रांची: झारखंड के चुनावी समर में हमेशा से निर्दलीय प्रत्याशियों की भूमिका अहम रही है. कभी वोट कटवा तो कभी चुनाव जीत कर सत्ता पर काबिज होते रहे हैं. चुनाव लड़ने से लेकर चुनाव जीतने के बाद तक ये अपनी खास पहचान बनाने में सफल रहे हैं. शायद यही वजह है कि सियासी जंग जीतने के बाद राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच से मधु कोड़ा के रुप में निर्दलीय विधायक झारखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने में सफल रहा.
एक बार फिर राज्य में इन दिनों विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी गहमागहमी है. पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन का कार्य पूरा हो चुका है 2019 के विधानसभा चुनाव की अपेक्षा इस बार प्रत्याशियों की संख्या काफी अधिक हैं. इसके पीछे कहीं ना कहीं निर्दलीयों की भूमिका देखी जा रही है. इस बार के दो चरणों में होने वाले मतदान के पहले चरण में जिन 43 सीटों पर विधानसभा के चुनाव होंगे. इसमें 683 प्रत्याशियों में 334 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे हैं. शेष बचे 38 सीटों के लिए दूसरे और अंतिम चरण के मतदान के लिए भी जमकर हुए नामांकन में भी कमोवेश यही स्थिति है.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 की बात करें तो उस समय कुल 1216 में 367 प्रत्याशी निर्दलीय थे. जिसमें सिर्फ दो उम्मीदवार ने ही जीत दर्ज की थी. वहीं 2024 के विधानसभा चुनाव के पहले चरण में खड़े कुल 683 उम्मीदवारों में से 334 निर्दलीय हैं. पहले चरण के चुनाव में 609 पुरुष और 73 महिला प्रत्याशी हैं. वहीं थर्ड जेंडर की संख्या एक है. पहले चरण के चुनाव में 87 राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी, क्षेत्रीय राज्यस्तरीय पार्टी के 32, राज्य के बाहर के निबंधित क्षेत्रीय पार्टी के 42 प्रत्याशी, आरयूपीपी के 188 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं.
झारखंड की सत्ता में निर्दलीयों की भूमिका रही अहम
झारखंड की सत्ता में निर्दलीयों की भूमिका अहम रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव में खड़े कुल 1216 में 367 निर्दलीय थे. जिसमें 2 ने जीत दर्ज की थी. भाजपा से टिकट कटने की वजह से चुनाव मैदान में उतरे सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्वी से जीत दर्ज की तो बरकठ्ठा से अमित यादव ने जीत हासिल की. इस बार सरयू राय जदयू के टिकट पर जमशेदपुर पश्चिम से मैदान में हैं तो अमित यादव भाजपा में औपचारिक रुप से शामिल होने के बाद एक बार फिर बरकठ्ठा से किस्मत आजमा रहे हैं.
प्रत्याशी की संख्या बढाने में निर्दलीय की भूमिका अहम
समय के साथ विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की बढ़ रही संख्या में निर्दलियों की भूमिका अहम मानी जा रही है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे कहते हैं कि इसके पीछे बड़ी वजह टिकट कटने से नाराज होकर निर्दलीय रुप से चुनाव मैदान में प्रत्याशी का उतरना है. उनका मानना है कि हर व्यक्ति अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण चुनाव मैदान में उतारना चाहता है. किसी वजह से चाहे वह गठबंधन के कारण या किसी अन्य वजह से टिकट नहीं मिल पाता है तो वह स्वतंत्र रूप से चुनाव मैदान में उतरता है.
वर्तमान चुनाव में इस बार मुख्य रूप से इंडिया गठबंधन और एनडीए के उतरे हैं. जिसमें एनडीए के अंदर नाराज नेताओं के द्वारा सबसे ज्यादा स्वतंत्र रूप से नामांकन किए गए हैं. हालांकि जेएमएम के इस तर्क पर बीजेपी के प्रदीप सिन्हा कहते हैं कि नाराजगी अलग बात है और चुनाव लड़ना अलग बात है. स्वतंत्र रूप से चुनाव मैदान में उतरने वालों में ऐसा नहीं है कि इंडिया गठबंधन के लोग नहीं है जिन्होंने पार्टी छोड़कर खुद चुनाव मैदान में उतरे हैं.
अधिक प्रत्याशी से कोई खास परेशानी नहीं- सीईओ
झारखंड विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या अधिक होने से होनेवाली परेशानी को खारिज करते हुए मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के रवि कुमार कहते हैं कि आयोग का चुनाव प्रबंधन विभाग इसको देखा है. यह बात जरूर है कि 2019 के तुलना में 2024 के पहले चरण का जो मतदान हो रहा है और नामांकन की प्रक्रिया पूरी हुई है उसमें प्रत्याशियों की संख्या अधिक है. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को लोकतंत्र में चुनाव लड़ने का अधिकार है जिसका वह बखूबी से पालन करता है. यही तो लोकतंत्र की खुशबू है कि इसके माध्यम से जनता के बीच लोग जाते हैं और उनका चयन होता है.
इसे भी पढ़ें- Jharkhand Election 2024: टिकट कटने पर बागी हुईं कुमकुम देवी, अन्य पार्टी से लड़ेंगी चुनाव
इसे भी पढ़ें- Jharkhand Election 2024: धनवार विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी निरंजन राय बढ़ा सकते हैं बाबूलाल की मुश्किलें!