रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजनीतिक स्थिति की बात की जाए तो यहां सिर्फ दो दल भाजपा और कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. इन्हीं के बीच सत्ता आती और जाती रही, लेकिन थर्ड फ्रंट की बात की जाए तो कोई भी ऐसा मजबूत थर्ड फ्रंट कभी नहीं रहा. जिसने 24 साल के छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया हो या फिर गेम चेंजर रहा हो. आज तक सत्ता पर पहुंचने में थर्ड फ्रंट कामयाब नहीं रहा है. आखिर छत्तीसगढ़ में थर्ड फ्रंट की क्या भूमिका है, क्यों उसे सफलता नहीं मिली, आइये जानने की कोशिश करते हैं.
साल 2000 में छत्तीसगढ़ में थर्ड फ्रंट: मध्य प्रदेश के विभाजित होकर छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ. एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ बना. जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो उसके हिस्से में कुल 90 विधानसभा सीट आई. उस दौरान छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी और अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने. राज्य निर्माण के समय छत्तीसगढ़ में दलीय स्थिति की बात की जाए तो कांग्रेस के पास कल 48 सीट थी, जबकि भाजपा के पास 36 सीट थी, वहीं थर्ड फ्रंट की बात की जाए तो उसमें बहुजन समाज पार्टी के पास सबसे ज्यादा 3 सीट थी. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पास 1 सीट थी. 2 निर्दलीय विधायक भी थे.
साल 2003 में थर्ड फ्रंट को 3 सीटें: इसके बाद छत्तीसगढ़ में साल 2003 में विभाजन के बाद पहला विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 50 सीट मिली जबकि कांग्रेस को 37 सीट ही हाथ लग पाई. वहीं थर्ड फ्रंट की बात की जाए तो बहुजन समाज पार्टी 2 सीट जीतने में कामयाब रही. इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी 1 सीट पर जीत हासिल की.
साल 2008 में थर्ड फ्रंट को 2 सीटें: साल 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा को 50 सीट मिली. कांग्रेस को इस बार एक सीट बढ़कर 38 सीट हासिल हुई. इस बार भी थर्ड फ्रंट के रूप में बहुजन समाज पार्टी अपने 2 सीट के आंकड़े को कायम रखा.
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 49 सीट हासिल हुई. कांग्रेस को 39 सीटें मिली. इस दौरान थर्ड फ्रंट की बात की जाए तो बहुजन समाज पार्टी 1 सीट ही जीत पाई जबकि एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की.
साल 2018 में थर्ड फ्रंट को 5 सीटें: साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल करते हुए 90 में से 68 सीटों पर अपना कब्जा कर लिया. वही 15 सालों से सत्ता पर काबिज भाजपा को महज 15 सीट से संतोष करना पड़ा. इस चुनाव में थर्ड फ्रंट ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए सीटों की संख्या बढ़ा ली. इस चुनाव में अजीत जोगी की पार्टी 'जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़'(जे) 5 सीट जीतने में कामयाब रही. बहुजन समाज पार्टी की बात की जाए तो उसे 2 सीट हासिल हुई. इस तरह इस चुनाव में थर्ड फ्रंट के पास कुल 7 सीटे थी. जबकि इसके पहले विधानसभा चुनाव में दो-चार सीटों तक ही यह आंकड़ा पहुंच पाता था.
2023 छत्तीसगढ़ चुनाव में थर्ड फ्रंट को 1 सीट: हाल में संपन्न हुए 2023 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 54 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की. वहीं कांग्रेस 35 सीट ही जीत पाई. इस चुनाव में थर्ड फ्रंट ना के बराबर रहा. इस चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मात्र एक सीट हासिल हुई. जबकि बहुजन समाज पार्टी का इस चुनाव में खाता भी नहीं खुला.
छत्तीसगढ़ में थर्ड फ्रंट: छत्तीसगढ़ में थर्ड फ्रंट की स्थिति को लेकर राजनीति की जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि थर्ड फ्रंट की एक छोटी जगह हमेशा छत्तीसगढ़ की राजनीति में रही है. उसे नकारा नहीं जा सकता. उनका अपना वोट बैंक है. 4 से 5 % वोट बहुजन समाज पार्टी के हैं. साल 2003 के विधानसभा चुनाव की बात किया तो थर्ड फ्रंट ने पूरा खेल ही बिगाड़ दिया था. लेकिन यह जरूर है कि अब तक थर्ड फ्रेंड सत्ता में नहीं आई है. सिर्फ दो बड़ी मजबूत पार्टी कांग्रेस और बीजेपी ही सत्ता में रही है.
2003 के विधानसभा चुनाव ने थर्ड फ्रंट ने बिगाड़ा खेल: उचित शर्मा ने कहा कि सत्ता के समीकरण को साधने में थर्ड फ्रंट का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 2003 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए विद्याचरण शुक्ल ने एनसीपी थर्ड फ्रंट बनाकर जो चुनाव लड़ा और एक काफी बड़ा वोट परसेंटेज अपनी ओर खींचा. जिसका फायदा उस चुनाव में कहीं ना कहीं भाजपा को मिला. जबकि उस समय सरकार कांग्रेस की थी. ऐसे में थर्ड फ्रंट चुनावी समीकरण बिगाड़ते रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में खत्म हो रहा थर्ड फ्रंट: उचित शर्मा ने कहा कि हालांकि यह जरूर है कि छत्तीसगढ़ में थर्ड फ्रेंड की बहुत ज्यादा सीट नहीं है. बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की एक दो सीट अब तक थर्ड फ्रेंड की रही है. आम आदमी पार्टी लगातार संघर्ष करती रही लेकिन वर्तमान की बात की जाए तो अभी खत्म नजर आ रही है. इस तरह से जेसीसीजे, आम आदमी पार्टी , गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, बहुजन समाजव पार्टी, सर्व आदिवासी समाज की पार्टी है. इनका अच्छा वोट बैंक है. यह अलग बात है कि थर्ड फ्रंट सत्ता पर ताबीज हो या फिर ज्यादा सीट जीत पाई हो, यह संभव नहीं है.
छत्तीसगढ़ में थर्ड फ्रेंड के सक्रिय न होने को लेकर उचित शर्मा का कहना है कि थर्ड फ्रंट स्टेट की पार्टी रही है. वह पार्टी कारगर साबित हुई है. तेलंगाना की बात की जाए, आंध्र की बात की जाए, दिल्ली पंजाब की बात है , जो बनी हुई पार्टी होस उनके नेता भी वहीं के हो, छत्तीसगढ़ मैं थर्ड फ्रंट ने कभी शिद्दत से चुनाव नहीं लड़ा.
उचित शर्मा ने कहा कि 2018 विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन कुछ खास कर नहीं पाए. क्योंकि संसाधन भी नहीं थे, नेता भी नहीं थे. सामाजिक ताना बाना सही ढंग से पटरी पर नहीं बैठा सके. छत्तीसगढ़ में सिर्फ दोनों ही राजनीतिक दल भाजपा कांग्रेस काफी मजबूत है. थर्ड फ्रंट को लेकर अभी तक 24 साल के राजनीतिक इतिहास में छत्तीसगढ़ में कोई देखने को नहीं मिला है. आने वाले 14 साल भी थर्ड फ्रंड के होने की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है.