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झारखंड में विक्टिम पॉलिटिक्स, हेमंत और चंपाई आमने-सामने, किसका पलड़ा है भारी, क्या है जमीनी सच्चाई - Victim Politics in Jharkhand

Hemant Soren vs Champai Soren. झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम चंपाई सोरेन विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं. एक अपमानित करने का आरोप लगा रहे हैं तो दूसरे साजिश के तहत जेल भेजे जाने की बात कर रहे हैं. दोनों आमने-सामने हैं, किसका पलड़ा है भारी, क्या है जमीनी सच्चाई इस रिपोर्ट में जानें.

Hemant Soren vs Champai Soren
डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 9, 2024, 9:30 PM IST

रांची: झारखंड में इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है. क्योंकि 2019 के मुकाबले परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है. इसबार एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन के बीच मुकाबला होना है. दलों के लिहाज से एनडीए में भाजपा, आजसू, जदयू और एनसीपी (अजित पवार गुट) है तो इंडिया गठबंधन में झामुमो, कांग्रेस, राजद के अलावा भाकपा माले.

अलग बात है कि अभी सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होना बाकी है. लेकिन इन सबके बीच इस बार की राजनीति सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के ईर्द-गिर्द घूमती दिख रही है. दोनों नेता खुलकर विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं. अब सवाल है कि इस खेल में किसका पलड़ा भारी दिख रहा है. आम जनता के बीच दोनों को लेकर किस तरह की चर्चा हो रही है.

वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार अभी हाल ही में चंपाई सोरेन के पैतृक गांव जिलिंगगोड़ा की नब्ज टटोलकर लौटे हैं. उनके मुताबिक हेमंत सोरेन और चंपाई सोरेन के विक्टिम कार्ड की चर्चा जरुर हो रही है चूकि गांव के लोगों के सुख दुख में चंपाई सोरेन का हमेशा साथ मिलता है, इसलिए वहां के लोग कह रहे हैं कि चुनाव तक वह सीएम बने रहते तो क्या हो जाता. इसी बात को दूसरे गांव के लोग अलग तरीके से देख रहे हैं.

कुछ का कहना है कि चंपाई को सीएम तो आखिर हेमंत ने ही बनाया था. वहीं बहुत से लोग अभी तक मन मिजाज नहीं बना पाए हैं कि जाना किधर है. झुकाव की असली तस्वीर चुनाव के वक्त ही देखने को मिल सकती है. लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा में आकर चंपाई सोरेन ने अपनी सरायकेला सीट को बहुत हद तक सुरक्षित कर लिया है. अब वह कोल्हान की दूसरी सीटों पर कितना असर डालेंगे, अभी कहना मुश्किल है.

रही बात हेमंत सोरेन की तो उनको पांच माह तक जेल में रखे जाने वाली घटना की जमीनी स्तर पर कोई खास चर्चा नहीं है. उनके लिए मंईयां सम्मान योजना प्लस प्वाइंट जरूर बना है. खासकर आदिवासी महिलाओं के बीच. क्योंकि यहां का आदिवासी समाज महिला प्रधान है. महिलाओं के हाथों में परिवार की बागडोर होती है. लिहाजा, यह कहना गलत नहीं होगा कि एक हजार रु. की सम्मान राशि ने हेमंत सोरेन को मजबूती दी है.

वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी का कहना है कि दोनों नेताओं के पास विक्टिम कार्ड है. फर्क इतना है कि हेमंत सोरेन का विक्टिम कार्ड भाजपा के खिलाफ है. उनका कहना है कि बेवजह पांच माह तक जेल में रख दिया. सरकार गिराने की साजिश की जाती रही. जबकि चंपाई सोरेन के पास अपमान वाला विक्टिम कार्ड है. वह नाम लिए बिना एक तरह से हेमंत सोरेन को ही घेर रहे हैं. आदिवासी समाज में इसकी चर्चा भी हो रही है.

चंपाई सोरेन आंदोलन की उपज हैं. समाज में उनका प्रभाव है. कोल्हान में जिस तरह से उनकी सभाओं में भीड़ जुट रही है, उससे बहुत कुछ आंका जा सकता है. फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि चंपाई सोरेन कोल्हान में तीन से चार सीट पर असर डाल सकते हैं. संथाल में भी सत्ताधारी दलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. यही वजह है कि चंपाई सोरेन पर झामुमो सीधा हमला नहीं कर पा रहा है.

