बुरहानपुर: 'पापी पेट का सवाल है'. इसीलिए जिले के धुलकोट क्षेत्र में आदिवासी गांवों से लोग तेजी से पलायन कर रहे हैं. पलायन के चलते कई गांव वीरान नजर आने लगे हैं. इस क्षेत्र में रोजगार के साधन नहीं होने के कारण आदिवासी परिवार दूसरे राज्यों में जाकर पेट पालते हैं. जिला प्रशासन ने पलायन करने वाले मजदूरों का रिकार्ड तैयार करने के निर्देश ग्राम पंचायतों को दिए थे, लेकिन इसका पालन नहीं किया जा रहा है. ये पता लगाना इतना आसान नहीं है कि वास्तव में कितने मजदूर पलायन करके दूसरे राज्यों में गए हैं.
दीपावली के बाद ही शुरू हो जाता है पलायन
ग्रामीणों का कहना है कि अब तक आधा दर्जन से ज्यादा गांवों के करीब 500 परिवार पलायन कर चुके हैं. ये लोग पेट पालने के लिए आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों में पहुंचते हैं. बता दें कि आदिवासी बहुल धुलकोट को तहसील बनाया जा चुका है. इसके बाद भी रोजगार के कोई संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए. दीपावाली के बाद से ही रोजी रोटी की तलाश में पलायन का सिलसिला शुरू हो चुका है. रोजाना दर्जनों आदिवासी परिवार मजदूरी के लिए अन्य राज्यों मे पलायन कर रहे हैं. आसपास के फालियाओं और गांवों से यात्री बसों व पिकअप वाहनों से पलायन को विवश हैं.
आदिवासियों के पास खेती करने के लिए जमीन भी नहीं
ग्रामीण युवाओं का कहना है कि धुलकोट क्षेत्र में रोजगार के साधन नहीं हैं. आदिवासी अंचलों में रहने वाले ग्रामीण परिवारो के पास इतनी जमीन भी नहीं है कि पूरे परिवार का भरण-पोषण कर सकें. धुलकोट क्षेत्र मे एक दशक से साल दर साल पलायन का दंश बढ़ता ही जा रहा है. हालात यह है कि धूलकोट क्षेत्र मे इन दिनों ऐसे कई आदिवासी फालिया व गांव हैं, जो वीरान हो गए हैं. गांव में सिर्फ बुजुर्ग नजर आ रहे हैं. इन गांवों में अधिकांश मकानों में ताले लटके हैं.
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धुलकोट क्षेत्र में 17 ग्राम पंचायतें, कहीं रोजगार नहीं
धुलकोट तहसील क्षेत्र में 17 ग्राम पंचायतें हैं. इन पंचायतों के गांवों की कुल आबादी 40 हजार से ज्यादा है. पलायन को लेकर धुलकोट तहसीलदार उदय सिंह मंडलोई का कहना है "प्रशासन द्वारा रोजगार के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित की गई हैं, मामला मेरे संज्ञान में आया है. वरिष्ठ अधिकारियों को इससे अवगत कराऊंगा."