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जामुन से बनें लखपति, छिंदवाड़ा के लड़के ने खोजा पल्प सिरके का फार्म्यूला, महाराष्ट्र से दिल्ली तक डिमांड - chhindwara Blackberry Farming

गुणों से भरपूर जामुन का सीजन आ गया है. जामुन और उसके पल्प से बना सिरका सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. वैसे तो जामुन की खेती के लिए जून और जुलाई का महीना सबसे अच्छा होता है. लेकिन अब जामुन की बागबानी साल भर की जा सकती है. छिंदवाड़ा का एक युवा जामुन की खेती कर उसके पल्प से सिरका बनाकर कमाई कर रहा है. साथ ही कई लोगों को रोजगार भी मिला है.

chhindwara Blackberry Farming
जामुन की खेती से लाखों की कमाई (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 20, 2024, 1:14 PM IST

Updated : May 20, 2024, 2:11 PM IST

छिंदवाड़ा। पेट और लीवर की बीमारी में रामबाण इलाज कहे जाने वाले जामुन का स्वाद अब साल भर चखा जा सकता है. दरअसल यह मौसमी फल है जो बरसात के शुरुआती मौसम में पकता है. लेकिन अब प्रोसेसिंग के जरिए इसका उपयोग साल भर किया जा सकता है. ऐसा ही छिंदवाड़ा के एक युवा ने किया है. जामुन के पल्प से सिरका और गुठलियों से चूर्ण बनाया जा रहा है. जामुन से होने वाले उत्पाद को तैयार करने के लिए स्वरोजगार भी स्थापित किया गया है.

chhindwara Blackberry Farming
छिंदवाड़ा में युवा कर रहे जामुन की खेती, लोगों को मिला रोजगार (Etv Bharat)

दूसरे जिलों से भी मंगाई जाती है जामुन, मिल रहा रोजगार

मौसमी फल जामुन का सीजन आ गया है, जो अब स्वादिष्ट फल के अलावा बीमारियों के इलाज में भी काम आ रहा है. जामुन के पल्प यानी गुदा से सिरका बनाया जा रहा है और गुठलियों का चूर्ण दवाई बनाने के उपयोग में लाया जा रहा है. छिंदवाड़ा जिले में वैसे जामुन का उत्पादन होता है लेकिन पल्प के लिए मंडला और महाराष्ट्र क्षेत्र से आने वाली जामुन का उपयोग ज्यादा किया जा रहा है. जामुन से होने वाले उत्पाद को तैयार करने के लिए स्वरोजगार भी स्थापित किया गया है, जिसमें लोगों को रोजगार के साथ जिले से बनने वाले प्रोडेक्ट की बाहर सप्लाई की जा रही है. हालांकि जिले में जामुन की कोई विशेष वेरायटी नहीं है और देशी जामुन का ही उत्पादन होता है. ऐसे में इस काम को करने के लिए महाराष्ट्र और मंडला से आने वाली जामुन से इन उत्पादों में को तैयार किया जाता है. इस यूनिट को चलाने के लिए तकरीबन 40 महिलाओं को इससे रोजगार भी मिला है.

ऐसे तैयार हो रहा पल्प, साल भर आता है काम

हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में कपिल नरोटे ने जामुन के पल्प के साथ इस व्यवसाय को को शुरू किया है. जामुन के पल्प का सिरका और इसकी गुठलियों से चूर्ण तैयार किया जाता है. यहां से अहमदाबाद, इंदौर सहित दूसरे महानगर में इसकी डिमांड है. हर साल औसतन सात से आठ टन जामुन से सिरका और गुठलियों का चूर्ण तैयार किया जा रहा है. सीताफल की तरह जामुन के पल्प से भी जूस बनाया जा रहा है. यह जूस अहमदाबाद, पूना में कोल्ड ड्रिंक्स और अन्य उत्पादों में काम आ रहा है. जामुन के साथ यह खास बात है कि इसके पल्प के साथ-साथ इसकी गुठलियां भी काम आती हैं. जामुन के सिरके को तैयार करने के बाद इसे मानइस 20 डिग्री में रखना होता है.

