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इस बार पंजाब में 26 और हरियाणा में 17 प्रतिशत कम जली पराली, अगले 3 साल में जीरो बर्निंग का लक्ष्य - RESEARCH INSTITUTE KARNAL

पराली प्रबंधन को लेकर आज करनाल के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया.

Karnal Straw Management
Karnal Straw Management (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Oct 26, 2024, 7:43 PM IST

Updated : Oct 26, 2024, 8:37 PM IST

करनाल: हरियाणा सहित उत्तर भारत में धान फसल अवशेष में आग लगाना एक बड़ी समस्या बनी हुई है. जिसके चलते हर कोई जहरीली सांस लेने के लिए मजबूर है. जीरो बर्निंग के सपने को साकार करने के लिए सरकार और कृषि विभाग के कर्मचारी अधिकारी सभी लगे हुए हैं. पराली में आग आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है. जिसे खत्म करने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जा रहे हैं. सरकार के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक और किसान भी इस और कदम बढ़ा रहे हैं.

पराली प्रबंधन की किसानों को दी जानकारी: पराली प्रबंधन को लेकर आज करनाल के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें हरियाणा, पंजाब व अन्य राज्यों के किसानों ने भाग लिया. कार्यशाला का उद्घाटन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने किया. इससे पूर्व उन्होंने पराली प्रबंधन को लेकर एक प्रदर्शनी का अवलोकन किया. प्रदर्शनी में किसानों को पराली प्रबंधन के विभिन्न तरीकों के बारे में जानकारी दी गई.

बर्निंग की घटनाएं घटी: महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि आज हमारे पास पराली प्रबंधन की नवीनतम तकनीक उपलब्ध हैं. जिससे हम पराली को जीरो बर्निंग तक पहुंचा सकते हैं. हमने इसके लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा है. इन तकनीकों को हम किस तरह से किसानों तक पहुंचा सकते हैं. इस पर जोर देने की आवश्यकता है. डॉ. पाठक ने कहा कि तीन-चार साल से हम देख रहे हैं, कि बर्निंग की घटनाएं धीरे-धीरे कम हो रही हैं. उन्होंने कहा कि इस वर्ष पंजाब में प्रणाली जलाने की घटनाओं में 26% और हरियाणा में 16 से 17% की कमी आई है.

Karnal Straw Management (Etv Bharat)

पर्यावरण पर पराली जलाने का असर: उन्होंने कहा कि बर्निंग की घटनाएं बंद होने से इसका फायदा न केवल किसानों को मिलेगा बल्कि वातावरण, हवा, पानी और मिट्टी को भी मिलेगा. महानिदेशक ने कहा कि जमीन में कार्बन की कमी होती जा रही है. इसके लिए हमें संरक्षित खेती को अपनाना होगा. आज जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है. जिसमें पराली के जलने से और वृद्धि होती है.

जीरो बर्निंग केस लक्ष्य: किसानों को हवा में मिल रहे इस कार्बन को बचाकर मिट्टी में मिलना होगा. जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जीरो बर्निंग के लक्ष्य को हासिल करने में थोड़ा समय लग सकता है. हमारा लक्ष्य अगले दो-तीन साल में इसे जीरो पर लाने का है. इस कार्य में केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार और किसानों का भी सहयोग हमें लगातार मिल रहा है.

पराली को खेत में मिलाना बेस्ट: डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि पराली जलाने से उसमें शामिल पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन कार्बन और फॉस्फोरस जैसे तत्व समाप्त हो जाते हैं. इसलिए हमें पराली को या तो खेत में ही मिला देना चाहिए. अन्यथा उसे अन्य कार्यों के लिए बेच सकते हैं. उन्होंने कहा कि मिट्टी कोई निर्जीव पदार्थ नहीं है. एक जीवित वस्तु है. इसमें लाखों की संख्या में जीवाणु है, जो पदार्थ को नाइट्रोजन में बदलकर पौधे को विकसित करने में सहयोग करते हैं. इसलिए हमें मिट्टी के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए पराली को खेत में ही मिलाना चाहिए.

पराली प्रबंधन से बढ़ेगा उत्पादन: वहीं, कार्यशाला में आए किसानों ने कहा कि पराली प्रबंधन करके हम इस समस्या से निजात पा सकते हैं. उन्होंने बताया कि पराली प्रबंधन दो तरीके से किया जा सकता है. एक खेत में मिलाकर दूसरा इसे बाहर बेचकर. किसानों ने कहा कि वे पिछले कई सालों से अपनी पराली का प्रबंधन करते आ रहे हैं. जिससे न केवल उनकी मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि हो रही है, बल्कि उत्पादन भी बढ़ा है.

