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जोधपुर के पंजा दरी व्यवसाय को दलालों ने किया बर्बाद, अब कारीगरों को सरकार से आस - दम तोड़ती पंजा दरी की कला

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business, जोधपुर का सालावास पंजा दरी के लिए विश्व विख्यात है. कभी यहां की बनी दरी दुनिया भर के देशों में बिकने के लिए जाती थी, लेकिन आज हालात एकदम से बदल गए हैं. इस पेशे से जुड़े कारीगरों के लिए जिंदगी का गुजारा भी मुश्किल हो गया है. यही वजह है कि ज्यादातर कारीगर दरी को दरकिनार कर दिहाड़ी करने लगे हैं.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 20, 2024, 8:29 PM IST

पंजा दरी व्यवसाय को दलालों ने किया बर्बाद

जोधपुर. यहां कपास के सूत से दरी, चटाई और आसन बनाए जाते हैं. खास बात यह है कि इनकी डिजाइन में रंग भी धागे से भरे जाते हैं और तो और इलेक्ट्रिक पावर लूम की खटखटाहट की जगह ठेठ परंपरागत तरीके से आज भी जोधपुर के सालवास गांव में ये काम बदस्तूर जारी है. वहीं, आज सालावास की दरी की पहचान देश-दुनिया में है, लेकिन जो दरी बाहर जा रही है और जो सालवास गांव के आसपास हाइवे पर बिकती है, उनमें जमीन आसमान का फर्क है. ऐसा इसलिए क्योंकि हाइवे पर बिक रही ज्यादातर दरी बाहर से यहां आई जाती है. इसकी वजह से पंजा दरी बनाने वाले मूल कारीगरों को काफी नुकसान होता है या फिर यूं कहें कि दरी की कला अब आहिस्ते-आहिस्ते दम तोड़ रही है.

वहीं, दम तोड़ती इस कला के स्थानीय कारीगर मालाराम मुंडल बताते हैं कि ये उनका पुश्तैनी पेशा है. वो वर्षों से इस काम को कर रहे हैं. उन्होंने इसका चरम भी देखा और आज संघर्ष भी कर रहे हैं, लेकिन वे हार नहीं मानेंगे. मालाराम ने अपनी कला के दम पर जिला और राज्य स्तरीय पुरस्कार जीते हैं. उन्होंने छह माह के अथक परिश्रम के बाद एक खास दरी बनाई है, जिसकी कीमत 54 हजार है. हालांकि इसे खरीदने वाले बहुत आए, लेकिन उन्होंने इसे बेचने की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया. उनका कहना है कि वो इसे इसलिए नहीं बेचे, क्योंकि वो राष्ट्रीय स्तर पर पंजा कला की पहचान को बनाए रखना चाहते हैं और यही वजह है कि उन्होंने अपने नायाब कारीगरी को लोगों को दिखाने के लिए प्रदर्शित किया. साथ ही मालाराम को उम्मीद है कि पीएम विश्वकर्मा योजना से वो और उनके जैसे दूसरे कारीगर आगे लाभान्वित होंगे.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
सालावास की पंजा दरी

इसे भी पढ़ें - जोधपुरी बंधेज को मिली दुनियाभर में पहचान, जीआई टैग मिलने से 25 फीसदी काम बढ़ा

संघर्ष में कट रही पांचवी पीढ़ी की जिंदगी : मालाराम खुद करीब 40 साल से पंजा दरी बना रहे हैं. उनके साथ उनकी मां, बहू और बेटे भी इस काम में लगे हैं. वो बताते हैं कि उनकी पांचवी पीढ़ी इस काम में लगी है. 90 में यूनेस्को ने जब गांव में प्रोजेक्ट चलाया तो यहां खूब काम हुआ. इलाके में आसानी से दरी के धागे भी मिल जाया करते थे और कारीगरों की खूब कमाई भी होती थी. एक समय ऐसा लगा कि अब उनके दिन सुधर जाएंगे, लेकिन दलालों की एंट्री ने पूरी व्यवस्था को प्रभावित किया. आहिस्ते-आहिस्ते काम करवाने वाले लोगों ने हम से दूरी बनानी शुरू कर दी. साथ ही विदेशी पर्यटक भी दलाल के जरिए दरी खरीदने लगे. इससे सब ठहर गया और आज आलम यह है कि हम संघर्ष कर रहे हैं.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
मालाराम की बनाई नायाब दरी