गुरुजी की पार्टी के प्रति आदिवासी समाज के सेंटीमेंट को चंपाई सोरेन भी बखूबी समझते हैं. इसलिए वह आदिवासियों की बदहाली के लिए कांग्रेस पर हमला बोल रहे हैं. जाहिर है कि कांग्रेस को नुकसान होने का मतलब है भाजपा को फायदा. एक नैरेटिव सेट करने की कोशिश हो रही है. हालांकि इस मामले में हेमंत सोरेन आगे हैं लेकिन जमीनी तौर पर चंपाई सोरेन मजबूत दिख रहे हैं. आदिवासी समाज के बीच अलग-थलग पड़ चुकी भाजपा उन्हें तुरुप के पत्ते में रूप में देख रही है. लिहाजा, इस बार का झारखंड विधानसभा का चुनाव बेहद रोचक होगा.

जनता के बीच क्या कह रहे हैं हेमंत और चंपाई

दोनों नेता खुलकर विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं. लेकिन एक दूसरे के खिलाफ सीधे तौर पर बयानबाजी से बच रहे हैं. दोनों में एक बात कॉमन दिख रही है. चंपाई कह रहे हैं कि आदिवासियों की बदहाली के लिए कांग्रेस जिम्मेवार है तो हेमंत सोरेन भाजपा को महाजनी पार्टी बताकर आदिवासियों का दुश्मन बता रहे हैं. गुवा गोलीकांड के बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने 9 सितंबर को सिंहभूम गये सीएम ने बस इतना कहा कि अपने बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस लड़ाई को छोड़कर अलग राह पर चले गये.

वहीं गुवा में श्रद्धांजलि देने गये चंपाई सोरेन ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही यहां गोली चलवायी थी. कांग्रेस कभी आदिवासियों के हित में नहीं रही है. हेमंत कह रहे हैं भाजपा वाले राज्य को लूट लेंगे. वहीं चंपाई कह रहे हैं कि झारखंड में आदिवासियों को कोई पार्टी बचा सकती है तो वह सिर्फ भाजपा है. उनका कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से आदिवासी समाज सिमटता जा रहा है. हालांकि इस मसले पर झामुमो की दलील है कि घुसपैठ रोकना केंद्र सरकार का काम है.

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रांची: झारखंड में इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है. क्योंकि 2019 के मुकाबले परिस्थिति बिल्कुल बदल चुकी है. इसबार एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन के बीच मुकाबला होना है. दलों के लिहाज से एनडीए में भाजपा, आजसू, जदयू और एनसीपी (अजित पवार गुट) है तो इंडिया गठबंधन में झामुमो, कांग्रेस, राजद के अलावा भाकपा माले.

अलग बात है कि अभी सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होना बाकी है. लेकिन इन सबके बीच इस बार की राजनीति सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के ईर्द-गिर्द घूमती दिख रही है. दोनों नेता खुलकर विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं. अब सवाल है कि इस खेल में किसका पलड़ा भारी दिख रहा है. आम जनता के बीच दोनों को लेकर किस तरह की चर्चा हो रही है.

वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार अभी हाल ही में चंपाई सोरेन के पैतृक गांव जिलिंगगोड़ा की नब्ज टटोलकर लौटे हैं. उनके मुताबिक हेमंत सोरेन और चंपाई सोरेन के विक्टिम कार्ड की चर्चा जरुर हो रही है चूकि गांव के लोगों के सुख दुख में चंपाई सोरेन का हमेशा साथ मिलता है, इसलिए वहां के लोग कह रहे हैं कि चुनाव तक वह सीएम बने रहते तो क्या हो जाता. इसी बात को दूसरे गांव के लोग अलग तरीके से देख रहे हैं.

कुछ का कहना है कि चंपाई को सीएम तो आखिर हेमंत ने ही बनाया था. वहीं बहुत से लोग अभी तक मन मिजाज नहीं बना पाए हैं कि जाना किधर है. झुकाव की असली तस्वीर चुनाव के वक्त ही देखने को मिल सकती है. लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा में आकर चंपाई सोरेन ने अपनी सरायकेला सीट को बहुत हद तक सुरक्षित कर लिया है. अब वह कोल्हान की दूसरी सीटों पर कितना असर डालेंगे, अभी कहना मुश्किल है.

