छिंदवाड़ा। अब तक आपने गेहूं, ज्वार, बाजरा, चावल की रोटी के बारे में सुना होगा और खाया होगा. लेकिन आपसे पूछा जाए कि क्या कभी बंदर की रोटी के बारे में सुना है या उसका स्वाद चखा है. तो आपका जवाब होगा नहीं. लेकिन यह सच है, बंदर की भी रोटी होती है. बंदर की रोटी इसलिए क्योंकि जंगलों में पाए जाने वाले इस पेड़ के फल बंदर को काफी पसंद होते हैं, इसलिए इसे बंदर की रोटी कहा जाता है. बंदर की रोटी इंसानों के लिए भी बेहद फायदेमंद है. यह माउथ फ्रेशनर के साथ-साथ ब्लड प्रेशर को भी कम करने का काम करती है.
ब्लड प्रेशर की दवा का करती है काम
खाने के बाद विशेष सामग्री जो पाचन को आसान बनाकर मुंह में ताजगी ले आये उन्हें माउथ फ्रेशनर या मुखवास कहा जाता है. सामान्यतः मुखवास के रूप में सौंफ, अजवाईन, लौंग, इलायची, मीठी सौंफ, गुलाब कतरी आदि का चलन है. लेकिन कभी कभार तिल, अलसी, जगनी, मगच आदि के दुर्लभ दर्शन भी ट्रे में हो जाते होंगे. लेकिन ग्रामीणों के घरों में आपको चाय और खाने के बाद बंदर की रोटी भी सर्व की जाती है.
बंदर की रोटी माउथ फ्रेशनर का शहंशाह
सरकारी कॉलेज चौरई में वनस्पति शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि ''बंदर की रोटी एक जंगली पेड़ का फल है. इसका वैज्ञानिक नाम Holoptelea integrifolia है जो Ulmaceae परिवार का सदस्य है. थोड़ा बहुत चिरौंजी की तरह स्वाद वाला यह ड्राई फ्रूट अच्छा खासा माउथ फ्रेशनर भी है, जिसे आप सौंफ के साथ आसानी से ट्रे में देख सकते हैं. भोजन के बाद इसे सही तरह से पचाने के लिये और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिये यह दादी मां के पिटारे वाली औषधियों में से एक है. अंग्रेजी में इसे Jungle cork tree, South Indian elm tree, Monkey biscuit tree or Kanju कहते हैं. हिंदी में इस पेड़ को चिरमिल, बंदर की रोटी, बनचिल्ला, चिरबिल्ब, बंदर बाटी, चिरोल, चिलबिल, करंजी, पापरी और बेगाना कहते हैं. जबकि बंगाली में इस वृक्ष को कलमी और नाटा करंज के नाम से बुलाते हैं.''
बंदरों को खास पसंद है फल, कई मर्ज की है दवा
मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले में चिलबिल के कई पेड़ देखने को मिल जाते हैं. चिरोल, चिलबिल एक औषधीय पेड़ है. इस वृक्ष के फल भी पत्तियों के जैसे दिखाई देते हैं, जो बंदरों को काफी पसंद है, इसलिए इसे बंदर की रोटी कहा जाता है. यह बहुत से औषधीय गुणों से वाला पेड़ है और पूरे भारत में पाया जाता है. इनमें औषधीय गुणों वाले महत्वपूर्ण रसायन पाये गये हैं, जैसे एल्कलॉइड, फिनोल्स, फ्लैवनॉइड, ग्लाइकोसाइड्स और क्विनिन आदि. इस पेड़ की छाल का उपयोग गठिया की चिकित्सा के लिए प्रभावी स्थान पर लेप कर किया जाता है, जिससे सूजन उतर जाती है. इस की छाल का अन्दरूनी उपयोग आंतों के छालों के इलाज के लिए किया जाता है.
पत्तियों के लेप से सूजन का इलाज
जानकारों के अनुसार, सूखी छाल का प्रयोग गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भाशय के संकुचन को प्रारम्भ करने के लिए किया जाता है, जिस से प्रसव आसानी से हो सके. पत्तियों को लहसुन के साथ पीस कर दाद, एक्जीमा आदि त्वचा रोगों में किया जाता है. पत्तियों को लहसुन और काली मिर्च के पीस कर गोलियाँ बनाई जाती हैं और एक गोली प्रतिदिन पीलिया के रोगी को चिकित्सा के लिए दी जाती है. लसिका ग्रन्थियों की सूजन में इस की छाल का लेप प्रयोग में लिया जाता है.
खून साफ करते वाली औषधी है बंदर की रोटी
छाल के लेप का उपयोग सामान्य बुखार में रोगी के माथे पर किया जाता है. इसमें पाये जाने वाले महत्वपूर्ण रसायन होलोप्टेलीन ए और बी भयंकर रोगों जैसे लेप्रोसी, रिकेट्स, ल्युकोडर्मा, वात रोग, दाद- खाज-खुजली, मलेरिया बुखार, घाव भरने और यहाँ तक कि कैंसर प्रतिरोधी दवा के तौर पर प्रयोग किये जाते हैं. बीजों का तेल कार्बोहायड्रेट, संतृप्त तथा असंतृप्त बसीय अम्ल, प्रोटीन, फाइबर, सूक्ष्म तथा वृहद पोषक तत्व से भरपूर होता है. आयुर्वेद में इसे खून साफ करने वाली यानि रक्त के घटकों को बैलेंस करने वाली औषधियों में गिना जाता है.