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विरासत में 'चक्रव्यूह' देख चकित हुई ऑडियंस, पांडव नृत्य ने बांधा समां, इमोशनल हुई पब्लिक - DEHRADUN VIRASAT FESTIVAL

देहरादून में आयोजित विरासत में स्थानीय कलाकारों ने चक्रव्यूह का नाट्य मंचन किया. जिसका लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया.

Uttarakhand Pandava Dance
विरासत में किया गया चक्रव्यूह का मंचन (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 21, 2024, 7:08 AM IST

Updated : Oct 21, 2024, 12:20 PM IST

देहरादून: विरासत में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मची हुई है, जिसका लोग जमकर लुत्फ उठा रहे हैं. विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल में महाभारत युद्ध के बेहद महत्वपूर्ण घटना चक्रव्यूह का नाट्य मंचन किया गया. जिसे देखने के लिए भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी. गढ़वाली लोक नाट्य प्रस्तुति चक्रव्यूह की पटकथा का लेखन प्रोफेसर दाताराम पुरोहित ने किया है. जिसका स्थानीय कलाकारों ने शानदार मंचन किया.

संस्कृति और विरासत को संजोने की पहल: दाताराम पुरोहित ने बताया कि इस चक्रव्यूह की पहली प्रस्तुति साल 2001 में गंधारी गांव में हुई थी. बताया कि सनातन की धार्मिक मान्यताओं ने गढ़वाल क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को गढ़ा हैं और गढ़वाल की ऐसी ही एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत पांडव नृत्य है. जिसे पांडव लीला के नाम से भी जाना जाता है. यह विस्तृत धार्मिक नृत्य और नाट्य मंचन सदियों से उत्तराखंड के गांवों में किया जा रहा है. जिसे दस्तावेजों में पिरो कर इसे डॉक्यूमेंट और मंचन से लोगों के सम्मुख रखा जाता है.

उत्तराखंड की संस्कृति की दिखी झलक (Video-ETV Bharat)

पांडवों के स्वर्गारोहिणी के निशान मौजूद: उन्होंने बताया कि आज भी रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के मंदाकिनी और अलकनंदा घाटियों में बसे इलाकों में इसकी परंपरा जीवित है. जब कड़ाके की सर्दी उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों को अपनी चपेट में ले लेती है, तो गढ़वाल के कई छोटे-छोटे गांवों में इस तरह के धार्मिक अनुष्ठानों में पांडव नृत्य देखने को मिलता है. पुरोहित बताते हैं कि इन इलाकों में पांडवों की यात्रा व उनके निशान को लोग परिलक्षित करते हैं. पांडव नृत्य पांचों पांडव भाइयों के अलग अलग वृतांत को बताते हैं, जो उनके जन्म से लेकर स्वर्गारोहिणी यात्रा यानी उत्तराखंड से होते हुए स्वर्ग तक की यात्रा के निशान ताजा करते हैं.

लोक कथाओं पर आधारित धार्मिक अनुष्ठान: उत्तराखंड में पौराणिक समय पांडवों के संबंध में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में नृत्य नाटिका कीचक वध (कीचक का वध), नारायण विवाह (भगवान विष्णु का विवाह), चक्रव्यूह (गुरु द्रोण द्वारा डिजाइन की गई एक सैन्य रणनीति), गेंदा वध (डमी गैंडे की बलि) जैसे विभिन्न लोक कथाओं और लोक साहित्य पर आधारित हैं.