रही बात हेमंत सोरेन की तो उनको पांच माह तक जेल में रखे जाने वाली घटना की जमीनी स्तर पर कोई खास चर्चा नहीं है. उनके लिए मंईयां सम्मान योजना प्लस प्वाइंट जरूर बना है. खासकर आदिवासी महिलाओं के बीच. क्योंकि यहां का आदिवासी समाज महिला प्रधान है. महिलाओं के हाथों में परिवार की बागडोर होती है. लिहाजा, यह कहना गलत नहीं होगा कि एक हजार रु. की सम्मान राशि ने हेमंत सोरेन को मजबूती दी है.

वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी का कहना है कि दोनों नेताओं के पास विक्टिम कार्ड है. फर्क इतना है कि हेमंत सोरेन का विक्टिम कार्ड भाजपा के खिलाफ है. उनका कहना है कि बेवजह पांच माह तक जेल में रख दिया. सरकार गिराने की साजिश की जाती रही. जबकि चंपाई सोरेन के पास अपमान वाला विक्टिम कार्ड है. वह नाम लिए बिना एक तरह से हेमंत सोरेन को ही घेर रहे हैं. आदिवासी समाज में इसकी चर्चा भी हो रही है.

चंपाई सोरेन आंदोलन की उपज हैं. समाज में उनका प्रभाव है. कोल्हान में जिस तरह से उनकी सभाओं में भीड़ जुट रही है, उससे बहुत कुछ आंका जा सकता है. फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि चंपाई सोरेन कोल्हान में तीन से चार सीट पर असर डाल सकते हैं. संथाल में भी सत्ताधारी दलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. यही वजह है कि चंपाई सोरेन पर झामुमो सीधा हमला नहीं कर पा रहा है.

गुरुजी की पार्टी के प्रति आदिवासी समाज के सेंटीमेंट को चंपाई सोरेन भी बखूबी समझते हैं. इसलिए वह आदिवासियों की बदहाली के लिए कांग्रेस पर हमला बोल रहे हैं. जाहिर है कि कांग्रेस को नुकसान होने का मतलब है भाजपा को फायदा. एक नैरेटिव सेट करने की कोशिश हो रही है. हालांकि इस मामले में हेमंत सोरेन आगे हैं लेकिन जमीनी तौर पर चंपाई सोरेन मजबूत दिख रहे हैं. आदिवासी समाज के बीच अलग-थलग पड़ चुकी भाजपा उन्हें तुरुप के पत्ते में रूप में देख रही है. लिहाजा, इस बार का झारखंड विधानसभा का चुनाव बेहद रोचक होगा.

जनता के बीच क्या कह रहे हैं हेमंत और चंपाई

दोनों नेता खुलकर विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं. लेकिन एक दूसरे के खिलाफ सीधे तौर पर बयानबाजी से बच रहे हैं. दोनों में एक बात कॉमन दिख रही है. चंपाई कह रहे हैं कि आदिवासियों की बदहाली के लिए कांग्रेस जिम्मेवार है तो हेमंत सोरेन भाजपा को महाजनी पार्टी बताकर आदिवासियों का दुश्मन बता रहे हैं. गुवा गोलीकांड के बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने 9 सितंबर को सिंहभूम गये सीएम ने बस इतना कहा कि अपने बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस लड़ाई को छोड़कर अलग राह पर चले गये.

वहीं गुवा में श्रद्धांजलि देने गये चंपाई सोरेन ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही यहां गोली चलवायी थी. कांग्रेस कभी आदिवासियों के हित में नहीं रही है. हेमंत कह रहे हैं भाजपा वाले राज्य को लूट लेंगे. वहीं चंपाई कह रहे हैं कि झारखंड में आदिवासियों को कोई पार्टी बचा सकती है तो वह सिर्फ भाजपा है. उनका कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से आदिवासी समाज सिमटता जा रहा है. हालांकि इस मसले पर झामुमो की दलील है कि घुसपैठ रोकना केंद्र सरकार का काम है.

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