रांची: जेल का ताला टूटेगा, हेमंत सोरेन छूटेगा. झामुमो का यह नारा अब "साजिशों के खेल का हुआ अंत, आ गया अपना हेमंत" में बदल गया है. झामुमो कार्यकर्ता बेहद उत्साहित हैं. लेकिन यह भी सच है कि 31 जनवरी 2024 को हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद से झारखंड का राजनीतिक समीकरण बदल गया है. उनकी जगह चंपाई सोरेन राज्य के सीएम बन गये हैं. उनकी पत्नी कल्पना सोरेन अब गांडेय की विधायक हैं.
लोकसभा चुनाव के दौरान कल्पना सोरेन स्टार प्रचारक बनकर उभरीं हैं. छोटे भाई बसंत सोरेन मंत्री बन गये हैं. यूं कहें कि सत्ता के केंद्र में तीन नये पिलर खड़े हो चुके हैं. सीता सोरेन ने पार्टी नहीं छोड़ी होती तो चार पिलर नजर आते. यहीं से सवालों की फेहरिस्त शुरू होती है. पहला ये कि क्या ये तीन नये पावर पिलर हेमंत के लिए चुनौती बनेंगे. दूसरा ये कि क्या आगामी विधानसभा चुनाव में हेमंत प्रकरण से झामुमो को लाभ होगा?
हेमंत के दोनों हाथों में लड्डू या चुनौती
वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि पावर को बैलेंस करने में हेमंत सोरेन को कोई परेशानी होने वाली है. कल्पना सोरेन उनके रास्ते में आएंगी, ऐसा नहीं लगता, झामुमो में फिलहाल हेमंत से ऊपर उठ जाने वाला किसी में कैलिबर नहीं दिखता है. बसंत सोरेन भी अपनी पावर अच्छी तरह समझते हैं. हेमंत के रहते वह कुछ कर देंगे, ऐसा नहीं लगता. रही बात चंपाई सोरेन की तो वह तो खड़ाऊ लेकर चल रहे थे. उनमें भी अलग लकीर खींचने की ताकत नहीं है. बिहार में जीतन राम मांझी ने खुद को दलित नेता के रुप में एस्टेब्लिश कर नई पार्टी बनाई थी. लेकिन चंपाई सोरेन में वह दम नहीं है. चंपाई उसी समाज से आते हैं, जिससे हेमंत आते हैं. उनकी कोल्हान के बाहर कोई पकड़ नहीं है.
रही बात आगामी विधानसभा चुनाव की तो कल्पना सोरेन ने लोकसभा चुनाव में विक्टिम कार्ड खेला था. उसका फायदा भी मिला. अब हेमंत सोरेन कोर्ट के जमानत वाले आदेश को लेकर मैदान में भाजपा को घेरेंगे. कुल मिलाकर देखें तो हेमंत के जेल जाने से झामुमो को फायदा हुआ है. उन्होंने कल्पना सोरेन के सीएम बनने के तमाम कयासों पर विराम लगा दिया. उन्होंने चंपाई पर विश्वास जताकर साबित कर दिया कि उन्हें सत्ता की लालच नहीं है. ऐसे में भाजपा के लिए अब ट्राइबल सीट पर और बड़ी चुनौती हो गई है. कुर्मी वोट बैंक को साधकर जयराम ने भी भाजपा को पशोपेश में डाल दिया है.
वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी का कहना है कि झामुमो के लिहाज से हेमंत सोरेन प्रकरण का विधानसभा चुनाव पर सकारात्मक असर पड़ेगा. जेल में रहते तब भी, जेल से बाहर आए तब भी. उनके साथ सहानुभूति होगी. अब बोलने वाले दो लोग हो गये हैं. अब तक कल्पना सोरेन बोल रहीं थी. अब हेमंत अपनी तकलीफ खुद बयां करेंगे. रही बात भाजपा की तो प्रदेश में कोई ऐसा नेता नहीं दिख रहा है जो हवा का रुख बदल दे.
रही बात तीन नये पावर पिलर की तो कल्पना सोरेन हमेशा हेमंत के साथ चलेंगी. बसंत सोरेन की तात्कालिक आकांक्षा मंत्री बनने की थी. इसलिए वह भी चुनौती नहीं दिख रहे हैं. अब बात सीएम चंपाई सोरेन की कर लेते हैं. उन्होंने इन पांच महीनों में ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे लगे कि वह अलग लकीर खींचना चाह रहे हों. इसलिए हेमंत सोरेन के दोनों हाथों में लड्डू है. अगर विस चुनाव में इंडिया गठबंधन को बहुमत मिलता है तो हेमंत सोरेन ही कमान संभालेंगे. इसमें कोई शक नहीं है.
झारखंड की राजनीति के जानकारों के मंतव्य की झलक भी दिखने लगी है. पूर्व सीएम हेमंत सोरेन अब अलग गेट-अप में दिख रहे हैं. दाढ़ी और मूछें बढ़ गयीं हैं. शर्ट-पैंट और बंडी की जगह कुर्ता-पायजामा और कंधे पर गमछे ने जगह ले ली है. नियमित जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद अपने स्टेटमेंट के जरिए उन्होंने इशारा कर दिया है कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है. बिना किसी कसूर के एक झूठे और मनगढ़ंत कहानी बनाकर उन्हें पांच माह तक जेल में रखा गया.
उन्होंने यहां तक कहा कि आवाज उठाने वाले देश के कई पत्रकार जेल में हैं. दिल्ली के सीएम जेल में हैं. कई मंत्री जेल में हैं. न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबी है कि दिन-महीने नहीं बल्कि वर्षों लग रहे हैं. जो लोग सही तरीके से अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं, उनके सामने बाधाएं डाली जा रहीं हैं. उनका यह कहना कि वह अपने संकल्प को अंजाम तक पहुंचाएंगे. यह संकल्प क्या है, इसे समझना मुश्किल नहीं है.
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