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सरगुजा की बॉक्सर गर्ल साक्षी ने किया कमाल, मेडल लाकर बढ़ाया प्रदेश का मान - Boxer Girl Sakshi Sahu

Boxer Girl Sakshi Sahu मारवाड़ की कहावत है 'म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के'. इस कहावत को सरगुजा की छोरियां ने भी सही साबित किया है. हमने लगातार आप तक सरगुजा की बेटियों की उपलब्धियां पहुंचाई है. कभी बास्केटबॉल तो कभी ड्राप रो बॉल तो कभी मिनी गोल्फ जैसे खेल में यहां की बेटियों ने कीर्तिमान रचा है. लेकिन इस बार एक बेटी में कुछ अलग कर दिखाया है.

Sakshi Sahu did wonders
सरगुजा की छोरी साक्षी ने किया कमाल (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 20, 2024, 8:21 AM IST

सरगुजा : अब तक आपने हरियाणा और पंजाब की बेटियों को पहलवानी, कराटे और बॉक्सिंग करते देखा होगा. लेकिन आप छत्तीसगढ़ की भी बेटियों को मर्दों के खेलों में प्रदर्शन करते देखेंगे. क्योंकि सरगुजा की एक 17 वर्ष की बच्ची साक्षी साहू बॉक्सिंग, किक बॉक्सिंग, जूडो, कराटे, चित कोंडो, मार्शल आर्ट जैसे खेल एक साथ खेल रही है. साक्षी अपने जीवन का पहला खेल चित कोंडो खेलने मुम्बई गई वहां डबल गोल्ड जीता. राज्य स्तरीय कराटे में ब्रॉन्ज मेडल, इसके बाद ओडिशा के पुरी में सीबीएसई नेशनल जोनल बॉक्सिंग में गोल्ड जीता है.

सरगुजा की छोरी साक्षी ने किया कमाल (ETV Bharat Chhattisgarh)

बचपन में ही तय किया लक्ष्य : साक्षी बताती हैं कि "बचपन से ही मेरीकॉम उसकी प्रेरणा रही है, पढ़ाई के दौरान ही मैंने मैरीकॉम की कहानी पढ़ी जिससे प्रेरित होकर मैंने बचपन मे ही तय कर लिया था कि मैं बॉक्सिंग करूंगी. शुरू में परिवार वाले डरते थे कि लड़की होकर कैसे बॉक्सिंग करूंगी, चेहरा खराब हो जाएगा. लेकिन जब मैं सफल हुई तो घर वाले भी सपोर्ट करते हैं. सरगुजा जैसी जगह में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग के लिए कोई भी इनडोर स्थान नही है. लड़कियों को ट्रेनिंग में दिक्कत होती है.

''बहुत से ऐसे स्टेप हैं जिन्हें पब्लिक के सामने करने में लड़कियों को शर्म महसूस होती है. प्रशासन अगर एक इनडोर कैम्पस उपलब्ध करा देता तो बहुत अच्छा होता. यहां तो कोच भी उपलब्ध नहीं हैं. एक प्राइवेट स्कूल के टीचर अनिरुद्ध अग्रवाल सर ने कोचिंग दी है. वो और भी बच्चियों को सिखा रहे हैं. लेकिन संसाधन उपलब्ध नही हैं"- साक्षी साहू, बॉक्सर

साक्षी महज डेढ़ वर्ष से बॉक्सिंग सीख रही हैं. इतने कम समय मे ही उसने नेशनल गेम में गोल्ड, स्टेट में ब्रॉन्ज और सिल्वर जैसे मेडल जीते हैं. वो इतनी प्रशिक्षित हो चुकी है कि खुद भी कोच बन गई हैं. अपने कोच के मार्गदर्शन में साक्षी छोटे बच्चों को बॉक्सिंग सिखाती हैं. बच्चों का सपना भी आगे चलकर बॉक्सर बनने का ही है.

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सरगुजा की छोरी साक्षी ने किया कमाल (ETV Bharat Chhattisgarh)

बचपन में ही तय किया लक्ष्य : साक्षी बताती हैं कि "बचपन से ही मेरीकॉम उसकी प्रेरणा रही है, पढ़ाई के दौरान ही मैंने मैरीकॉम की कहानी पढ़ी जिससे प्रेरित होकर मैंने बचपन मे ही तय कर लिया था कि मैं बॉक्सिंग करूंगी. शुरू में परिवार वाले डरते थे कि लड़की होकर कैसे बॉक्सिंग करूंगी, चेहरा खराब हो जाएगा. लेकिन जब मैं सफल हुई तो घर वाले भी सपोर्ट करते हैं. सरगुजा जैसी जगह में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग के लिए कोई भी इनडोर स्थान नही है. लड़कियों को ट्रेनिंग में दिक्कत होती है.

''बहुत से ऐसे स्टेप हैं जिन्हें पब्लिक के सामने करने में लड़कियों को शर्म महसूस होती है. प्रशासन अगर एक इनडोर कैम्पस उपलब्ध करा देता तो बहुत अच्छा होता. यहां तो कोच भी उपलब्ध नहीं हैं. एक प्राइवेट स्कूल के टीचर अनिरुद्ध अग्रवाल सर ने कोचिंग दी है. वो और भी बच्चियों को सिखा रहे हैं. लेकिन संसाधन उपलब्ध नही हैं"- साक्षी साहू, बॉक्सर

साक्षी महज डेढ़ वर्ष से बॉक्सिंग सीख रही हैं. इतने कम समय मे ही उसने नेशनल गेम में गोल्ड, स्टेट में ब्रॉन्ज और सिल्वर जैसे मेडल जीते हैं. वो इतनी प्रशिक्षित हो चुकी है कि खुद भी कोच बन गई हैं. अपने कोच के मार्गदर्शन में साक्षी छोटे बच्चों को बॉक्सिंग सिखाती हैं. बच्चों का सपना भी आगे चलकर बॉक्सर बनने का ही है.

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