कोरबा: छत्तीसगढ़ का सहकारिता विभाग और सहकारी समितियां किसानों के उत्थान में बेहद अहम भूमिका में है. छत्तीसगढ़ का सहकारिता मॉडल देश में सफल भी माना गया है, जिसका कारण भी लाजमी है. छत्तीसगढ़ के किसानों को खाद, बीज और लोन के वितरण से लेकर धान खरीदी तक की समस्त प्रक्रिया सहकारी समितियों के माध्यम से ही पूरी की जाती हैं. सहकारिता विभाग सहकारी समितियां के गतिविधियों की निगरानी करता है, तो सरकार के खाद्य, कृषि, नान और विपणन जैसे विभाग भी इन समितियां के साथ मिलकर काम करते हैं, जिससे कि किसानों के पंजीयन के बाद समर्थन मूल्य का वितरण उनके खातों में होता है. किसानों के धान खरीदी के लिए धान उपार्जन केंद्र हो या फिर सहकारिता बैंक इन सभी का संचालन सरकार की मदद से सहकारी समितियों द्वारा ही किया जाता है, हालांकि कई बार सहकारी समितियों के पदाधिकारी की ओर से घपले घोटाले की खबरें भी आती हैं. इस मॉडल में कई सुधार की बातें भी होती हैं, बावजूद इसके वर्तमान में छत्तीसगढ़ के किसानों से जुड़ी ज्यादातर महत्वपूर्ण योजनाओं का संचालन हो या फिर किसानो को जोड़कर रखना हो. यह सभी कार्य सहकारी समितियां के माध्यम से ही होता है.
कोरबा में 41 समितियां के अंतर्गत पंजीकृत 52000 किसान: कोरबा जिला एक का अनुसूचित जाति बाहुल्य यानी ट्राइबल जिला है. यहां समितियों का संचालन पूरी तरह से आदिवासियों के लिए काम करने वाले विभाग द्वारा किया जाता है. यहां की समितियां आदिवासी सहकारी समिति कहलाती हैं. ज्यादातर किसान आदिवासी वर्ग से आतें हैं. इन्हीं में से एक आदिवासी सहकारी समिति सोनपुरी के प्रबंधक जमाल खान हैं. जमाल खान लंबे समय से समिति के अधीन काम कर रहे हैं. वर्तमान में वह प्रबंधक हैं.
वर्तमान में किसानों से जुड़ी सभी शासन की योजनाओं का संचालन समितियों के माध्यम से ही होता है. समिति पहले किसानों का पंजीयन करती है, जिसके लिए उनसे दस्तावेज लिए जाते हैं. पंजीयन के बाद सरकारी बैंक में किसानों का खाता खुल जाता है. जहां से उनके खेत के रकबे के अनुसार उन्हें 0% ब्याज दर पर ऋण मिल जाता है. फसल नुकसान हुआ तो किसानों का फसल बीमा भी रहता है. इसके लिए किसानों को कहीं जाने की जरूरत नहीं है. पंजीयन होते ही यह सुविधा मिलने लगती है. खेती किसानी के लिए खाद और बीज का वितरण भी कृषि विभाग से मिलतकर समितियों द्वारा ही किया जाता है. जब फसल पककर तैयार हो जाती है. तब धान खरीदी और समर्थन मूल्य का वितरण भी सरकारी बैंक से ही सीधे किसानों के खाते में कर दिया जाता है. हालांकि बैंक का संचालन सरकारी कर्मचारियों के द्वारा ही होता है, लेकिन यह सहकारी बैंक होते हैं. जो मुख्य तौर पर किसानों के लिए ही कार्य करते हैं. केंद्रीयकृत बैंक में सहकारी बैंक के अध्यक्ष की भूमिका होती है. वह एक तरह से इसका नियंत्रण अपने हाथ में रखते हैं. समितियों के माध्यम से ही किसान को शासन की अलग-अलग योजनाओं का लाभ मिल रहा है, जिसके कारण आज किसान पहले के तुलना में काफी बेहतर स्थिति में है. -जमाल खान, प्रबंधक, आदिवासी सहकारी समिति, सोनपुरी
