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हर साल डायरिया की चपेट में आ रहे लाखों बच्चे, रोटा वायरस टीके से बचाएं जान - child deaths due to diarrhea

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 30, 2024, 12:42 PM IST

दूषित भोजन-पानी से बच्चे डायरिया की चपेट में आ जाते हैं. समय पर इलाज न होने से बच्चे की जान तक जा सकती है. रोटावायरस का टीका लगवाकर पेरेंन्ट्स अपने बच्चों को जानलेवा डायरिया से बचा सकते हैं.

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डायरिया की चपेट में आ रहे हैं लाखों बच्चे (photo credit- Etv Bharat)

लखनऊ: डायरिया की चपेट में आने से हर साल लाखों बच्चे बीमार हो रहे हैं. काफी बच्चे दम भी तोड़ रहे हैं. इन बच्चों की जान आसानी से बचाई जा सकती है. रोटावायरस का टीका लगवाकर बच्चों को जानलेवा डायरिया से बचा सकते हैं. वहीं डायरिया होने पर ओआरएस का घोल पिलाएं. इससे आसानी से डायरिया पर काबू पाया जा सकता है.

सोमवार को शहीद पथ स्थित मातृ शिशु एवं रेफरल हॉस्पिटल में ओआरएस जागरुकता सप्ताह मनाया गया. लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा, कि पांच साल तक के बच्चों को टीकाकरण कराएं. सरकारी अस्पतालों में सभी टीके मुफ्त लगाए जा रहे हैं. टीकाकरण न होने से बच्चों में रोगों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है. नतीजतन बीमारी आसानी से घेर लेती है. दूषित भोजन-पानी से बच्चे डायरिया की चपेट में आ जाते हैं. समय पर इलाज न होने से बच्चे की जान तक जा सकती है. वहीं बार-बार डायरिया होने से बच्चे कुपोषण की चपेट में आ सकते हैं. ओआरएस और जिंक देने से बीमारी आसानी से काबू में आ सकती है.

डॉ. पीयूष उपाध्याय ने कहा, कि साफ सफाई, ओआरएस और जिंक से हम डायरिया से होने वाली मृत्यु दर को शून्य पर ला सकते हैं. यदि दस्त में ओआरएस और जिंक का असर नहीं हो रहा है, पेशाब कम हो रहा है, बच्चा सुस्त हो रहा है. मल में खून आ रहा हैद. बच्चा ओआरएस नहीं पी रहा है, तो बच्चे को तुरंत नजदीक अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए. बाल रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. दीप्ति अग्रवाल, डॉ. एसडी कांडपाल ने डायरिया में ओआरएस के सही उपयोग और लाभों के बारे में विस्तार से बताया. इस अवसर पर मातृ शिशु रेफरल हॉस्पिटल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. श्रीकेश सिंह समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे.

इसे भी पढ़े-ललितपुर में डायरिया का प्रकोप; एक मासूम की मौत, 18 बच्चे बीमार


दो हफ्तों से ज्यादा खांसी आना न करें नजरअंदाज: पृथ्वी के पांच अहम तत्वों की भांति टीबी के भी पांच लक्षण हैं. जिसमें दो हफ्तों से ज्यादा खांसी, खांसी में खून आना, रात में बुखार के साथ पसीना, भूख कम लगना और वजन में कमी. इन लक्षणों के नजर आने पर डॉक्टर की सलाह लें. यह जानकारी केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने दी. वह केजीएमयू में राजधानी के सात मेडिकल कॉलेजों के लिए आयोजित टीबी पर कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे.

डॉ. सूर्यकांत ने कहा, कि टीबी का पुख्ता इलाज है. छह माह से एक साल तक टीबी का इलाज चलता है. सरकारी अस्पतालों में टीबी की जांच से लेकर इलाज तक मुफ्त है. वहीं, टीबी का इलाज कराने वाले मरीजों को पोषण भत्ता भी प्रदान किया जा रहा है. टीबी को हराने के लिए समय पर पूरा इलाज लें. इलाज अधूरा छोड़ना घातक है. इससे मरीज मल्टी ड्रग रजिस्टेंट की चपेट में आ सकता है.