योजनाओं का भी नहीं मिलता लाभ : मालाराम बताते हैं कि आलम यह है कि दलालों के चक्कर में वस्त्र मंत्रालय या ईपीसीएच से जो योजनाएं बुनकरों के लिए आती हैं, उसका लाभ सालावास के मूल पंजा दरी के कारीगरों तक नहीं पहुंच पाता है. नई तकनीक की ट्रेनिंग भी उनको नहीं मिलती है. यहां तक कि सामान्य जानकारी भी नहीं दी जाती है. हमारे नाम के बुनकर कार्ड का फायदा दूसरे लोग उठाते हैं.

200 से पांच परिवार रह गए काम करने वाले : सालावास गांव में कुछ साल पहले तक 200 से ज्यादा परिवार इस काम में लगे थे, लेकिन अब काम के अभाव में करीगर दिहाड़ी मजदूर बन गए हैं. जिन लोगों की स्थिति सही थी, वो अब बाहर से माल बनवाकर उसे बेचते हैं. वर्तमान में 5-6 परिवार ही इस पेशे से जुड़ा है.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
परंपरागत तरीके से दरी बनाता कारीगर

इसे भी पढ़ें - राजस्थान: लालाजी की लालटेन से घूमा हैंडीक्राफ्ट का पहिया, 3 हजार करोड़ सालाना की पकड़ी रफ्तार

कारीगरों की मदद करेगी लघु उद्योग भारती : वहीं, उद्योगों के लिए काम करने वाली राष्ट्रीय स्तर की संस्था लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष घनश्याम ओझा ने बताया कि सालावास की दरी विश्व प्रसिद्ध है. यहां बड़ी संख्या में विदेशी व्यापारी आते रहे हैं, लेकिन विगत कुछ वर्षों से व्यापारियों के नहीं आने से कारीगरों संख्या तेजी से घटी है. ऐसे में हमारा प्रयास है कि सरकार की योजनाओं का लाभ इन लोगों तक पहुंचे.

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दरी व्यवसाय को दलालों ने किया बर्बाद

साथ ही इनके मालों की आकर्षक पैकिंग करवा कर उसे बाजार तक पहुंचाया जाए. इसके अलावा राज्य सरकार की एक जिला एक उद्योग प्रोत्साहन योजना के तहत हम कोशिश करेंगे कि दरी उद्योग को भी इसमें शामिल किया जाए, ताकि इस उद्योग को वापस जीवित किया जा सके.

पंजा दरी व्यवसाय को दलालों ने किया बर्बाद

जोधपुर. यहां कपास के सूत से दरी, चटाई और आसन बनाए जाते हैं. खास बात यह है कि इनकी डिजाइन में रंग भी धागे से भरे जाते हैं और तो और इलेक्ट्रिक पावर लूम की खटखटाहट की जगह ठेठ परंपरागत तरीके से आज भी जोधपुर के सालवास गांव में ये काम बदस्तूर जारी है. वहीं, आज सालावास की दरी की पहचान देश-दुनिया में है, लेकिन जो दरी बाहर जा रही है और जो सालवास गांव के आसपास हाइवे पर बिकती है, उनमें जमीन आसमान का फर्क है. ऐसा इसलिए क्योंकि हाइवे पर बिक रही ज्यादातर दरी बाहर से यहां आई जाती है. इसकी वजह से पंजा दरी बनाने वाले मूल कारीगरों को काफी नुकसान होता है या फिर यूं कहें कि दरी की कला अब आहिस्ते-आहिस्ते दम तोड़ रही है.

