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कोटा ने बनाया हजारों सर्टिफाइड गेटकीपर बनाने का रिकॉर्ड! स्टूडेंट में तलाश रहे अवसाद, अब तक 1500 छात्रों को वापस भेजा घर

कोटा में बीते सालों में छात्रों के सुसाइड का मामला तेजी से बढ़ा है, जिसके बाद प्रशासन पूरी तरह एक्टिव मोड में है. इसी क्रम में कॉचिंग संस्थानों और हॉस्टल्स में गेटकीपर क्यूपीआर (QPR) ट्रेनिंग को आवश्यक कर दिया गया है. इसके तहत स्टूडेंट्स में अवसाद के लक्षण पहचानने में मदद मिलती है. पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट....

Measures to prevent Student Suicide
Measures to prevent Student Suicide
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 5, 2024, 8:15 PM IST

कोटा ने बनाया हजारों सर्टिफाइड गेटकीपर बनाने का रिकॉर्ड

कोटा. देश के हर हिस्से से कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए लाखों विद्यार्थी हर साल आते हैं. बीते सालों में इन विद्यार्थियों में सुसाइड की टेंडेंसी भी बढ़ी है. इसको रोकने के लिए राज्य सरकार के साथ जिला प्रशासन ने भी कई दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनमें गेटकीपर क्यूपीआर (QPR) ट्रेनिंग भी शामिल है. कोटा में इसके करीब हजारों एक्सपर्ट तैयार हो गए हैं, जिन्होंने यह ट्रेनिंग ले ली है. जिला कलेक्टर डॉ. रविंद्र गोस्वामी का मानना है कि भारत में सर्टिफाइड क्यूपीआर गेटकीपर ट्रेनिंग प्राप्त लोग कोटा में ही हैं.

कलेक्टर डॉ. गोस्वामी का कहना है कि कामयाब कोटा अभियान के तहत हमने कोचिंग क्षेत्र का उन्नयन किया है. कोचिंग क्षेत्र के लिए सरकार ने गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें अवसाद रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सर्टिफाइड गेटकीपर को जरूरी माना था. कोचिंग में पहले ट्रेनिंग हुई है. अब हॉस्टल एसोसिएशन की भी ट्रेनिंग शुरू करवाई गई है. उन्होंने दावा किया कि कोटा में इस तरह की सबसे बड़ी ट्रेनिंग हुई है.

पढे़ं. कोटा में रह रहे उत्तर प्रदेश के छात्र ने की खुदकुशी, ऑनलाइन B.Tech की पढ़ाई कर रहा था युवक

कोटा में तैयार हुए क्यूपीआर सर्टिफाइड एक्सपर्ट्स : कोटा के 10 बड़े संस्थानों ने राज्य सरकार और जिला प्रशासन के निर्देश पर अपने-अपने स्तर पर क्यूपीआर सर्टिफाइड ट्रेनर के जरिए अपने स्टाफ को ट्रेनिंग दिलाई है. कोटा में करीब 10000 से ज्यादा संख्या में कोचिंग कार्मिकों को भी ट्रेनिंग दी गई थी. इसमें यह आईडेंटिफाई किया जाता है कि किसी बच्चे में तनाव के लक्षण तो नहीं हैं, अगर हैं तो उसके आसपास के व्यक्ति को क्या करना है? हर व्यक्ति का एक डेजिग्नेटिड रोल है. इसके लिए बच्चों को रिलीफ दी जाती है और यह पूरी तरह से साइंटिफिक ट्रेनिंग है. इसका फायदा भी हुआ है. अब कोचिंग या हॉस्टल का कोई भी कार्मिक ऐसी किसी घटना को रोकता है, तो उसे रिवॉर्ड भी दिया जाएगा.

अवसाद में मिले 1500 स्टूडेंट्स को भेजा वापस : क्यूपीआर ट्रेनिंग के बाद तैयार सर्टिफाइड एक्सपर्ट ने एक अभियान चलाकर अवसाद ग्रसित स्टूडेंट की तलाश शुरू की. इसके चलते दिसंबर और जनवरी में सुसाइड के मामले कोटा में कम आए हैं. वहीं, सितंबर से लेकर जनवरी तक करीब 1500 बच्चों को कोटा से वापस भेजा गया है. यह कोटा के अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में पढ़ते थे, जिनमें सुसाइड की टेंडेंसी नजर आ रही थी. इनमें से कुछ बच्चों के पेरेंट्स उन्हें यहां से ले जाने के लिए तैयार नहीं थे. इसके बावजूद भी उन्हें वापस भेजा गया है. इन स्टूडेंट्स में अवसाद का स्तर काफी ज्यादा था और उन्हें उपचार की भी आवश्यकता थी.