कार्यशाला में लोहिया, पीजीआई, इंटीग्रल, एरा, कॅरियर, टीएस मिश्रा, प्रसाद मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ शामिल हुए. इसमें जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. अतुल कुमार सिंघल, डॉ. अजय कुमार वर्मा, आयोजन सचिव, डॉ. दर्शन कुमार बजाज, सह सचिव डॉ. ज्योति बाजपेई, डॉ. अंकित कुमार ने भी कार्यशाला को संबोधित किया.

यह भी पढ़े-अस्पतालों में उल्टी-दस्त और डायरिया के मरीजों की संख्या बढ़ी, इन चीजों से करें परहेज - Lucknow news

लखनऊ: डायरिया की चपेट में आने से हर साल लाखों बच्चे बीमार हो रहे हैं. काफी बच्चे दम भी तोड़ रहे हैं. इन बच्चों की जान आसानी से बचाई जा सकती है. रोटावायरस का टीका लगवाकर बच्चों को जानलेवा डायरिया से बचा सकते हैं. वहीं डायरिया होने पर ओआरएस का घोल पिलाएं. इससे आसानी से डायरिया पर काबू पाया जा सकता है.

सोमवार को शहीद पथ स्थित मातृ शिशु एवं रेफरल हॉस्पिटल में ओआरएस जागरुकता सप्ताह मनाया गया. लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा, कि पांच साल तक के बच्चों को टीकाकरण कराएं. सरकारी अस्पतालों में सभी टीके मुफ्त लगाए जा रहे हैं. टीकाकरण न होने से बच्चों में रोगों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है. नतीजतन बीमारी आसानी से घेर लेती है. दूषित भोजन-पानी से बच्चे डायरिया की चपेट में आ जाते हैं. समय पर इलाज न होने से बच्चे की जान तक जा सकती है. वहीं बार-बार डायरिया होने से बच्चे कुपोषण की चपेट में आ सकते हैं. ओआरएस और जिंक देने से बीमारी आसानी से काबू में आ सकती है.

डॉ. पीयूष उपाध्याय ने कहा, कि साफ सफाई, ओआरएस और जिंक से हम डायरिया से होने वाली मृत्यु दर को शून्य पर ला सकते हैं. यदि दस्त में ओआरएस और जिंक का असर नहीं हो रहा है, पेशाब कम हो रहा है, बच्चा सुस्त हो रहा है. मल में खून आ रहा हैद. बच्चा ओआरएस नहीं पी रहा है, तो बच्चे को तुरंत नजदीक अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए. बाल रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. दीप्ति अग्रवाल, डॉ. एसडी कांडपाल ने डायरिया में ओआरएस के सही उपयोग और लाभों के बारे में विस्तार से बताया. इस अवसर पर मातृ शिशु रेफरल हॉस्पिटल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. श्रीकेश सिंह समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे.

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दो हफ्तों से ज्यादा खांसी आना न करें नजरअंदाज: पृथ्वी के पांच अहम तत्वों की भांति टीबी के भी पांच लक्षण हैं. जिसमें दो हफ्तों से ज्यादा खांसी, खांसी में खून आना, रात में बुखार के साथ पसीना, भूख कम लगना और वजन में कमी. इन लक्षणों के नजर आने पर डॉक्टर की सलाह लें. यह जानकारी केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने दी. वह केजीएमयू में राजधानी के सात मेडिकल कॉलेजों के लिए आयोजित टीबी पर कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे.

डॉ. सूर्यकांत ने कहा, कि टीबी का पुख्ता इलाज है. छह माह से एक साल तक टीबी का इलाज चलता है. सरकारी अस्पतालों में टीबी की जांच से लेकर इलाज तक मुफ्त है. वहीं, टीबी का इलाज कराने वाले मरीजों को पोषण भत्ता भी प्रदान किया जा रहा है. टीबी को हराने के लिए समय पर पूरा इलाज लें. इलाज अधूरा छोड़ना घातक है. इससे मरीज मल्टी ड्रग रजिस्टेंट की चपेट में आ सकता है.

कार्यशाला में लोहिया, पीजीआई, इंटीग्रल, एरा, कॅरियर, टीएस मिश्रा, प्रसाद मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ शामिल हुए. इसमें जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. अतुल कुमार सिंघल, डॉ. अजय कुमार वर्मा, आयोजन सचिव, डॉ. दर्शन कुमार बजाज, सह सचिव डॉ. ज्योति बाजपेई, डॉ. अंकित कुमार ने भी कार्यशाला को संबोधित किया.

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