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यहां पूरी होती है संतान प्राप्ति की मन्नत! जानें, क्या है बुढ़वा महादेव मंदिर का महत्व - Budhwa Mahadev Temple of Hazaribagh

Budhwa Mahadev Temple. हजारीबाग में बड़कागांव का बुढ़वा महादेव मंदिर में सावन महीने में जल चढ़ाने की परंपरा 600 साल पुरानी है. यह मंदिर 500 मीटर ऊंचा पहाड़ पर स्थित है. शिव उपासना के लिए ही नहीं बल्कि पर्यटन स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है. जिसके कारण सालों भर पर्यटक यहां आते रहते हैं.

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बुढ़वा महादेव मंदिर का गुफा (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 5, 2024, 11:04 PM IST

हजारीबाग: झारखंड के हजारीबाग जिला स्थित बड़कागांव का बुढ़वा महादेव मंदिर में सावन महीने में जल चढ़ाने की परंपरा 600 साल पुरानी है. यह मंदिर 500 मीटर ऊंचा पहाड़ पर स्थित है. शिव उपासना के लिए ही नहीं बल्कि धार्मिक व प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है. यही कारण है कि सालों भर पर्यटक यहां आते रहते हैं. सावन व महाशिवरात्रि में शिव भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है. ऐसी मान्यता है कि यह संतान सुख देने वाले बाबा हैं.

बुढ़वा महादेव मंदिर की जानकारी देते संवाददाता (ETV BHARAT)

राजा दलेल सिंह ने सावन पर्व की शुरुआत

हजार बागों का शहर हजारीबाग का बड़कागांव प्रखंड कोयला उत्पादन के लिए पूरे देशभर में जाना जाता है. वहीं, यहां के प्रखंड का ऐतिहासिक धरोहर को भी खुद में समेटे हुए हैं और उन्हें में एक है बुढ़वा महादेव मंदिर. बुढ़वा महादेव का इतिहास लगभग 600 साल पुराना है. यहां जलाभिषेक करने की परंपरा 17 वीं सदी पुरानी है. कर्णपुरा राज्य के राजा दलेल सिंह ने सावन पर्व की शुरुआत इसी मंदिर से की थी. कभी रामगढ़ राज्य की राजधानी बादाम बड़कागांव हुआ करता था.

राजा दलेल सिंह खुद बहुत बड़े शिव भक्त थे. उन्होंने अपने जीवन काल में भगवान शिव पर कई गीत लिखे थे. जल अर्पण करने के लिए यहां पर तालाब बनवाया गया था. जिसे रानी पोखर के नाम से जाना जाता है. उस समय यहां कई शिवलिंग की स्थापना करायी गई थी, जिसका प्रमाण अभी भी पहाड़ के गुफा में मौजूद है. महूदी पहाड़ में शेषनाग शिलाएं हैं. रास्ते के दोनों तरफ शिलाएं है. पूरे पहाड़ में 4 गुफा देखा जा सकता है. इन गुफाओं में पूजा अर्चना करने से मन्नत पूरी हो जाती है.

थानेदार यादव की पूरी हुई थी पुत्र प्राप्ति की मन्नत

पर्वत की चोटी पर स्थित बुढ़वा महादेव मंदिर, छगरी गुदरी गुफा, द्वारपाल गुफा, मड़ावा खामी, बंदरचुमा जल प्रपात, रानीपोखर एवं दर्जनों नागफनी आकार की चट्टानें, तीर्थ स्थल धार्मिक ऐतिहासिक पुरातात्विक व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है. सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि अंतिम सोमवारी के दिन रजरप्पा से जल लेकर शिव भक्त पैदल बुढ़वा महादेव मंदिर पहुंचते हैं और जलाभिषेक करते हैं. सावन के महीने में यहां प्रत्येक दिन सैकड़ो की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं.

सोमवार के दिन हजारीबाग और उसके आसपास के जिले से भी पूजा करने के लिए इस मंदिर में लोग पहुंचते हैं. बुढ़वा महादेव मंदिर आस्था का केंद्र बिंदु है. ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त भक्ति भाव से भोलेनाथ पर जल चढ़ाता है उसकी मुराद जरूर पूरी होती है. बड़कागांव के निवासी थानेदार यादव को पुत्र नहीं था. उन्होंने बाबा से मन्नत मांगी. बाबा ने आशीर्वाद दिया. पुत्र प्राप्ति के बाद यहां थानेदार यादव ने इस मंदिर भवन का निर्माण करवाया. तब से यहां लोग पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगने आते हैं.

