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''छत्तीसगढ़ के लोग कब तक गरीब रहेंगे'', वन मंत्री केदार कश्यप ने कोयला खनन पर दिया बयान - Forest Minister on Hasdeo

वन मंत्री केदार कश्यप बड़ा बयान देते हुए कहा है कि ''छत्तीसगढ़ की जनता कब तक गरीब बनी रहेगी''.

FOREST MINISTER ON HASDEO
छत्तीसगढ़ के लोग कब तक गरीब रहेंगे (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 6, 2024, 7:47 PM IST

रायपुर: वन और पर्यावरण मंंत्री केदार कश्यप ने राज्य में कोयला खनन और विकास परियोजनाओं पर बड़ा बयान दिया है. वन मंत्री ने परियोजनाओं का बचाव करते हुए कहा कि कब तक छत्तीसगढ़ के लोग गरीब रहेंगे. लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना जरुरी है. जिसकी कोशिश की जानी चाहिए. पीटीआई को दिए इंटरव्यू में केदार कश्यप ने कहा है. वन मंत्री ने कहा है कि राज्य सरकार बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों से गांवों के पुनर्वास में भी तेजी लाने की कोशिश कर रही है. नियमों को कानून के दायरे में रहकर सारे काम किए जा रहे हैं.

हसदेव अरण्य के मुद्दे पर सरकार का रुख: मध्य भारत का फेफड़ा कहे जाने वाले हसदेव अरण्य पर वन मंत्री ने सरकार का रुख सामने रखा है. केदार कश्यप ने कहा कि कोयला खनन का जरुर कुछ लोग विरोध कर रहे हैं. कुछ लोग परियोजनाओं का भी विरोध कर रहे हैं. वन मंत्री ने जोर देकर कहा है कि अधिकांश लोग इस विरोध का समर्थन नहीं करते हैं. सबको रोजगार चाहिए. साधन संपन्न राज्य होने के बाद भी यहां के लोग सुविधाओं के नाम पर जूझ रहे हैं. केदार कश्यप ने कहा कि अगर पेड़ काटे जाते हैं तो उसकी भरपाई भी पेड़ लगातार की जाएगी ये हमारी जिम्मेदारी है.

''पड़े कटेंगे तो उसकी भरपाई करने की जिम्मेदारी हमारी'': वन मंत्री ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रभावित समुदायों के स्वास्थ्य और आजीविका की रक्षा की जाए. ऐसी परियोजनाओं के लिए ग्राम सभा की सहमति के मुद्दे पर कश्यप ने कहा कि कानून ग्राम सभाओं को मना करने की शक्ति देता है. कुछ मामलों में ग्राम सभाओं ने इस शक्ति का इस्तेमाल किया है, लेकिन ज़्यादातर मामलों में उन्होंने (कोयला खनन और अन्य परियोजनाओं) का समर्थन किया है.

छत्तीसगढ़ में 57 बिलियन टन कोयला भंडार है: एक आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 57 बिलियन टन कोयला भंडार है, जो इसे झारखंड और ओडिशा के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य बनाता है. यह मध्य प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के बाद सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले राज्यों में तीसरे स्थान पर है. छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 44 प्रतिशत से अधिक हिस्सा वनों से ढका हुआ है. 1,701 वर्ग किलोमीटर में फैला घना हसदेव अरण्य भारत के सबसे व्यापक सन्निहित वन क्षेत्रों में से एक है.

हसदेव में पाए जाते हैं लुप्तप्राय पशु और पक्षी: हसदेव में 25 लुप्तप्राय प्रजातियों, 92 पक्षी प्रजातियों और 167 दुर्लभ और औषधीय पौधों की प्रजातियों का घर है. लगभग 15,000 आदिवासी अपनी आजीविका, सांस्कृतिक पहचान और भरण-पोषण के लिए हसदेव अरण्य के जंगलों पर निर्भर हैं. सरगुजा जिले में हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र में तीन समीपवर्ती कोयला ब्लॉक स्थित है जिसमें परसा, परसा ईस्ट केंटे बसन (पीईकेबी) और केंटे एक्सटेंशन कोल ब्लॉक (केईसीबी) शामिल है.

5,179.35 मिलियन टन कोयला भंडार छिपा है: तीनों कोयला ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित किए गए हैं. हसदेव अरण्य वन 1,70,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है. यह क्षेत्र दिल्ली से भी बड़ा है. भारतीय खान ब्यूरो के अनुसार इस वन में 5,179.35 मिलियन टन कोयला भंडार है. जनवरी में राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पीईकेबी कोयला खनन परियोजना के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का स्वत: संज्ञान लिया और राज्य वन विभाग से रिपोर्ट मांगी. विभाग ने अपने जवाब में कहा कि पेड़ों की कटाई केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा दी गई मंजूरी और अनुमति का सख्ती से पालन करते हुए की जा रही है. इसमें कहा गया है कि पीईकेबी कोयला ब्लॉक 1,898 हेक्टेयर वन भूमि को कवर करता है.

विरोध करने वालों का पक्ष: हसदेव अरण्य में खनन का आदिवासी समाज और पर्यावरण प्रेमी विरोध जता रहे हैं. विरोध करने वालों का कहना है कि जंगल की कटाई से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाएगा. हाथियों का जो प्राकृतिक आशियान है वो भी खत्म हो जाएगा. इंसानों और हाथियों के बीच खूनी संघर्ष तेजा होगा. जंगल में रहने वाले दुर्भल प्रजाती के पशु और पक्षियों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी. हजारों हजार परिवार हसदेव के जंगलों में रहते हैं. हसदेव के जंगलों पर पूरी तरह से निर्भर हैं उनका जीवन मुश्किल में पड़ जाएगा.

