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हार्ट के मरीजों के लिए खुशखबरी; स्टंट से मिलेगा छुटकारा, काफी सस्ते में इस तकनीक से होगा इलाज - Heart Patient Treatment

प्रयागराज स्थित स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में हार्ट के मरीजों को नई तकनीक से इलाज किया जा रहा है. जो काफी सस्ता और आरामदायक भी है. आइए जानते हैं, क्या है पूरी प्रक्रिया?

नई तकनीक से हार्ट के मरीजों का इलाज शुरू.
नई तकनीक से हार्ट के मरीजों का इलाज शुरू. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 22, 2024, 9:14 PM IST

डॉ. विनय कुमार पांडेय ने दी जानकारी. (Video Credit; ETV Bharat)

प्रयागराजः हार्ट के मरीजों के लिए खुशखबरी है. अब हार्ट अटैक आने पर स्टंट के अलावा भी दूसरा विकल्प विकसित हो गया है, जो काफी सस्ता भी है. इस तकनीक की शुरुआत प्रयागराज के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में कर दी गयी है. जिससे प्रयागराज के साथ ही आसपास के गरीब मरीजों को सस्ते में यह इलाज मिल सकेगा. स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में ड्रग कोटेड बैलून (डीसीबी) तकनीक के जरिये हार्ट की नसों में स्टंट लगने के बाद भी होने वाले ब्लॉकेज के कई मामलों किया जा रहा है.

एसआरएन अस्पताल के हृदय रोग विभाग के डॉ. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि ड्रग कोटेड बैलून तकनीक का इस्तेमाल उस वक्त किया जाता है. जब हार्ट में ब्लॉकेज के बाद कुछ ही महीनों के बाद दोबारा हार्ट में ब्लॉकेज की समस्या आ जाती है तो डीसीबी तकनीक के जरिये ठीक किया जा सकता है. डॉ विनय कुमार पांडेय का कहना है कि जिस नस में स्टेंट लगने के बाद भी ब्लॉकेज होता है, उसे ड्रग कोटेड बैलून तकनीक से दवाओं की कोटिंग कर दी जाती है. जिससे नस की ब्लॉकेज साफ कर दी जाती है और मरीज स्वस्थ हो जाता है. इस तकनीक के जरिये इलाज करवाने में मरीजों का ज्यादा पैसा खर्च नहीं होता है. इस तकनीक के जरिये इलाज करवाने में एसआरएन अस्पताल में 50 हजार तक का खर्च आएगा. जबकि बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों में इसी तकनीक से इलाज के लिए 3 लाख तक का खर्च आता है.

डॉ विनय कुमार पांडेय ने बताया कि ड्रग कोटेड बैलून एक विशेष तरह का यंत्र होता है. इसमें गुब्बारे को फुलाते हुए उसमें भरी ड्रग यानी दवा को नसों तक पहुंचाया जाता है. जिससे ब्लाकेज खत्म होते हुए रक्त का प्रवाह सुचारू रूप से शुरू होता है. उन्होंने बताया कि स्टंट की लाइफ दो दशक तक होती है. जबकि डीसीबी टेक्निक 20 साल से भी ज्यादा समय तक आरामदायक होता है. उन्होंने बताया कि कैथ लैब में हार्ट के मरीजों के लिए डीसीबी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है.

मरीजों के लिए सस्ता और आरामदायक है यह तकनीक
स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में डीसीबी तकनीक से इलाज करवाने वाली सुमित्रा देवी के बेटे ने बताया कि उनकी मां को चार महीने से स्टंट लगा था और फिर से अचानक उनके सीने में दर्द होने लगा तो एसआरएन अस्पताल लाया गया. जहां पर डॉक्टरों ने बताया कि स्टंट फेल हो गया और उसकी जगह दूसरा स्टंट लगाने की जगह फिर उन्होंने डीसीबी तकनीक की मदद से इलाज करवाया और वो स्वस्थ भी हो गयी और उनका खर्च भी बहुत कम लगा है.

इसे भी पढ़ें-स्विमिंग पूल से निकले 17 साल के युवक की हार्ट अटैक से मौत, मौत का वीडियो आया सामने

डॉ. विनय कुमार पांडेय ने दी जानकारी. (Video Credit; ETV Bharat)

प्रयागराजः हार्ट के मरीजों के लिए खुशखबरी है. अब हार्ट अटैक आने पर स्टंट के अलावा भी दूसरा विकल्प विकसित हो गया है, जो काफी सस्ता भी है. इस तकनीक की शुरुआत प्रयागराज के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में कर दी गयी है. जिससे प्रयागराज के साथ ही आसपास के गरीब मरीजों को सस्ते में यह इलाज मिल सकेगा. स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में ड्रग कोटेड बैलून (डीसीबी) तकनीक के जरिये हार्ट की नसों में स्टंट लगने के बाद भी होने वाले ब्लॉकेज के कई मामलों किया जा रहा है.

एसआरएन अस्पताल के हृदय रोग विभाग के डॉ. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि ड्रग कोटेड बैलून तकनीक का इस्तेमाल उस वक्त किया जाता है. जब हार्ट में ब्लॉकेज के बाद कुछ ही महीनों के बाद दोबारा हार्ट में ब्लॉकेज की समस्या आ जाती है तो डीसीबी तकनीक के जरिये ठीक किया जा सकता है. डॉ विनय कुमार पांडेय का कहना है कि जिस नस में स्टेंट लगने के बाद भी ब्लॉकेज होता है, उसे ड्रग कोटेड बैलून तकनीक से दवाओं की कोटिंग कर दी जाती है. जिससे नस की ब्लॉकेज साफ कर दी जाती है और मरीज स्वस्थ हो जाता है. इस तकनीक के जरिये इलाज करवाने में मरीजों का ज्यादा पैसा खर्च नहीं होता है. इस तकनीक के जरिये इलाज करवाने में एसआरएन अस्पताल में 50 हजार तक का खर्च आएगा. जबकि बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों में इसी तकनीक से इलाज के लिए 3 लाख तक का खर्च आता है.

डॉ विनय कुमार पांडेय ने बताया कि ड्रग कोटेड बैलून एक विशेष तरह का यंत्र होता है. इसमें गुब्बारे को फुलाते हुए उसमें भरी ड्रग यानी दवा को नसों तक पहुंचाया जाता है. जिससे ब्लाकेज खत्म होते हुए रक्त का प्रवाह सुचारू रूप से शुरू होता है. उन्होंने बताया कि स्टंट की लाइफ दो दशक तक होती है. जबकि डीसीबी टेक्निक 20 साल से भी ज्यादा समय तक आरामदायक होता है. उन्होंने बताया कि कैथ लैब में हार्ट के मरीजों के लिए डीसीबी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है.

मरीजों के लिए सस्ता और आरामदायक है यह तकनीक
स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में डीसीबी तकनीक से इलाज करवाने वाली सुमित्रा देवी के बेटे ने बताया कि उनकी मां को चार महीने से स्टंट लगा था और फिर से अचानक उनके सीने में दर्द होने लगा तो एसआरएन अस्पताल लाया गया. जहां पर डॉक्टरों ने बताया कि स्टंट फेल हो गया और उसकी जगह दूसरा स्टंट लगाने की जगह फिर उन्होंने डीसीबी तकनीक की मदद से इलाज करवाया और वो स्वस्थ भी हो गयी और उनका खर्च भी बहुत कम लगा है.

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