जामुन, सीताफल जैसे जंगली फलों से करते हैं पल्प तैयार

जंगली फलों से पल्प तैयार कर सप्लाई करने वाले विलास नरोटे ने बताया कि, ''पिछले कई सालों से जामुन का सिरका और गुठलियों का चूर्ण बना रहे हैं. इसके अलावा वे सीताफल का भी पल्प बनाते हैं. इसके लिए उन्हें मंडला और महाराष्ट्र से जामुन बुलानी पड़ती है, जिसमें गुदा ज्यादा होता है. जामुन के सिरके की महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा डिमांड है. सीताफल के पल्प के बाद जामुन के पल्प से सिरका भी तैयार किया जा रहा है. जिसकी हर साल लगातार डिमांड बढ़ रही है और उनकी गुठलियां भी चूर्ण बनाने में काम आती है.''

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जिद्दी दाग और गंभीर बीमारियों का चुटकियों में खात्मा, 'बंदर की रोटी' के चमत्कार के बारे में आज तक किसी ने नहीं बताया होगा - BENEFITS OF BANDER KI ROTI TREE

बटर खाने के फायदे भी हैं अनेक, इस तरह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है मक्खन - Benefits Of Butter

घर के आंगन में लगी तुलसी बेहद गुणकारी, पत्तियां बता देती हैं घर का हाल और बना देती हैं चुस्त-दुरुस्त

कई बीमारियों को जड़ से करता है खत्म

वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि ''जामुन के फल में आयरन और फास्फोरस जैसे तत्व प्रचुरता से पाए जाते हैं. जामुन के फलों के साथ-साथ इसके गुठली, पत्तियों, छाल और अन्य अंगों के भी जबरदस्त औषधीय गुण हैं. आदिवासी जामुन के तमाम अंगों को विभिन्न हर्बल नुस्खों के तौर पर इलाज के लिए खूब आजमाते भी हैं. गांव देहातों के हर्बल जानकार मानते हैं कि भोजन के बाद 100 ग्राम जामुन फल का सेवन मौसमी बदलाव से जुड़े कई विकारों में बहुत फायदेमंद साबित होता है. एनीमिया खून की कमी को दूर करने में और खून में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए जामुन एकदम सॉलिड है.''

जामुन की ये कई किस्में गुलाब जामुन कि डिमांड ज्यादा

उद्यानिकी महाविद्यालय छिंदवाड़ा के वैज्ञानिक डॉ. आर. के. झाड़े ने बताया कि छिंदवाड़ा में जामुन की सिर्फ एक किस्म होती है जिसे देश या फिर चालू भाषा में जंगली कहां जाता है. हालांकि जामुन की और भी किस्में है लेकिन छिंदवाड़ा में इनका चलन नहीं है. वर्तमान में जामुन की वेरायटी गुलाब जामुन ज्यादा प्रचलित है जिसका पल्प भी ज्यादा रहता है, इसी प्रकार राजस्थान में गोमा प्रियंका जामुन भी प्रचलन में है.''

छिंदवाड़ा। पेट और लीवर की बीमारी में रामबाण इलाज कहे जाने वाले जामुन का स्वाद अब साल भर चखा जा सकता है. दरअसल यह मौसमी फल है जो बरसात के शुरुआती मौसम में पकता है. लेकिन अब प्रोसेसिंग के जरिए इसका उपयोग साल भर किया जा सकता है. ऐसा ही छिंदवाड़ा के एक युवा ने किया है. जामुन के पल्प से सिरका और गुठलियों से चूर्ण बनाया जा रहा है. जामुन से होने वाले उत्पाद को तैयार करने के लिए स्वरोजगार भी स्थापित किया गया है.

chhindwara Blackberry Farming
छिंदवाड़ा में युवा कर रहे जामुन की खेती, लोगों को मिला रोजगार (Etv Bharat)

