चंडीगढ़: छठ को पर्व नहीं बल्कि महापर्व कहा जाता है. आज नहाय खाय से चार दिवसीय छठ महापर्व की शरुआत हो चुकी है. नहाय खाय के दिन व्रती महिलाएं नहाकर लौकी, चावल और चने की दाल बनाती है. इसे खाकर व्रती व्रत का संकल्प लेती हैं. आइए आपको बताते हैं कि नहाय खाय का क्या नियम है और इस दिन लौकी और चावल खाने की परम्परा क्यों है?
नहाय खाय से पर्व की होती है शुरुआत: पहले पूर्वांचल के लोग ही इस महापर्व को मनाते थे. बिहार-यूपी के बाद अब देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी छठ महापर्व मनाया जाता है. ये चार दिनों का पर्व है. दिवाली के बाद से ही लोग छठ की तैयारी में जुट जाते हैं. सबसे पहले नहाय खाय होता है. इस दिन व्रती सुबह-सुबह उठकर गंगा स्नान करती हैं. जो गंगा स्नान नहीं कर पाती हैं, वो पानी में गंगाजल मिलाकर नहाती हैं. नहाने के बाद मिट्टी के चूल्हे पर व्रती अपने हाथों से लौकी की सब्जी, चने की दाल और चावल पकाती हैं. इस भोजन में कोई विशेष प्रकार के मसाले का इस्तेमाल नहीं किया जाता.इसे खाकर व्रती व्रत की शुरुआत करती हैं. आज नहाय खाय से छठ महापर्व की शुरुआत हो गई है.
लौकी चावल खाने की परम्परा: छठ व्रत में शुरू से ही नहाय खाय के दिन लौकी चावल खाने की परम्परा है. लौकी को सब्जियों में सात्विक माना गया है. लौकी आसानी से पच जाता है और इसमें पानी अच्छी मात्रा में होती है. इसे खाने के बाद काफी समय तक शरीर में उर्जा बनी रहती है. इसलिए छठ व्रत की शुरूआत लौकी चावल खाकर की जाती है.
खरना के बाद शुरू होता है निर्जल व्रत: इसके दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. खरना वाले दिन व्रती पूरे दिन निर्जल रहकर खीर और रोटी पकाती हैं. इसके बाद शाम को पूजा के बाद वहीं खीर और रोटी खाकर व्रती निर्जल व्रत का संकल्प लेतीं हैं. इसके बाद शुरू होता है 36 से 38 घंटे का कठिन व्रत. खरना के बाद व्रती पानी भी नहीं पीती.
फलों से भरा सूप लेकर दिया जाता है संध्या अर्घ्य: खरना के बाद वाले दिन को संध्या अर्घ्य दिया जाता है. सुबह से ही महिलाएं ठेकुआ, गुजिया, पुड़ी, पुआ सहित अन्य पकवान तैयार करती हैं. ये सारे पकवान मिट्टी के चूल्हे पर पकाए जाते हैं. इसके बाद सूप में फल, ठेकुआ और सारे पकवानों को सजा कर टोकरी में बांध कर घाट ले जाया जाता है. शाम को व्रती सूर्यास्त के समय कमर भर पानी में खड़ी होकर सूर्य देव को फल और पकवान से भरा सूप लेकर संध्या अर्घ्य देती हैं.
सुबह के अर्घ्य के बाद होता है संकल्प पूरा: संध्या अर्घ्य के बाद व्रती वापस घर लौट आती हैं. दूसरे दिन सुबह वापस फलों और पकवानों से सूप सजाकर लकड़ी की टोकरी में रख ली जाती है. सूर्योदय से पहले घाट जाकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती छठ मैया से सुख समृद्धि की कामना करती है. सुबह के अर्घ्य के बाद व्रती घर आकर पारण करती हैं. इसके बाद सभी को ठेकुए का प्रसाद बांटा जाता है.
प्रकृति की उपासना का पर्व है छठ: इस महापर्व में प्रकृति की पूजा की जाती है. हर चीज सात्विक और नेचुरल होता है. सूर्य भगवान जो कि साक्षात हैं, उनकी पूजा की जाती है. व्रत में बनने वाला प्रसाद भी सीजनल फल और गेहूं के आटे से बना होता है. बांस के बने सूप में छठ मैया को प्रसाद भोग लगाया जाता है. इस पर्व में गन्ना, सुथनी, कंद, मौसमी, सेव, केला, अनार, नारियल जैसे सीजनल फलों को चढ़ाया जाता है. ये पर्व प्रकृति की उपासना का पर्व है.
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