ऐसे पहचानें अवसाद के लक्षण
ऐसे पहचानें अवसाद के लक्षण

प्रशासन के निर्देश पर शुरू हुई निशुल्क ट्रेनिंग : चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष विश्वनाथ शर्मा का कहना है कि इस ट्रेनिंग से निश्चित तौर पर फायदा हो रहा है. यह ट्रेनिंग काफी जरूरी है, इसका सर्टिफिकेट भी मिलेगा. इससे पहचान भी सकते हैं कि स्टूडेंट नर्वस है या अवसाद में है. पहले यह ट्रेनिंग हमारे हॉस्टल संचालक, मालिक, वार्डन, मैनेजर, स्वीपर, कूक, सुरक्षा गॉर्ड सभी को करवानी है. सभी को आवश्यक कर दिया है. कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि पहले उन्होंने अपने स्तर पर यह ट्रेनिंग करवाई थी, लेकिन बाद में जिला प्रशासन ने सभी लोगों के लिए निशुल्क कर दिया है. ऐसे में हजारों रुपए देकर होने वाली ट्रेनिंग, अब प्रशासन निशुल्क करवा रहा है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें रुचि दिखा रहे हैं.

पढ़ें. कोटा में हॉस्टल कर्मचारियों के लिए शुरू हुई क्यूपीआर गेटकीपर ट्रेनिंग, सुसाइड रोकने में होगी मददगार

इसलिए जरूरी है हॉस्टल के स्टाफ को ट्रेनिंग : चीफ साइकोलॉजिस्ट और गेटकीपर के सर्टिफाइड ट्रेनर डॉक्टर हरीश शर्मा का कहना है कि इस ट्रेनिंग के कई लेवल हैं. ट्रेनिंग हॉस्टल के सभी कर्मचारी को दी जानी है. स्टूडेंट कोचिंग में 6 से 7 घंटे रहता है, लेकिन बाकी 16 से 17 घंटे हॉस्टल में रहता है. ऐसे में हॉस्टल के स्टाफ ट्रेंड हो जाएंगे, तो अवसाद और सुसाइड की घटनाओं को रोकने में बड़ी कामयाबी मिलेगी.

इस तरह होती है QPR ट्रेनिंग : ट्रेनिंग का नाम क्यूपीआर (QPR) है. इसमें अंग्रेजी के तीन शब्द आ रहे हैं. पहला Q, फिर P और अंत में R. जब कोई स्टूडेंट मानसिक परेशान होता है, तो उससे क्वेश्चन ऐसे पूछे जाएं. पी का मतलब परसूएसन यानी कि स्टूडेंट से कैसे बात किया जाए. ट्रेनिंग में यह बताया जाता है कि स्टूडेंट गंभीर है तो उसको (R) यानि रेफर कैसे किया जाए? विशेषज्ञ के पास कैसे भेजे जाएंगे या फिर संबंधित लोग व वरिष्ठ अधिकारी तक सूचना पहुंचाने का क्या तरीका है?

सर्टिफाइड गेटकीपर ट्रेनिंग
सर्टिफाइड गेटकीपर ट्रेनिंग

स्टूडेंट के व्यवहार से पहचान सकते हैं : डॉ. हरीश शर्मा के अनुसार अवसाद में रहने वाले स्टूडेंट की पहचान उनके व्यवहार से होती है. लगभग तीन-चार महीने पहले से ही छात्र अपना व्यवहार बदलना शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे अवसाद की स्टेज की तरफ भी बढ़ते हैं. अंतिम स्टेज पर उनका व्यवहार कैसा होता है, उनकी पहचान कैसी होती है, यह ट्रेनिंग में शामिल है. स्टूडेंट भूतकाल की घटनाओं को याद करने लग जाता है, यह एक तरह से अपराधबोध जैसा है. अपराधबोध और डर के चलते वह बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है. इस दौरान स्टूडेंट भूतकाल और भविष्य दोनों से मुकाबला नहीं कर पाता है और वह पूरी तरह से ब्लॉक हो जाता है.

अभी भी अछूते हैं पीजी और छोटे कोचिंग संस्थान : बड़े कोचिंग संस्थानों में यह ट्रेनिंग शुरू हो चुकी है, जिसके बाद हॉस्टल्स में भी ट्रेनिंग शुरू की गई है. हालांकि अभी भी कोटा शहर में देशभर से आने वाले स्टूडेंट छोटे पीजी में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. वहां पर क्यूपीआर ट्रेनिंग या इस तरह से बच्चों में अवसाद पहचानने की जानकारी लोगों में नहीं है. जिला प्रशासन और सरकार भी चाहती है कि इन बच्चों में भी सुसाइड की टेंडेंसी को पहचाना जा सके. ऐसे में इन छोटे कोचिंग और पीजी में भी मॉनिटरिंग करके उनमें भी ट्रेनिंग करवाई जाए.

