सरगुजा: राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड के लिए छत्तीसगढ़ कोयला देता है. इस पावर जनरेशन कंपनी को सरगुजा और कोरबा के जंगलों में माइनिंग की अनुमति मिली हुई है. लिहाजा माइनिंग के लिए पेड़ काटे गए, हसदेव के जंगल को बचाने तमाम विरोध और मुहिम चल रही हैं. चिंता इस बात की ज्यादा थी कि आम जंगल तो दोबारा लगाए जा सकते हैं, लेकिन हसदेव में साल का जंगल है. साल के जंगल को दोबारा लगा पाना आसान नहीं होता. हालांकि कंपनी के उद्यानिकी विभाग के एक्सपर्ट अब इसे भी सम्भव कर रहे हैं.
जमीन ले रही जंगल का रूप: यहां साल के बीजों को गिरने में 48 घंटे के अंदर ही फार्म में लाकर प्लांट कर दिया जाता है. इससे वो बीज बच जाता है. ऐसा करते हुए यहां खदान वाली जमीन को रीक्लेम्ड करते हुए उसमे साल समेत तमाम पेड़ों को लगाकर दोबारा जंगल खड़ा कर दिया गया है. बड़ी बात यह है कि साल 2013 में लगाए गए पौधे अब 15 से 20 मीटर लंबे वृक्ष बन चुके हैं. धीरे-धीरे माइनिंग की गई. ये जमीन जंगल का रूप लेती जा रही है.
साल के अलावा अन्य पौधों की तैयार की गई नर्सरी: इस बारे में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के बागवानी विभाग के कमलेश उपाध्याय ने बताया, "न सिर्फ साल के पौधों की नर्सरी तैयार की गई है, बल्कि इन्हें माइंस के रिक्लेमेशन एरिया में उगाकर एक नए जंगल को तैयार करने में सफलता हासिल की गई है. इसमें पिछले 10 सालों से अब तक 87 हजार से ज्यादा साल के पौधों को मिश्रित प्लांटेशन के रूप में रोपित किया जा चुका है, जो समयानुसार लगभग 20 से 30 फुट ऊंचाई के वृक्ष बन चुके हैं."
जर्मनी से आई एक खास ट्रांसप्लांटर मशीन से 60 इंच से कम मोटाई वाले करीब 10 हजार पेड़ों को भी जंगलों से स्थानांतरित कर इसी जगह री प्लांट किया गया है. इसमें से 7 हजार से अधिक सिर्फ साल वृक्षों को ही रिप्लांट किया गया है. साल के वृक्षों में बीजों का रिजेनरेशन मई-जून के महीने में शुरु हो जाता है. बारिश होने पर ये बीज जमीन में झड़ जाते हैं. स्वतः ही गीले मिट्टी में मिलकर रिजनरेट होना शुरू हो जाता है. कंपनी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर जंगलों में जाकर इन बीजों को इकट्ठा करना शुरू किया. इन्हें अपने नर्सरी में उपचार कर पौधे बनाना शुरू किया. -कमलेश उपाध्याय, प्रभारी, उद्यानिकी विभाग
पिछले 10 सालों की तुलना में लगाए गए कई गुणा पेड़: उद्धानिकी विभाग के हेड आर के पांडेय कहते हैं, "परसा ईस्ट कांता बासेन खदान के रीकलैम्ड क्षेत्र में अब तक 11 लाख 83 हजार से अधिक पेड़ लगाए गए हैं. यह भारत के खनन उद्योग में अब तक का सबसे बड़ा वृक्षारोपण अभियान है. इसके अलावा, पीईकेबी खदान ने वन विभाग के मार्गदर्शन में साल 2023-24 में इस अभियान के तहत 2 लाख 10 हजार से अधिक पेड़ लगाए हैं. बीते 10 वर्षों की तुलना में कई गुना ज्यादा पेड़ लगाने का नया कीर्तिमान रचा है. जिसमें मुख्य तौर पर साल के वृक्षों का रिजनरेशन, जो कि बहुत ही मुश्किल प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में सफलता हासिल कर लगभग 1100 एकड़ से ज्यादा भूमि में साल और अन्य वृक्षों का प्लांटेशन कर एक घना जंगल तैयार किया गया है."
बहरहाल, माइनिंग के लिए काटे गए जंगलों से जो नुकसान हुआ है, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए प्रयास बड़े हो रहे हैं. साल सहित कुल 43 तरह की प्रजाति जैसे खैर, बीजा, हर्रा, बहेरा, बरगद, सागौन, महुआ के साथ-साथ कई फलदार वृक्ष, आम, अमरूद, कटहल, पपीता के पौधों को तैयार किया गया है. नर्सरी में विकसित इन पौधों का रोपण कर हर एक पौधों को ड्रिप इरिगेशन के माध्यम से पानी देकर बड़ा किया जाता है. जो अब एक पूर्ण विकसित जंगल का रुप लेता जा रहा है. ETV भारत की टीम क्षेत्र में पहुंची और री क्लेम्ड एरिया में जाकर देखा, जहां जंगल बड़े हो रहे हैं. कोयला निकालने से जो भूमि बंजर हो चुकी थी, वहां दोबारा हरियाली छा गई है.