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150 साल से अंग्रेजों की क्रूरता की गवाही बयां कर रहा बरगद का पेड़, एक साथ दी गई थी कई स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी - Independence Day 2024

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 14, 2024, 2:24 PM IST

Banyan tree of Palamu. पलामू में 150 सालों से बरगद का वह पेड़ आज भी मौजूद है, जिस पर एक साथ कई सेनानियों को अंग्रेजों ने फांसी दी थी. यह पेड़ अंग्रेजों की क्रूरता की गवाही दे रहा है.

Banyan tree of Palamu
बरगद का पेड़ (ईटीवी भारत)

पलामू: अंग्रेजों की क्रूरता की निशानी पलामू जिले में आज भी मौजूद है, जो बयां करता है कि हमारे देश को आजादी दिलाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को कितने कष्ट झेलने पड़े. यह निशानी वह बरगद का पेड़ है, जिससे लटकाकर कितने ही सेनानियों को अंग्रेजों ने अमर कर दिया. 150 साल बाद भी वो बरगद का पेड़ आज भी मौजूद है. अंग्रेजों ने कई लोगों को इसी पेड़ पर एक साथ फांसी पर लटका दिया था. यह पेड़ पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 25 किलोमीटर दूर नावाबाजार प्रखंड के कोठी गांव में मौजूद है.

जानकारी देते संवाददाता नीरज कुमार (ईटीवी भारत)

यह गांव 1857 की क्रांति के करीब एक दशक बाद चर्चा में आया था. 1857 के बाद इलाके के राजहरा कोलियरी क्षेत्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो स्थानीय ग्रामीण एकजुट हो गए. ग्रामीणों ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत से जुड़े कई लोगों को निशाना बनाया. जिसमें अंग्रेजी हुकूमत से जुड़े लोग मारे गए थे. बाद में अंग्रेजी हुकूमत पूरे दल-बल के साथ इलाके में आई और सैकड़ों ग्रामीणों को बंदी बना लिया.

बताया जाता है कि इलाके के बिश्रामपुर, ऊंटारी, पांडू, नावाबाजार, कंडा, राजहरा से सैकड़ों ग्रामीणों को पकड़कर इस पेड़ के पास लाया गया था. हजारों ग्रामीणों की मौजूदगी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले कई लोगों को फांसी और गोली मार दी गई.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और स्थानीय ग्रामीण किशोर पांडे बताते हैं कि उनके पूर्वज भी इस घटना के शिकार हुए थे. उन्होंने बताया कि उनके दादा घटना की कहानी सुनाया करते थे. करीब 400 ग्रामीणों को ब्रिटिश हुकूमत ने सजा दी थी. ब्रिटिश सरकार ने विद्रोहियों को चुन-चुन कर चिन्हित किया था.

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जानकारी देते संवाददाता नीरज कुमार (ईटीवी भारत)

यह गांव 1857 की क्रांति के करीब एक दशक बाद चर्चा में आया था. 1857 के बाद इलाके के राजहरा कोलियरी क्षेत्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो स्थानीय ग्रामीण एकजुट हो गए. ग्रामीणों ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत से जुड़े कई लोगों को निशाना बनाया. जिसमें अंग्रेजी हुकूमत से जुड़े लोग मारे गए थे. बाद में अंग्रेजी हुकूमत पूरे दल-बल के साथ इलाके में आई और सैकड़ों ग्रामीणों को बंदी बना लिया.

बताया जाता है कि इलाके के बिश्रामपुर, ऊंटारी, पांडू, नावाबाजार, कंडा, राजहरा से सैकड़ों ग्रामीणों को पकड़कर इस पेड़ के पास लाया गया था. हजारों ग्रामीणों की मौजूदगी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले कई लोगों को फांसी और गोली मार दी गई.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और स्थानीय ग्रामीण किशोर पांडे बताते हैं कि उनके पूर्वज भी इस घटना के शिकार हुए थे. उन्होंने बताया कि उनके दादा घटना की कहानी सुनाया करते थे. करीब 400 ग्रामीणों को ब्रिटिश हुकूमत ने सजा दी थी. ब्रिटिश सरकार ने विद्रोहियों को चुन-चुन कर चिन्हित किया था.

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