कोटा ने बनाया हजारों सर्टिफाइड गेटकीपर बनाने का रिकॉर्ड

कोटा. देश के हर हिस्से से कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए लाखों विद्यार्थी हर साल आते हैं. बीते सालों में इन विद्यार्थियों में सुसाइड की टेंडेंसी भी बढ़ी है. इसको रोकने के लिए राज्य सरकार के साथ जिला प्रशासन ने भी कई दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनमें गेटकीपर क्यूपीआर (QPR) ट्रेनिंग भी शामिल है. कोटा में इसके करीब हजारों एक्सपर्ट तैयार हो गए हैं, जिन्होंने यह ट्रेनिंग ले ली है. जिला कलेक्टर डॉ. रविंद्र गोस्वामी का मानना है कि भारत में सर्टिफाइड क्यूपीआर गेटकीपर ट्रेनिंग प्राप्त लोग कोटा में ही हैं.

कलेक्टर डॉ. गोस्वामी का कहना है कि कामयाब कोटा अभियान के तहत हमने कोचिंग क्षेत्र का उन्नयन किया है. कोचिंग क्षेत्र के लिए सरकार ने गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें अवसाद रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सर्टिफाइड गेटकीपर को जरूरी माना था. कोचिंग में पहले ट्रेनिंग हुई है. अब हॉस्टल एसोसिएशन की भी ट्रेनिंग शुरू करवाई गई है. उन्होंने दावा किया कि कोटा में इस तरह की सबसे बड़ी ट्रेनिंग हुई है.

पढे़ं. कोटा में रह रहे उत्तर प्रदेश के छात्र ने की खुदकुशी, ऑनलाइन B.Tech की पढ़ाई कर रहा था युवक

कोटा में तैयार हुए क्यूपीआर सर्टिफाइड एक्सपर्ट्स : कोटा के 10 बड़े संस्थानों ने राज्य सरकार और जिला प्रशासन के निर्देश पर अपने-अपने स्तर पर क्यूपीआर सर्टिफाइड ट्रेनर के जरिए अपने स्टाफ को ट्रेनिंग दिलाई है. कोटा में करीब 10000 से ज्यादा संख्या में कोचिंग कार्मिकों को भी ट्रेनिंग दी गई थी. इसमें यह आईडेंटिफाई किया जाता है कि किसी बच्चे में तनाव के लक्षण तो नहीं हैं, अगर हैं तो उसके आसपास के व्यक्ति को क्या करना है? हर व्यक्ति का एक डेजिग्नेटिड रोल है. इसके लिए बच्चों को रिलीफ दी जाती है और यह पूरी तरह से साइंटिफिक ट्रेनिंग है. इसका फायदा भी हुआ है. अब कोचिंग या हॉस्टल का कोई भी कार्मिक ऐसी किसी घटना को रोकता है, तो उसे रिवॉर्ड भी दिया जाएगा.

अवसाद में मिले 1500 स्टूडेंट्स को भेजा वापस : क्यूपीआर ट्रेनिंग के बाद तैयार सर्टिफाइड एक्सपर्ट ने एक अभियान चलाकर अवसाद ग्रसित स्टूडेंट की तलाश शुरू की. इसके चलते दिसंबर और जनवरी में सुसाइड के मामले कोटा में कम आए हैं. वहीं, सितंबर से लेकर जनवरी तक करीब 1500 बच्चों को कोटा से वापस भेजा गया है. यह कोटा के अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में पढ़ते थे, जिनमें सुसाइड की टेंडेंसी नजर आ रही थी. इनमें से कुछ बच्चों के पेरेंट्स उन्हें यहां से ले जाने के लिए तैयार नहीं थे. इसके बावजूद भी उन्हें वापस भेजा गया है. इन स्टूडेंट्स में अवसाद का स्तर काफी ज्यादा था और उन्हें उपचार की भी आवश्यकता थी.

