो ही चिलिंग आवर्स होते हैं. इससे ही चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होता है. सेब सहित अन्य फलों के चिलिंग आवर्स का पीरियड दिसंबर से मार्च महीने तक रहता है, लेकिन दिसंबर और जनवरी महीने में कड़ाके ठंड रहने से ही चिलिंग आवर्स के पूरे होने की अधिक संभावना रहती है. इसके लिए दिसंबर महीने की बर्फबारी किसी संजीवनी से कम नहीं है. विशेषज्ञों के मुताबिक चिलिंग आवर्स पूरा होने से पौधों में एक समय पर फ्लोरिंग एक बराबर होती है. सभी बीमों में फूल सही तरह से खिलता है. जिससे फलों की सेटिंग अच्छी होने की संभावना रहती है.

Himachal Apple
इस साल अधिक सेब उत्पादन की उम्मीद (ETV Bharat)

किन फलों को कितने चिलिंग आवर्स की जरूरत

हिमाचल में सेब सहित अन्य फलों के लिए भी चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. विशेषज्ञों के मुताबिक सेब की रेड डिलीशियस वैरायटी के लिए सबसे अधिक 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है. रॉयल सेब के लिए 1000 से 1100 घंटे के चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. स्पर वैरायटी के लिए 800 से 900 घंटे व गाला प्रजाति सेब के लिए 700 से 800 घंटे तक के चिलिंग आवर्स पूरा होना आवश्यक है. इसी तरह से स्टोन फ्रूट में प्लम के लिए 300 से 400 घंटे, खुबानी 300 से 400, नाशपाती के लिए 700 से 800 घंटे व अंगूर के लिए 300 से 400 घंटे, चेरी के लिए 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. तभी सेब सहित स्टोन फ्रूट का उत्पादन अच्छा रहता है.

बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज का कहना है, "इस बार कड़ाके की ठंड पड़ने से चिलिंग आवर्स का पीरियड दिसंबर में शुरू हो गया है. ऐसा 20 साल बाद हुआ है. जिससे इस बार चिलिंग आवर्स समय पर पूरा होने की अधिक संभावना है. जो सेब की पैदावार के लिए बहुत जरूरी है. दिसंबर में अभी उम्मीद के मुताबिक बर्फबारी नहीं हुई है, लेकिन प्रदेश में बारिश अच्छी हुई है. लंबे सूखे की वजह से अधिक गहराई तक अभी नमी नहीं पहुंची है."

Himachal Apple
1,16,240 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन (File Photo)

प्रदेश में कितने हेक्टेयर में बागवानी?

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में बागवानी का योगदान करीब 6 हजार करोड़ का है. प्रदेश में बागवानी के तहत कुल 2,36,950 हेक्टेयर पड़ता है. जिसमें सेब का हिस्सा करीब 85 फीसदी है. प्रदेश में बागवानी का लगातार विस्तार हो रहा है. हिमाचल में 2023-24 में 1,16,240 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब के तहत आता है. इसी तरह से 27,373 हेक्टेयर में स्टोन फ्रूट के तहत है. ड्राई फ्रूट का उत्पादन 9,277 हेक्टेयर में लिए जा रहा है. सिट्रस के तहत बागवानी का 26,432 हेक्टेयर एरिया कवर होता है. प्रदेश में वर्ष 1950-51 में 400 हेक्टेयर में सेब की पैदावार होती थी, ये क्षेत्र 2023-24 में अब बढ़कर में 1,16,240 हेक्टेयर तक फैल गया है. चिंता की बात ये है कि प्रदेश में बागवानी के तहत क्षेत्र तो लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उत्पादन में इतनी अधिक बढ़ोतरी नजर नहीं आ रही है. जिसमें पिछले कई सालों से मौसम में हो रहा बदलाव एक मुख्य कारण है.

Himachal Apple
हिमाचल में सेब का उत्पादन (ETV Bharat)

पिछले 10 सालों में सेब उत्पादन

उद्यान विभाग की ओर से जारी आंकड़ों पर गौर करें तो हिमाचल में सेब उत्पादन कम रहा था. प्रदेश में साल 2024-25 में सेब उत्पादन 2,09,43,552 पेटी है. इसमें अभी MIS और सीए स्टोर के सेब का आंकड़ा जुड़ना बाकी है. इसी तरह से 2023-24 में प्रदेश में 2,11,11,972 पेटियां सेब का उत्पादन हुआ था. उस दौरान सेब के बॉक्स का स्टैंडर्ड साइज 24 किलो का था. इसी तरह से साल 2022-23 में हिमाचल में सेब उत्पादन 3,36,17,133 पेटी रहा था. उस समय सेब के बॉक्स का स्टैंडर्ड साइज 20 किलो वजन का था. वहीं, 2021-22 में प्रदेश में 3,05,95,058 पेटी उत्पादन रहा था. 2020-21 में भी सेब की पैदावार कम रही थी, उस दौरान प्रदेश में 2,40,53,099 सेब पेटियों का उत्पादन हुआ था. इसी तरह से 2019-20 में सेब उत्पादन 3.24 करोड़, साल 2018-19 में प्रदेश में सेब की पैदावार 1.65 करोड़ पेटी रही थी. वहीं, साल 2017-18 में सेब उत्पादन 2.08 करोड़ पेटी रहा था. इसी तरह से साल 2016-17 प्रदेश में 2.40 करोड़ सेब की पेटियां हुई थी. वहीं, 2015-16 में सेब उत्पादन 3.88 करोड़ पेटी रहा था.

सालउत्पादन (पेटियां)
20153.88 करोड़
20162.40 करोड़
20172.08 करोड़
20181.65 करोड़
20193.24 करोड़
20202.40 करोड़
20213.5 करोड़
20223.36 करोड़
20232.11 करोड़
20242.09 करोड़

सेब की पैदावार के लिए अभी क्या न करें

बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने बताया कि सेब की पैदावार के लिए अभी ये काम न करें:

  • सेब के तौलिए (पौधों के आसपास खुदाई) न करें.
  • अभी घास से भी छेड़छाड़ न करें, इससे नमी गायब हो सकती है.
  • सेब की प्रूनिंग में भी अभी जल्दबाजी न करें.
  • अभी जरूरी होने पर हल्की कांट छांट कर सकते हैं.
  • प्रूनिंग के लिए अभी फरवरी तक का समय है.
  • जल्दी प्रूनिंग करने से कई बीमारियां लगने की आशंका रहती है.
ये भी पढ़ें: किसानों-बागवानों के लिए वरदान साबित हुई बारिश-बर्फबारी, मुरझाई फसलें फिर लगी खिलने
Last Updated : Dec 31, 2024, 10:36 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.