ये भी पढ़ें: हरियाणा में पराली जलाने पर सरकार सख्त, सिरसा में 5 किसानों पर FIR दर्ज, जुर्माना भी लगाया

ये भी पढ़ें: हरियाणा में पराली जलाने पर बड़ा एक्शन, अंबाला में 2 महिलाओं समेत 3 किसानों पर FIR दर्ज

करनाल: हरियाणा सहित उत्तर भारत में धान फसल अवशेष में आग लगाना एक बड़ी समस्या बनी हुई है. जिसके चलते हर कोई जहरीली सांस लेने के लिए मजबूर है. जीरो बर्निंग के सपने को साकार करने के लिए सरकार और कृषि विभाग के कर्मचारी अधिकारी सभी लगे हुए हैं. पराली में आग आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है. जिसे खत्म करने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जा रहे हैं. सरकार के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक और किसान भी इस और कदम बढ़ा रहे हैं.

पराली प्रबंधन की किसानों को दी जानकारी: पराली प्रबंधन को लेकर आज करनाल के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें हरियाणा, पंजाब व अन्य राज्यों के किसानों ने भाग लिया. कार्यशाला का उद्घाटन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने किया. इससे पूर्व उन्होंने पराली प्रबंधन को लेकर एक प्रदर्शनी का अवलोकन किया. प्रदर्शनी में किसानों को पराली प्रबंधन के विभिन्न तरीकों के बारे में जानकारी दी गई.

बर्निंग की घटनाएं घटी: महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि आज हमारे पास पराली प्रबंधन की नवीनतम तकनीक उपलब्ध हैं. जिससे हम पराली को जीरो बर्निंग तक पहुंचा सकते हैं. हमने इसके लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा है. इन तकनीकों को हम किस तरह से किसानों तक पहुंचा सकते हैं. इस पर जोर देने की आवश्यकता है. डॉ. पाठक ने कहा कि तीन-चार साल से हम देख रहे हैं, कि बर्निंग की घटनाएं धीरे-धीरे कम हो रही हैं. उन्होंने कहा कि इस वर्ष पंजाब में प्रणाली जलाने की घटनाओं में 26% और हरियाणा में 16 से 17% की कमी आई है.

Karnal Straw Management (Etv Bharat)

पर्यावरण पर पराली जलाने का असर: उन्होंने कहा कि बर्निंग की घटनाएं बंद होने से इसका फायदा न केवल किसानों को मिलेगा बल्कि वातावरण, हवा, पानी और मिट्टी को भी मिलेगा. महानिदेशक ने कहा कि जमीन में कार्बन की कमी होती जा रही है. इसके लिए हमें संरक्षित खेती को अपनाना होगा. आज जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है. जिसमें पराली के जलने से और वृद्धि होती है.

जीरो बर्निंग केस लक्ष्य: किसानों को हवा में मिल रहे इस कार्बन को बचाकर मिट्टी में मिलना होगा. जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जीरो बर्निंग के लक्ष्य को हासिल करने में थोड़ा समय लग सकता है. हमारा लक्ष्य अगले दो-तीन साल में इसे जीरो पर लाने का है. इस कार्य में केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार और किसानों का भी सहयोग हमें लगातार मिल रहा है.

पराली को खेत में मिलाना बेस्ट: डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा कि पराली जलाने से उसमें शामिल पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन कार्बन और फॉस्फोरस जैसे तत्व समाप्त हो जाते हैं. इसलिए हमें पराली को या तो खेत में ही मिला देना चाहिए. अन्यथा उसे अन्य कार्यों के लिए बेच सकते हैं. उन्होंने कहा कि मिट्टी कोई निर्जीव पदार्थ नहीं है. एक जीवित वस्तु है. इसमें लाखों की संख्या में जीवाणु है, जो पदार्थ को नाइट्रोजन में बदलकर पौधे को विकसित करने में सहयोग करते हैं. इसलिए हमें मिट्टी के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए पराली को खेत में ही मिलाना चाहिए.

पराली प्रबंधन से बढ़ेगा उत्पादन: वहीं, कार्यशाला में आए किसानों ने कहा कि पराली प्रबंधन करके हम इस समस्या से निजात पा सकते हैं. उन्होंने बताया कि पराली प्रबंधन दो तरीके से किया जा सकता है. एक खेत में मिलाकर दूसरा इसे बाहर बेचकर. किसानों ने कहा कि वे पिछले कई सालों से अपनी पराली का प्रबंधन करते आ रहे हैं. जिससे न केवल उनकी मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि हो रही है, बल्कि उत्पादन भी बढ़ा है.

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Last Updated : Oct 26, 2024, 8:37 PM IST
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