बिलासपुर: 11 मार्च, 2014 को राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर दंतेवाड़ा के तहकवाड़ा के पास सड़क निर्माण का काम चल रहा था. जिसे सुरक्षा देने 80वीं बटालियन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एफ कंपनी, सीआरपीएफ और तोंगपाल पुलिस स्टेशन के 13 पुलिस कर्मी शामिल थे. इस दिन रोड ओपनिंग पार्टी तीन सेक्शन में तोंगपाल से तहकवाड़ा के लिए रवाना हुई. सुबह साढ़े 10 बजे 30 सुरक्षाकर्मी का एक दल जैसे ही तहकवाड़ा से लगभग 4 किलोमीटर दूर पहुंचा, दरभा डिवीजन के हथियारों से लैस माओवादियों ने उनपर हमला कर दिया.
दरभा डिवीजन के माओवादी कैडरों का नेतृत्व सुरेंद्र, देवा, विनोद, सोनाधर सहित कई नक्सली कर रहे थे. करीब एक घंटे तक फायरिंग होती रही. इस हमले में 15 सुरक्षाकर्मी (11 सीआरपीएफ और 4 राज्य पुलिस कर्मी, 3 अन्य लोगों की मौत हो गई. घटना के बाद नक्सली, शहीद पुलिसकर्मी और घायल सुरक्षाकर्मियों के हथियार लूट कर ले गए. जिनमें 3 अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर समेत 6 एके-47 राइफलें, एक इंसास एलएमजी, 8- इंसास और 2 एसएलआर और काफी मात्रा में गोलियां थी.
इस बड़ी नक्सली घटना में हेड कांस्टेबल की लिखित शिकायत पर कवासी जोगा, रमेश अन्ना, सुरेंद्र, गणेश उइके, रघु, सुखराम, विनोद, सुमित्रा, देवा, पूजा, जमीली, मासा, नरेश, अनिल, हिड़मे, देवे, लक्की, जोगी, बुधराम और लगभग 150 से 200 नक्सलयों के खिलाफ जुर्म दर्ज किया. 21 मार्च 2014 को एनआईए को जांच सौंपी गई. एनआईए ने आरोपियों के खिलाफ धारा 302, 307, 120 बी आईपीसी, यूएपीए की धारा 16 और 20 के तहत आरोप पत्र पेश किया.
जगदलपुर कोर्ट ने फरवरी 2024 में सुनाई आजीवन कारावास की सजा: विशेष न्यायालय जगदलपुर ने सभी पक्षों को सुनने के बाद माओवादी कवासी जोगा निवासी अंडालपारा, चांदामेटा, थाना-दरभा, दयाराम बघेल उर्फ रमेश अन्ना बघेल, निवासी ग्राम कुमा कोलेंग बोदावाड़ा, पुलिस थाना- तोंगपाल, जिला सुकमा, मनीराम कोर्राम उर्फ बोटी निवासी चांदामेटा, थाना-दरभा, बस्तर, महादेव नाग निवासी पटेलपारा, कांदानार, थाना-दरभा को सभी धाराओं में आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नक्सलियों की अपील की खारिज: आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अपील की. 19 फरवरी को सभी की अपील पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई. बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता गरीब आदिवासी ग्रामीण हैं और उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है. उन्होंने तर्क दिया कि कोई भी प्रत्यक्ष सबूत उन्हें नक्सली घटना से नहीं जोड़ता है. साथ ही ये भी कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों में पूर्व माओवादी शामिल हैं जो सरेंडर कर पुलिसकर्मी बने हैं. जिससे उनकी गवाही अविश्वसनीय हो जाती है.
जिसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा-"अभियोजन पक्ष ने परिस्थितिजन्य और गवाह साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिसमें न्यायेतर स्वीकारोक्ति, तस्वीरें और जब्त किए गए हथियार शामिल हैं, जो अपीलकर्ताओं को माओवादी हमले से जोड़ते हैं." इस आदेश के साथ हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए चारों नक्सलियों की याचिका खारिज कर दी और उनकी उम्रकैद की सजा को यथावत रखा.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि सुरक्षा बलों पर नक्सली हमला सिर्फ आपराधिक कृत्य नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भी खतरा है. कोर्ट ने कहा कि साजिश हमेशा गुप्त रूप से रची जाती है और ऐसा करना मुश्किल हो सकता है इसके प्रत्यक्ष साक्ष्य जोड़ें. प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से ऐसे अपराध सिद्ध होते हैं.