जानिए क्या है पौराणिक मान्यता: मान्यता है कि महाभारत के युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव अपने पापों के पश्चाताप के लिए भगवान शिव को खोजने और स्वर्ग की यात्रा पर निकले थे. पांडव उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में कई जगह भगवान शिव को खोजने निकले और केदारनाथ में उन्हें भगवान शिव ने दर्शन दिए और उन्हें पापों से मुक्ति किया. मान्यता है कि जिन स्थानों से पांडव गुजरे और जहां पर पांडवों ने विश्राम किया, आज वहां पांडव लीला होती है. अतीत की इस परंपरा को लोग सदियों से निभाते आ रहे हैं.
पढ़ें-देहरादून में फैली टर्किश डेजर्ट की खुशबू, बकलावा के दीवाने हुए लोग, विरासत मेले में छाई मिथिला पेंटिंग

देहरादून: विरासत में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मची हुई है, जिसका लोग जमकर लुत्फ उठा रहे हैं. विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल में महाभारत युद्ध के बेहद महत्वपूर्ण घटना चक्रव्यूह का नाट्य मंचन किया गया. जिसे देखने के लिए भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी. गढ़वाली लोक नाट्य प्रस्तुति चक्रव्यूह की पटकथा का लेखन प्रोफेसर दाताराम पुरोहित ने किया है. जिसका स्थानीय कलाकारों ने शानदार मंचन किया.

संस्कृति और विरासत को संजोने की पहल: दाताराम पुरोहित ने बताया कि इस चक्रव्यूह की पहली प्रस्तुति साल 2001 में गंधारी गांव में हुई थी. बताया कि सनातन की धार्मिक मान्यताओं ने गढ़वाल क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को गढ़ा हैं और गढ़वाल की ऐसी ही एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत पांडव नृत्य है. जिसे पांडव लीला के नाम से भी जाना जाता है. यह विस्तृत धार्मिक नृत्य और नाट्य मंचन सदियों से उत्तराखंड के गांवों में किया जा रहा है. जिसे दस्तावेजों में पिरो कर इसे डॉक्यूमेंट और मंचन से लोगों के सम्मुख रखा जाता है.

उत्तराखंड की संस्कृति की दिखी झलक (Video-ETV Bharat)

पांडवों के स्वर्गारोहिणी के निशान मौजूद: उन्होंने बताया कि आज भी रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के मंदाकिनी और अलकनंदा घाटियों में बसे इलाकों में इसकी परंपरा जीवित है. जब कड़ाके की सर्दी उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों को अपनी चपेट में ले लेती है, तो गढ़वाल के कई छोटे-छोटे गांवों में इस तरह के धार्मिक अनुष्ठानों में पांडव नृत्य देखने को मिलता है. पुरोहित बताते हैं कि इन इलाकों में पांडवों की यात्रा व उनके निशान को लोग परिलक्षित करते हैं. पांडव नृत्य पांचों पांडव भाइयों के अलग अलग वृतांत को बताते हैं, जो उनके जन्म से लेकर स्वर्गारोहिणी यात्रा यानी उत्तराखंड से होते हुए स्वर्ग तक की यात्रा के निशान ताजा करते हैं.

लोक कथाओं पर आधारित धार्मिक अनुष्ठान: उत्तराखंड में पौराणिक समय पांडवों के संबंध में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में नृत्य नाटिका कीचक वध (कीचक का वध), नारायण विवाह (भगवान विष्णु का विवाह), चक्रव्यूह (गुरु द्रोण द्वारा डिजाइन की गई एक सैन्य रणनीति), गेंदा वध (डमी गैंडे की बलि) जैसे विभिन्न लोक कथाओं और लोक साहित्य पर आधारित हैं.

जानिए क्या है पौराणिक मान्यता: मान्यता है कि महाभारत के युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव अपने पापों के पश्चाताप के लिए भगवान शिव को खोजने और स्वर्ग की यात्रा पर निकले थे. पांडव उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में कई जगह भगवान शिव को खोजने निकले और केदारनाथ में उन्हें भगवान शिव ने दर्शन दिए और उन्हें पापों से मुक्ति किया. मान्यता है कि जिन स्थानों से पांडव गुजरे और जहां पर पांडवों ने विश्राम किया, आज वहां पांडव लीला होती है. अतीत की इस परंपरा को लोग सदियों से निभाते आ रहे हैं.
पढ़ें-देहरादून में फैली टर्किश डेजर्ट की खुशबू, बकलावा के दीवाने हुए लोग, विरासत मेले में छाई मिथिला पेंटिंग

Last Updated : Oct 21, 2024, 12:20 PM IST
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