धान खरीदी के बाद समितियों को 4% कमिशन : सहकारी समितियां का गठन छत्तीसगढ़ फॉर्म्स एंड सोसाइटी एक्ट के अंतर्गत किया जाता है. जिसके लिए जिले में उप पंजीयन की नियुक्ति रहती है. वह सरकारी समितियों के गतिविधियों की निगरानी करते हैं. समिति में एक संचालक मंडल होता है. समिति के सदस्य ही इन पदाधिकारियों का चुनाव करते हैं. संचालक मंडल द्वारा ही प्रबंधक चुना जाता है. जो उपार्जन केंद्र से धान खरीदी की प्रक्रिया को पूर्ण करते हैं. इसके लिए कंप्यूटर ऑपरेटर, चौकीदार, हमाल जैसे कर्मचारियों की व्यवस्था समितियों के पास रहती है. धान खरीदी की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद समिति;के अधीन संचालित उपार्जन केन्द्रों से राइस मिलर्स धान का उठाव करते हैं, जिसके लिए विपणन विभाग द्वारा एमओओयू कर डीओ जारी किया जाता है. खाद्य विभाग इसकी निगरानी करता है. कुल जितने धान की खरीदी होती है. इसके एवज में सरकार द्वारा जितना जितने समर्थन मूल्य का भुगतान सरकार द्वारा किसानों को किया जाता है. उसका 4% कमीशन समितियों को दिया जाता है, जिससे समिति का संचालन होता है. कर्मचारियों के वेतन और अन्य कार्य पूर्ण किए जाते हैं.
खरीदी के बाद सहकारी बैंक से ही मिलते हैं किसानों को पैसे: किसानों के लिए ही सहकारी बैंकों की स्थापना की गई है, जो सहकारिता विभाग के अधीन काम करते हैं. यहां बैंक के मैनेजर और अन्य तकनीकी कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं. इसका संचालन इन्हीं कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है. यहां समिति के अधीन पंजीकृत किसानों के खाते संचालित होते हैं. शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर उन्हें लोन का वितरण किया जाता है. धान खरीदी की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद किसानों के खाते में सीधे पैसे सरकार द्वारा हस्तांतरित किए जाते हैं. यह समर्थन मूल्य के पैसे रहते हैं. जितना लोन किसानों ने लिया है. वह पैसे काटकर सीधे अकाउंट में क्रेडिट हो जाते हैं. किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी किसानों को लोन दिया जाता है. किसानों के पास जितना खेत है. उसके आधार पर उन्हें बिना किसी गारंटी के किसान क्रेडिट कार्ड में लोन प्रदान कर दिया जाता है. यह लोन 60 और 40 फीसदी के अनुपात में होता है. 60 फीसदी राशि नगद मिलती है, जबकि 40 फीसदी में उन्हें खेती किसानी के लिए महत्वपूर्ण सामान खाद, बीज आदि प्रदान किया जाता है.
उचित मूल्य की दुकानों का भी संचालन समितियों के अधीन: सरकारी उचित मूल्य की दुकान का संचालन भी सहकारी समितियों के माध्यम से ही होता है. समिति के सदस्य ही यह करते हैं कि कौन इसका विक्रेता होगा. शहरी क्षेत्र में महिला समूह या जहां समिति दुकानों का संचालन नहीं करती. वहां सरपंच या सचिव के जरिए भी उचित मूल्य की दुकाने संचालित होती हैं. कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां समितियां ही उचित मूल्य के दुकानों का संचालन करती हैं. उपार्जन केंद्रों से सर्वप्रथम धान की खरीदी होती है. इसके बाद यहीं से राइस मिलर्स अनुबंध के आधार पर धान का उठाव करते हैं. कस्टम मीलिंग के बाद चावल को नागरिक आपूर्ति के निगम के वेयरहाउस में जमा करते हैं. इसके बाद यह चावल उचित मूल्य के दुकानों में पहुंचाया जाता है और यहां से रियायती दर पर राशन कार्डधारी हितग्राहियों को चावल का वितरण होता है. चावल के अलावा अन्य खाद्यान्न भी शामिल होते हैं. वरदानों का संग्रहण भी यही होता है. उचित मूल्य की दुकानों से बारदाने वापस समितियों तक पहुंचया है. इस तरह से कड़ी दर कड़ी जोड़कर किसानों के लिए समितियों के माध्यम से समस्त कार्यों को मूर्त रूप दिया जाता है.