मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर : सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना का महापर्व छठ पूजा की तैयारियां जोरों पर हैं. हर साल लाखों लोग चार दिनों तक चलने वाले इस कठिन व्रत को संतान सुख, सुख समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए रखते हैं. नहाए खाए के बाद आज छठ पर्व के दूसरे दिन खरना किया जा रहा है. व्रती पूजा पाठ के साथ साथ छठी मैया के प्रसाद की तैयारियों में जुटे हैं.
राम-सीता की कथा से जुड़ी छठ पूजा की परंपरा : पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत तब हुई जब भगवान श्री राम 14 वर्षों का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे. राज्याभिषेक के बाद माता सीता ने अपने परिवार और राज्य की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव की उपासना की और छठ व्रत का पालन किया. मान्यता है कि उनकी इस आराधना से राज्य में सुख-शांति का संचार हुआ और तभी से यह परंपरा हर वर्ष जारी है.
छठ व्रत का कठोर तप, शुद्धता की विशेष परंपरा : छठ व्रत को अत्यंत कठिन तपस्या माना जाता है. इसमें व्रती चार दिनों तक निराहार रहकर सूरज की पहली और अंतिम किरण को अर्घ्य देते हुए व्रत का पालन करते हैं. छठ पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है. यह पर्व जाति, धर्म की सीमाओं से परे है. समाज में आपसी समर्पण और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है. लोग अपने दुख सुख को भूलकर एक साथ छठी मैया की उपासना करते हैं, जिससे समाज में एकता और प्रेम का संदेश फैलता है.
छठ पूजा में विशेष रूप से शुद्धता का ध्यान रखा जाता है. बाजार से लाया गया गेहूं के आटे का प्रसाद पवित्रता के साथ बनाया जाता है. प्रसाद में इस्तेमाल फलों और फूलों की शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखा जाता है. : संजय सिंह, व्रती
सूर्य देवता और छठी मैया का आर्शीवाद : छठ व्रत में सूर्य देव और छठी मैया का विशेष पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि छठी मैया संतान सुख, स्वास्थ्य और सौभाग्य की देवी हैं, जो व्रती श्रद्धा भाव से इस पूजा का पालन करते हैं, उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. उनके घर में सुख समृद्धि आती है.