दूसरे जिलों से भी मंगाई जाती है जामुन, मिल रहा रोजगार

मौसमी फल जामुन का सीजन आ गया है, जो अब स्वादिष्ट फल के अलावा बीमारियों के इलाज में भी काम आ रहा है. जामुन के पल्प यानी गुदा से सिरका बनाया जा रहा है और गुठलियों का चूर्ण दवाई बनाने के उपयोग में लाया जा रहा है. छिंदवाड़ा जिले में वैसे जामुन का उत्पादन होता है लेकिन पल्प के लिए मंडला और महाराष्ट्र क्षेत्र से आने वाली जामुन का उपयोग ज्यादा किया जा रहा है. जामुन से होने वाले उत्पाद को तैयार करने के लिए स्वरोजगार भी स्थापित किया गया है, जिसमें लोगों को रोजगार के साथ जिले से बनने वाले प्रोडेक्ट की बाहर सप्लाई की जा रही है. हालांकि जिले में जामुन की कोई विशेष वेरायटी नहीं है और देशी जामुन का ही उत्पादन होता है. ऐसे में इस काम को करने के लिए महाराष्ट्र और मंडला से आने वाली जामुन से इन उत्पादों में को तैयार किया जाता है. इस यूनिट को चलाने के लिए तकरीबन 40 महिलाओं को इससे रोजगार भी मिला है.

ऐसे तैयार हो रहा पल्प, साल भर आता है काम

हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में कपिल नरोटे ने जामुन के पल्प के साथ इस व्यवसाय को को शुरू किया है. जामुन के पल्प का सिरका और इसकी गुठलियों से चूर्ण तैयार किया जाता है. यहां से अहमदाबाद, इंदौर सहित दूसरे महानगर में इसकी डिमांड है. हर साल औसतन सात से आठ टन जामुन से सिरका और गुठलियों का चूर्ण तैयार किया जा रहा है. सीताफल की तरह जामुन के पल्प से भी जूस बनाया जा रहा है. यह जूस अहमदाबाद, पूना में कोल्ड ड्रिंक्स और अन्य उत्पादों में काम आ रहा है. जामुन के साथ यह खास बात है कि इसके पल्प के साथ-साथ इसकी गुठलियां भी काम आती हैं. जामुन के सिरके को तैयार करने के बाद इसे मानइस 20 डिग्री में रखना होता है.

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जंगली फलों से पल्प तैयार कर सप्लाई करने वाले विलास नरोटे ने बताया कि, ''पिछले कई सालों से जामुन का सिरका और गुठलियों का चूर्ण बना रहे हैं. इसके अलावा वे सीताफल का भी पल्प बनाते हैं. इसके लिए उन्हें मंडला और महाराष्ट्र से जामुन बुलानी पड़ती है, जिसमें गुदा ज्यादा होता है. जामुन के सिरके की महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा डिमांड है. सीताफल के पल्प के बाद जामुन के पल्प से सिरका भी तैयार किया जा रहा है. जिसकी हर साल लगातार डिमांड बढ़ रही है और उनकी गुठलियां भी चूर्ण बनाने में काम आती है.''

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कई बीमारियों को जड़ से करता है खत्म

वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉक्टर विकास शर्मा ने बताया कि ''जामुन के फल में आयरन और फास्फोरस जैसे तत्व प्रचुरता से पाए जाते हैं. जामुन के फलों के साथ-साथ इसके गुठली, पत्तियों, छाल और अन्य अंगों के भी जबरदस्त औषधीय गुण हैं. आदिवासी जामुन के तमाम अंगों को विभिन्न हर्बल नुस्खों के तौर पर इलाज के लिए खूब आजमाते भी हैं. गांव देहातों के हर्बल जानकार मानते हैं कि भोजन के बाद 100 ग्राम जामुन फल का सेवन मौसमी बदलाव से जुड़े कई विकारों में बहुत फायदेमंद साबित होता है. एनीमिया खून की कमी को दूर करने में और खून में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए जामुन एकदम सॉलिड है.''

जामुन की ये कई किस्में गुलाब जामुन कि डिमांड ज्यादा

उद्यानिकी महाविद्यालय छिंदवाड़ा के वैज्ञानिक डॉ. आर. के. झाड़े ने बताया कि छिंदवाड़ा में जामुन की सिर्फ एक किस्म होती है जिसे देश या फिर चालू भाषा में जंगली कहां जाता है. हालांकि जामुन की और भी किस्में है लेकिन छिंदवाड़ा में इनका चलन नहीं है. वर्तमान में जामुन की वेरायटी गुलाब जामुन ज्यादा प्रचलित है जिसका पल्प भी ज्यादा रहता है, इसी प्रकार राजस्थान में गोमा प्रियंका जामुन भी प्रचलन में है.''

Last Updated : May 20, 2024, 2:11 PM IST
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