छिंदवाड़ा: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में नगर निगम अंतर्गत काम करने वाले दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों का अपने नीचे ठेका कर्मचारियों को रखने का मामला सामने आया है. कुछ दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों और अफसरों पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे सरकारी नियमों को साइडलाइन करते हुए अपने रिश्तेदारों को लाभ पहुंचा रहे हैं. बताया गया कि बैकडोर से कर्मचारियों ने अपने भाई-भतीजों का भर्ती करा लिया है. जिससे निगम की वसूली का बड़ा हिस्सा इन कर्मचारियों के वेतन में ही खर्च हो रहा है.
निगम के वित्तीय गणित में गड़बड़ी
इस मामले को लेकर कहा जा रहा है कि सालों से जमे कुछ कर्मचारियों ने निगम में अपने रिश्तेदारों की भर्ती कर ली है. वहीं, कुछ शाखाओं में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के नीचे भी ठेका कर्मचारियों को रखा गया है. इनका काम कुछ नहीं है, लेकिन निगम से इन्हें वेतन मिल रहा है. स्थापना शाखा के अनुसार 2014 में निगम गठन के समय यहां कर्मचारियों की संख्या 750 थी, जो आज बढ़कर 1941 हो गई है. इन 10 सालों में 1200 कर्मचारियों की बैकडोर से भर्ती किए जाने का आरोप है.
3 करोड़ से अधिक सिर्फ वेतन में खर्चा
बताया जा रहा है कि नगर निगम की वसूली के 3 करोड़ 35 लाख रुपए सिर्फ कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो रहे हैं. जबकि शासन से आने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि में हर माह कटौती हो रही है. सितंबर में महज 62 लाख रुपए चुंगी क्षतिपूर्ति राशि शासन ने नगर निगम को प्रदान की. 87 लाख रुपए की कटौती कर दी. कहा जा रहा है कि वसूली के जिन रुपयों से शहर का विकास कार्य होना था, वह राशि बेवजह रखे गए कर्मचारियों के वेतन में खर्च हो रहा है.
स्वास्थ्य शाखा में 900 कर्मचारी
नगर निगम में सबसे अधिक करीब 900 कर्मचारी नगर निगम के स्वास्थ्य शाखा में हैं. जिसमें सबसे अधिकतर सफाई कर्मी शामिल हैं. जिनके बारे में बताया जाता है कि कई ऐसे कर्मचारी भी हैं, जो काम में आते ही नहीं हैं, लेकिन वेतन पूरा उठाते हैं और इनके वेतन का एक बड़ा हिस्सा वार्ड सुपरवाइजर से लेकर स्वास्थ्य शाखा में बनी अफसरों की एक-एक चैन तक पहुंचा है. बताया गया कि कुछ वार्डों में वार्ड दरोगा के नीचे असिस्टेंट वार्ड दरोगा रख लिए गए हैं.
मिलीभगत कर कर्मचारियों की भर्ती का आरोप
नगर निगम में कर्मचारियों की भर्ती को लेकर विपक्ष की और से आरोप लगया जाता रहा है कि पूरा खेल ठेका कर्मचारी की भर्ती से शुरू होता है. थोड़े दिन बाद ही इन कर्मचारियों को मस्टर रोल में शामिल कर लिया जाता है. इसमें शाखा प्रभारी से लेकर बाबू की सीधी मिलीभगत होती है. दबाव बनाकर वेतन भी निकाला जाने लगता है. बताया गया कि निगम में बैकडोर से सबसे अधिक भर्ती तब हुई, जब निगम परिषद का पहला कार्यकाल खत्म हो गया था और कमान अधिकारियों के हाथों में थी.
हर विभाग से आते हैं मस्टर लिस्ट
नगर निगम में स्थापना शाखा है, लेकिन इसके बावजूद हर विभाग का अलग मस्टर वेतन के लिए आता है. स्थापना शाखा की माने तो निगम में 1879 कर्मी हैं, लेकिन असल में वेतन 1941 कर्मचारियों का निकलता है. बताया गया कि सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा नाला कर्मचारियों के नाम पर निगम में हो रहा है.
ये भी पढ़ें: 400 करोड़ से बनेगी 22 सड़कें; इंदौर का बदलेगा हुलिया, देखें कौन सी सड़क कहां से कहां तक बनेगी नगर निगम में काम करने वालों की बल्ले-बल्ले, चेक करें बैंक अकाउंट मोहन यादव ने भेजे हैं रुपए |
क्या कहते हैं इस पर अधिकारी
नगर निगम कमिश्नर चंद्र प्रकाश राय का इस पूरे मामले को लेकर कहना है कि "दैनिक वेतन भोगियों ने भी ठेका कर्मचारियों को अपने अधीन काम में रखा है, ऐसी जानकारी मिली है. इस मामले की उचित जांच कराई जाएगी. इसके बाद जहां जरूरत होगी, सिर्फ उन्हीं कर्मचारियों को रखा जाएगा, क्योंकि सरकार से मिलने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति में भी लगातार कटौती की जा रही है."