रायपुर : वन जीवन के लिए आवश्यक है.छत्तीसगढ़ का क्षेत्र वन बाहुल्य है.यहां के जंगलों में कई तरह की वनस्पतियां पाई जाती है.लेकिन विकास के नाम पर अब खनिज के साथ वन संपदा का दोहन किया जा रहा है. ऐसे में जरुरत है लोगों को वनों के संरक्षण के प्रति जागरुक करने की.आज कई तरह की जड़ी बूटियां विलुप्ति की कगार पर हैं. जो हमारे जीवन को बचाने में कारगर है. जड़ी बूटियों को सहेजने के लिए कई संगठन प्रयास कर रहे हैं.वहीं कुछ लोग व्यक्तिगत तौर पर जड़ी बूटियों को बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं.ऐसे ही एक व्यक्ति हैं बीजापुर निवासी बीआर गोडबोले. गोडबोले दुर्लभ जड़ी बूटियों और बीजों का संकलन करते हैं. ईटीवी भारत से गोडबोले ने अपने अभियान के बारे में विस्तार से चर्चा की.
दुर्लभ जड़ी बूटियों को सहेजने का अभियान : बीआर गोडबोले ने बताया कि उन्होंने एक चार्ट तैयार किया है.जिसमें कई तरह की औषधीय पौधों के बीज रखे गए हैं.गोडबोले के मुताबिक आदिवासी जड़ी बूटियों का इस्तेमाल तो करते हैं,लेकिन उन्हें आगे के लिए कैसे बचाया जाए ये कोई नहीं सोचता.यदि इन्हें सहेजा नहीं गया तो आने वाले समय में ये विलुप्त हो जाएंगे.इसलिए औषधीय पेड़ और पौधे का बीज संकलन करके मैं लोगों तक पहुंचाता हूं.
गमलों से जंगल की ओर अभियान पर काम : ईटीवी भारत से चर्चा के दौरान गोडबोले ने बताया कि निर्भली, चिल्ला, चेट्टू, घोरणी, यह एक ही औषधि के अलग-अलग नाम है. जिसका पानी को साफ करने के लिए इस्तेमाल होता है. जंगलों में झरना नदी तालाब से आने वाले पानी को पीने योग्य बनाने के लिए निर्भली का इस्तेमाल किया जाता है. इसके दो चार दाने पानी में डालने पर पानी साफ हो जाता है. इसके अलावा गोडबोले ने कैंसर के इलाज के लिए भी कुछ औषधियों की जानकारी दी. जिसके कंद के जरिए कैंसर का इलाज होता है. गोडबोले के मुताबिक वो "गमलों से जंगल की ओर" कॉन्सेप्ट पर काम कर रहे हैं.जड़ी बूटी और औषधि को संरक्षित करने के लिए वो कई लोगों को प्रेरित कर रहे हैं. गोडबोले लोगों को जड़ी बूटी के इस्तेमाल की जानकारी भी देते हैं.
''आज जंगलों की बेरहमी से कटाई की जा रही है, उसे संरक्षित करने पर ज्यादा जोर नहीं दिया जा रहा है. इस वजह से इसका पर्यावरण पर भी असर पड़ रहा है. यदि जड़ी बूटी पेड़ पौधे लोग लगाकर संरक्षित करते हैं, उस पर ध्यान देते हैं , उसे काटने की नहीं सोचते तो इन्हें सहेजा जा सकता है.नहीं तो आने वाले समय में जड़ी बूटियां विलुप्त हो जाएंगी.'' बी राव गोडबोले, पर्यावरण संरक्षक
कलिंगा यूनिवर्सिटी के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्मेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर अभिजीता नंदा भी जड़ी बूटियों के काउंटर में पहुंची. अभिजीता ने कहा कि उन्हें काउंटर पर आकर कई चीजों की जानकारी मिली.आयुर्वेद से संबंधित कई चीजों को वो नहीं जानती थी.
''ये प्लांट्स जंगलों में मिलते हैं, जो शहरों में देखने को नहीं मिलते हैं.हम लोग सिर्फ फूल पत्ती पौधे ही देखते हैं, लेकिन उनके लाभ उनसे संबंधित जानकारी नहीं रखते हैं. यहां पहुंचने से इस बात की जानकारी मिली कि ऐसा कोई भी प्लांट नहीं है,जिसका कोई उपयोग ना हो.'' अभिजीता नंदा, असिस्टेंट प्रोफेसर
बीआर गोडबोले का अभियान निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ा संदेश देकर जाएगा. आज जड़ी बूटियां की जगह एलोपैथिक दवाईयों ने ले ली है.लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इन महंगी दवाईयों का स्त्रोत यही जड़ी बूटियां हैं. पुरातन काल से भारत में जड़ी बूटियों से दुर्लभ रोगों का इलाज होता आ रहा है.ऐसे में हम सभी को चाहिए कि जीवन के संरक्षण के लिए जड़ी बूटियों को जरुर बचाएं.