ऐसे पहचानें अवसाद के लक्षण
ऐसे पहचानें अवसाद के लक्षण

प्रशासन के निर्देश पर शुरू हुई निशुल्क ट्रेनिंग : चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष विश्वनाथ शर्मा का कहना है कि इस ट्रेनिंग से निश्चित तौर पर फायदा हो रहा है. यह ट्रेनिंग काफी जरूरी है, इसका सर्टिफिकेट भी मिलेगा. इससे पहचान भी सकते हैं कि स्टूडेंट नर्वस है या अवसाद में है. पहले यह ट्रेनिंग हमारे हॉस्टल संचालक, मालिक, वार्डन, मैनेजर, स्वीपर, कूक, सुरक्षा गॉर्ड सभी को करवानी है. सभी को आवश्यक कर दिया है. कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि पहले उन्होंने अपने स्तर पर यह ट्रेनिंग करवाई थी, लेकिन बाद में जिला प्रशासन ने सभी लोगों के लिए निशुल्क कर दिया है. ऐसे में हजारों रुपए देकर होने वाली ट्रेनिंग, अब प्रशासन निशुल्क करवा रहा है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें रुचि दिखा रहे हैं.

पढ़ें. कोटा में हॉस्टल कर्मचारियों के लिए शुरू हुई क्यूपीआर गेटकीपर ट्रेनिंग, सुसाइड रोकने में होगी मददगार

इसलिए जरूरी है हॉस्टल के स्टाफ को ट्रेनिंग : चीफ साइकोलॉजिस्ट और गेटकीपर के सर्टिफाइड ट्रेनर डॉक्टर हरीश शर्मा का कहना है कि इस ट्रेनिंग के कई लेवल हैं. ट्रेनिंग हॉस्टल के सभी कर्मचारी को दी जानी है. स्टूडेंट कोचिंग में 6 से 7 घंटे रहता है, लेकिन बाकी 16 से 17 घंटे हॉस्टल में रहता है. ऐसे में हॉस्टल के स्टाफ ट्रेंड हो जाएंगे, तो अवसाद और सुसाइड की घटनाओं को रोकने में बड़ी कामयाबी मिलेगी.

इस तरह होती है QPR ट्रेनिंग : ट्रेनिंग का नाम क्यूपीआर (QPR) है. इसमें अंग्रेजी के तीन शब्द आ रहे हैं. पहला Q, फिर P और अंत में R. जब कोई स्टूडेंट मानसिक परेशान होता है, तो उससे क्वेश्चन ऐसे पूछे जाएं. पी का मतलब परसूएसन यानी कि स्टूडेंट से कैसे बात किया जाए. ट्रेनिंग में यह बताया जाता है कि स्टूडेंट गंभीर है तो उसको (R) यानि रेफर कैसे किया जाए? विशेषज्ञ के पास कैसे भेजे जाएंगे या फिर संबंधित लोग व वरिष्ठ अधिकारी तक सूचना पहुंचाने का क्या तरीका है?

सर्टिफाइड गेटकीपर ट्रेनिंग
सर्टिफाइड गेटकीपर ट्रेनिंग

स्टूडेंट के व्यवहार से पहचान सकते हैं : डॉ. हरीश शर्मा के अनुसार अवसाद में रहने वाले स्टूडेंट की पहचान उनके व्यवहार से होती है. लगभग तीन-चार महीने पहले से ही छात्र अपना व्यवहार बदलना शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे अवसाद की स्टेज की तरफ भी बढ़ते हैं. अंतिम स्टेज पर उनका व्यवहार कैसा होता है, उनकी पहचान कैसी होती है, यह ट्रेनिंग में शामिल है. स्टूडेंट भूतकाल की घटनाओं को याद करने लग जाता है, यह एक तरह से अपराधबोध जैसा है. अपराधबोध और डर के चलते वह बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है. इस दौरान स्टूडेंट भूतकाल और भविष्य दोनों से मुकाबला नहीं कर पाता है और वह पूरी तरह से ब्लॉक हो जाता है.

अभी भी अछूते हैं पीजी और छोटे कोचिंग संस्थान : बड़े कोचिंग संस्थानों में यह ट्रेनिंग शुरू हो चुकी है, जिसके बाद हॉस्टल्स में भी ट्रेनिंग शुरू की गई है. हालांकि अभी भी कोटा शहर में देशभर से आने वाले स्टूडेंट छोटे पीजी में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. वहां पर क्यूपीआर ट्रेनिंग या इस तरह से बच्चों में अवसाद पहचानने की जानकारी लोगों में नहीं है. जिला प्रशासन और सरकार भी चाहती है कि इन बच्चों में भी सुसाइड की टेंडेंसी को पहचाना जा सके. ऐसे में इन छोटे कोचिंग और पीजी में भी मॉनिटरिंग करके उनमें भी ट्रेनिंग करवाई जाए.

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