(सोर्स पीटीआई)

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रायपुर: वन और पर्यावरण मंंत्री केदार कश्यप ने राज्य में कोयला खनन और विकास परियोजनाओं पर बड़ा बयान दिया है. वन मंत्री ने परियोजनाओं का बचाव करते हुए कहा कि कब तक छत्तीसगढ़ के लोग गरीब रहेंगे. लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना जरुरी है. जिसकी कोशिश की जानी चाहिए. पीटीआई को दिए इंटरव्यू में केदार कश्यप ने कहा है. वन मंत्री ने कहा है कि राज्य सरकार बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों से गांवों के पुनर्वास में भी तेजी लाने की कोशिश कर रही है. नियमों को कानून के दायरे में रहकर सारे काम किए जा रहे हैं.

हसदेव अरण्य के मुद्दे पर सरकार का रुख: मध्य भारत का फेफड़ा कहे जाने वाले हसदेव अरण्य पर वन मंत्री ने सरकार का रुख सामने रखा है. केदार कश्यप ने कहा कि कोयला खनन का जरुर कुछ लोग विरोध कर रहे हैं. कुछ लोग परियोजनाओं का भी विरोध कर रहे हैं. वन मंत्री ने जोर देकर कहा है कि अधिकांश लोग इस विरोध का समर्थन नहीं करते हैं. सबको रोजगार चाहिए. साधन संपन्न राज्य होने के बाद भी यहां के लोग सुविधाओं के नाम पर जूझ रहे हैं. केदार कश्यप ने कहा कि अगर पेड़ काटे जाते हैं तो उसकी भरपाई भी पेड़ लगातार की जाएगी ये हमारी जिम्मेदारी है.

''पड़े कटेंगे तो उसकी भरपाई करने की जिम्मेदारी हमारी'': वन मंत्री ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रभावित समुदायों के स्वास्थ्य और आजीविका की रक्षा की जाए. ऐसी परियोजनाओं के लिए ग्राम सभा की सहमति के मुद्दे पर कश्यप ने कहा कि कानून ग्राम सभाओं को मना करने की शक्ति देता है. कुछ मामलों में ग्राम सभाओं ने इस शक्ति का इस्तेमाल किया है, लेकिन ज़्यादातर मामलों में उन्होंने (कोयला खनन और अन्य परियोजनाओं) का समर्थन किया है.

छत्तीसगढ़ में 57 बिलियन टन कोयला भंडार है: एक आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 57 बिलियन टन कोयला भंडार है, जो इसे झारखंड और ओडिशा के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य बनाता है. यह मध्य प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के बाद सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले राज्यों में तीसरे स्थान पर है. छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 44 प्रतिशत से अधिक हिस्सा वनों से ढका हुआ है. 1,701 वर्ग किलोमीटर में फैला घना हसदेव अरण्य भारत के सबसे व्यापक सन्निहित वन क्षेत्रों में से एक है.

हसदेव में पाए जाते हैं लुप्तप्राय पशु और पक्षी: हसदेव में 25 लुप्तप्राय प्रजातियों, 92 पक्षी प्रजातियों और 167 दुर्लभ और औषधीय पौधों की प्रजातियों का घर है. लगभग 15,000 आदिवासी अपनी आजीविका, सांस्कृतिक पहचान और भरण-पोषण के लिए हसदेव अरण्य के जंगलों पर निर्भर हैं. सरगुजा जिले में हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र में तीन समीपवर्ती कोयला ब्लॉक स्थित है जिसमें परसा, परसा ईस्ट केंटे बसन (पीईकेबी) और केंटे एक्सटेंशन कोल ब्लॉक (केईसीबी) शामिल है.

5,179.35 मिलियन टन कोयला भंडार छिपा है: तीनों कोयला ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित किए गए हैं. हसदेव अरण्य वन 1,70,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है. यह क्षेत्र दिल्ली से भी बड़ा है. भारतीय खान ब्यूरो के अनुसार इस वन में 5,179.35 मिलियन टन कोयला भंडार है. जनवरी में राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पीईकेबी कोयला खनन परियोजना के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का स्वत: संज्ञान लिया और राज्य वन विभाग से रिपोर्ट मांगी. विभाग ने अपने जवाब में कहा कि पेड़ों की कटाई केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा दी गई मंजूरी और अनुमति का सख्ती से पालन करते हुए की जा रही है. इसमें कहा गया है कि पीईकेबी कोयला ब्लॉक 1,898 हेक्टेयर वन भूमि को कवर करता है.

विरोध करने वालों का पक्ष: हसदेव अरण्य में खनन का आदिवासी समाज और पर्यावरण प्रेमी विरोध जता रहे हैं. विरोध करने वालों का कहना है कि जंगल की कटाई से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाएगा. हाथियों का जो प्राकृतिक आशियान है वो भी खत्म हो जाएगा. इंसानों और हाथियों के बीच खूनी संघर्ष तेजा होगा. जंगल में रहने वाले दुर्भल प्रजाती के पशु और पक्षियों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी. हजारों हजार परिवार हसदेव के जंगलों में रहते हैं. हसदेव के जंगलों पर पूरी तरह से निर्भर हैं उनका जीवन मुश्किल में पड़ जाएगा.

(सोर्स पीटीआई)

''हसदेव जंगल में हो रही है पेड़ों की कटाई, गांव वालों को पुलिस ने हिरासत में लिया'': सर्व आदिवासी समाज - Hasdeo Aranya
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