वहीं, दम तोड़ती इस कला के स्थानीय कारीगर मालाराम मुंडल बताते हैं कि ये उनका पुश्तैनी पेशा है. वो वर्षों से इस काम को कर रहे हैं. उन्होंने इसका चरम भी देखा और आज संघर्ष भी कर रहे हैं, लेकिन वे हार नहीं मानेंगे. मालाराम ने अपनी कला के दम पर जिला और राज्य स्तरीय पुरस्कार जीते हैं. उन्होंने छह माह के अथक परिश्रम के बाद एक खास दरी बनाई है, जिसकी कीमत 54 हजार है. हालांकि इसे खरीदने वाले बहुत आए, लेकिन उन्होंने इसे बेचने की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया. उनका कहना है कि वो इसे इसलिए नहीं बेचे, क्योंकि वो राष्ट्रीय स्तर पर पंजा कला की पहचान को बनाए रखना चाहते हैं और यही वजह है कि उन्होंने अपने नायाब कारीगरी को लोगों को दिखाने के लिए प्रदर्शित किया. साथ ही मालाराम को उम्मीद है कि पीएम विश्वकर्मा योजना से वो और उनके जैसे दूसरे कारीगर आगे लाभान्वित होंगे.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
सालावास की पंजा दरी

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संघर्ष में कट रही पांचवी पीढ़ी की जिंदगी : मालाराम खुद करीब 40 साल से पंजा दरी बना रहे हैं. उनके साथ उनकी मां, बहू और बेटे भी इस काम में लगे हैं. वो बताते हैं कि उनकी पांचवी पीढ़ी इस काम में लगी है. 90 में यूनेस्को ने जब गांव में प्रोजेक्ट चलाया तो यहां खूब काम हुआ. इलाके में आसानी से दरी के धागे भी मिल जाया करते थे और कारीगरों की खूब कमाई भी होती थी. एक समय ऐसा लगा कि अब उनके दिन सुधर जाएंगे, लेकिन दलालों की एंट्री ने पूरी व्यवस्था को प्रभावित किया. आहिस्ते-आहिस्ते काम करवाने वाले लोगों ने हम से दूरी बनानी शुरू कर दी. साथ ही विदेशी पर्यटक भी दलाल के जरिए दरी खरीदने लगे. इससे सब ठहर गया और आज आलम यह है कि हम संघर्ष कर रहे हैं.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
मालाराम की बनाई नायाब दरी

योजनाओं का भी नहीं मिलता लाभ : मालाराम बताते हैं कि आलम यह है कि दलालों के चक्कर में वस्त्र मंत्रालय या ईपीसीएच से जो योजनाएं बुनकरों के लिए आती हैं, उसका लाभ सालावास के मूल पंजा दरी के कारीगरों तक नहीं पहुंच पाता है. नई तकनीक की ट्रेनिंग भी उनको नहीं मिलती है. यहां तक कि सामान्य जानकारी भी नहीं दी जाती है. हमारे नाम के बुनकर कार्ड का फायदा दूसरे लोग उठाते हैं.

200 से पांच परिवार रह गए काम करने वाले : सालावास गांव में कुछ साल पहले तक 200 से ज्यादा परिवार इस काम में लगे थे, लेकिन अब काम के अभाव में करीगर दिहाड़ी मजदूर बन गए हैं. जिन लोगों की स्थिति सही थी, वो अब बाहर से माल बनवाकर उसे बेचते हैं. वर्तमान में 5-6 परिवार ही इस पेशे से जुड़ा है.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
परंपरागत तरीके से दरी बनाता कारीगर

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कारीगरों की मदद करेगी लघु उद्योग भारती : वहीं, उद्योगों के लिए काम करने वाली राष्ट्रीय स्तर की संस्था लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष घनश्याम ओझा ने बताया कि सालावास की दरी विश्व प्रसिद्ध है. यहां बड़ी संख्या में विदेशी व्यापारी आते रहे हैं, लेकिन विगत कुछ वर्षों से व्यापारियों के नहीं आने से कारीगरों संख्या तेजी से घटी है. ऐसे में हमारा प्रयास है कि सरकार की योजनाओं का लाभ इन लोगों तक पहुंचे.

Brokers ruined Jodhpur Panja carpet business
दरी व्यवसाय को दलालों ने किया बर्बाद

साथ ही इनके मालों की आकर्षक पैकिंग करवा कर उसे बाजार तक पहुंचाया जाए. इसके अलावा राज्य सरकार की एक जिला एक उद्योग प्रोत्साहन योजना के तहत हम कोशिश करेंगे कि दरी उद्योग को भी इसमें शामिल किया जाए, ताकि इस उद्योग को वापस जीवित किया जा सके.

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