ये भी पढ़ें: देवघर में ऑटो चालकों की हड़ताल से कांवरिये परेशान, शासन-प्रशासन के खिलाफ की नारेबाजी

ये भी पढ़ें: सावन की तीसरी सोमवारी पर बाबा धाम में उमड़े भक्त, 15 फीट का कांवर लेकर कोलकाता से पहुंचे देवघर

हजारीबाग: झारखंड के हजारीबाग जिला स्थित बड़कागांव का बुढ़वा महादेव मंदिर में सावन महीने में जल चढ़ाने की परंपरा 600 साल पुरानी है. यह मंदिर 500 मीटर ऊंचा पहाड़ पर स्थित है. शिव उपासना के लिए ही नहीं बल्कि धार्मिक व प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है. यही कारण है कि सालों भर पर्यटक यहां आते रहते हैं. सावन व महाशिवरात्रि में शिव भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है. ऐसी मान्यता है कि यह संतान सुख देने वाले बाबा हैं.

बुढ़वा महादेव मंदिर की जानकारी देते संवाददाता (ETV BHARAT)

राजा दलेल सिंह ने सावन पर्व की शुरुआत

हजार बागों का शहर हजारीबाग का बड़कागांव प्रखंड कोयला उत्पादन के लिए पूरे देशभर में जाना जाता है. वहीं, यहां के प्रखंड का ऐतिहासिक धरोहर को भी खुद में समेटे हुए हैं और उन्हें में एक है बुढ़वा महादेव मंदिर. बुढ़वा महादेव का इतिहास लगभग 600 साल पुराना है. यहां जलाभिषेक करने की परंपरा 17 वीं सदी पुरानी है. कर्णपुरा राज्य के राजा दलेल सिंह ने सावन पर्व की शुरुआत इसी मंदिर से की थी. कभी रामगढ़ राज्य की राजधानी बादाम बड़कागांव हुआ करता था.

राजा दलेल सिंह खुद बहुत बड़े शिव भक्त थे. उन्होंने अपने जीवन काल में भगवान शिव पर कई गीत लिखे थे. जल अर्पण करने के लिए यहां पर तालाब बनवाया गया था. जिसे रानी पोखर के नाम से जाना जाता है. उस समय यहां कई शिवलिंग की स्थापना करायी गई थी, जिसका प्रमाण अभी भी पहाड़ के गुफा में मौजूद है. महूदी पहाड़ में शेषनाग शिलाएं हैं. रास्ते के दोनों तरफ शिलाएं है. पूरे पहाड़ में 4 गुफा देखा जा सकता है. इन गुफाओं में पूजा अर्चना करने से मन्नत पूरी हो जाती है.

थानेदार यादव की पूरी हुई थी पुत्र प्राप्ति की मन्नत

पर्वत की चोटी पर स्थित बुढ़वा महादेव मंदिर, छगरी गुदरी गुफा, द्वारपाल गुफा, मड़ावा खामी, बंदरचुमा जल प्रपात, रानीपोखर एवं दर्जनों नागफनी आकार की चट्टानें, तीर्थ स्थल धार्मिक ऐतिहासिक पुरातात्विक व प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है. सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि अंतिम सोमवारी के दिन रजरप्पा से जल लेकर शिव भक्त पैदल बुढ़वा महादेव मंदिर पहुंचते हैं और जलाभिषेक करते हैं. सावन के महीने में यहां प्रत्येक दिन सैकड़ो की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं.

सोमवार के दिन हजारीबाग और उसके आसपास के जिले से भी पूजा करने के लिए इस मंदिर में लोग पहुंचते हैं. बुढ़वा महादेव मंदिर आस्था का केंद्र बिंदु है. ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त भक्ति भाव से भोलेनाथ पर जल चढ़ाता है उसकी मुराद जरूर पूरी होती है. बड़कागांव के निवासी थानेदार यादव को पुत्र नहीं था. उन्होंने बाबा से मन्नत मांगी. बाबा ने आशीर्वाद दिया. पुत्र प्राप्ति के बाद यहां थानेदार यादव ने इस मंदिर भवन का निर्माण करवाया. तब से यहां लोग पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगने आते हैं.

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