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अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024: अभिनेता आशुतोष राणा बने रावण, किया असली दशानन को जीवंत, दर्शक हुए मंत्रमुग्ध - ACTOR ASHUTOSH RANA BECAME RAAVAN

अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में शनिवार को अभिनेता आशुतोष राणा पहुंचे. आशुतोष राणा ने "हमारे राम" नाटक के जरिए रावण के असली चरित्र को जीवंत किया.

Actor Ashutosh Rana became Raavan
अभिनेता आशुतोष राणा बने रावण (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 8, 2024, 7:34 AM IST

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024 चल रहा है. इस बीच शनिवार को ब्रह्मसरोवर के पुरुषोत्तमपुरा बाग के मुख्य मंच पर नाटक "हमारे राम" का शानदार मंचन हुआ. इस मंचन में अभिनेता आशुतोष राणा ने रावण की भूमिका अदा की. तकरीबन तीन घंटे के नाटक ने दर्शकों को भारतीय पौराणिक कथाओं के एक जटिल चरित्र रावण को नए दृष्टिकोण से समझने का मौका दिया. रावण के किरदार को लेकर राणा की गहरी समझ और उनके भावपूर्ण प्रदर्शन ने दर्शकों का मन मोह लिया.

आशुतोष राणा ने किया असली रावण को जीवंत: प्रसिद्ध अभिनेता आशुतोष राणा ने नाटक में रावण का किरदार बेहद प्रभावशाली ढंग से निभाया. उनके संवाद की शैली, उनकी भाव-भंगिमाएं और मंच पर उनकी एंट्री इतनी जबरदस्त थी कि दर्शक उनके साथ रावण के द्वंद्व, संघर्ष और अंतर्द्वंद को महसूस कर रहे थे. तीन घंटे के इस नाटक में आशुतोष राणा ने रावण के चरित्र की गहराईयों को काफी अच्छे से पेश किया. नाटक में एक ओर वह अत्यंत ज्ञानी, विद्वान और तपस्वी के रूप में दिखे. वहीं दूसरी ओर एक अहंकारी, क्रोधी और शक्ति के प्रतीक के तौर पर भी नजर आए. एक ओर वह श्रीराम को ललकार रहे थे, लेकिन दूसरी ओर अंदर ही अंदर इसी के जरिए वह अपने ज्ञान और पांडित्य के अहंकार से भी मुक्त होना चाह रहे थे.

ACTOR ASHUTOSH RANA BECAME RAAVAN
पुरुषोत्तमपुरा बाग के मुख्य मंच पर नाटक "हमारे राम" का शानदार मंचन (ETV Bharat)

खलनायक नहीं विद्वान था रावण: दरअसल रावण को हमेशा एक नकारात्मक चरित्र के रूप में देखा गया है, लेकिन उसके व्यक्तित्व में कई परतें है. वह सिर्फ एक खलनायक नहीं था, बल्कि वह एक महान विद्वान, शिव भक्त और तपस्वी था. उसकी नकारात्मकता उसके अहंकार और वासनाओं से आई, लेकिन उसके भीतर भी ज्ञान और सच्चाई की तलाश थी. आशुतोष राणा ने नाटक के जरिए रावण की गहराई और उसके प्रति अपने दृष्टिकोण पर खुलकर प्रकाश डाला. उन्होंने नाटक में दिखाया कि रावण को नकारात्मक रूप में देखना उसकी महानता को कम आंकने जैसा है.

रावण का अंत मृत्यु नहीं मुक्ति की खोज: रावण न केवल एक शक्तिशाली राजा था, बल्कि वह एक ज्ञानी और विद्वान भी था, जिसकी इच्छा आत्मज्ञान और मोक्ष से भी परे मुक्त होने की थी. रावण का अंत केवल मृत्यु नहीं था, बल्कि वह आत्मज्ञान और मुक्ति की खोज में था. उसका अंत उसके अहंकार का अंत था. यह उसकी आध्यात्मिक यात्रा का समापन था. इस दृष्टिकोण से, रावण एक आदर्श विरोधाभास है. जहां वह बुराई का प्रतीक होने के बावजूद अंतत: ज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर होता है.

International Gita Festival 2024
नाटक "हमारे राम" का शानदार मंचन (ETV Bharat)

नाटक के जरिए दिया गया खास मैसेज: नाटक के जरिए आधुनिक जीवन के संदर्भ को जोड़ा गया. नाटक के जरिए ये बताया गया कि आज हर व्यक्ति के भीतर रावण और राम दोनों है. यह हमारे ऊपर है कि हम किसे प्राथमिकता देते हैं. जब हम अपने भीतर की इच्छाओं और वासनाओं को नियंत्रित करते हैं, तभी हम सच्चे राम के अनुयायी बनते है. नाटक में आज के समय में अच्छाई और बुराई के बीच के संघर्ष को दर्शाया गया. वर्तमान में भी हर व्यक्ति इस द्वंद्व से गुजर रहा है. वह अच्छाई और बुराई के बीच उलझ रहा है. हमारे जीवन में भी राम और रावण का संघर्ष है. यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने भीतर के राम को जगह दें या रावण को.

ये भी पढ़ें: अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024: "मिनी हरियाणा" में आए मेहमानों को भाया हरियाणवी फूड, बोले- "पिज्जा-बर्गर छोड़ो, ये खाओ "

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2024 चल रहा है. इस बीच शनिवार को ब्रह्मसरोवर के पुरुषोत्तमपुरा बाग के मुख्य मंच पर नाटक "हमारे राम" का शानदार मंचन हुआ. इस मंचन में अभिनेता आशुतोष राणा ने रावण की भूमिका अदा की. तकरीबन तीन घंटे के नाटक ने दर्शकों को भारतीय पौराणिक कथाओं के एक जटिल चरित्र रावण को नए दृष्टिकोण से समझने का मौका दिया. रावण के किरदार को लेकर राणा की गहरी समझ और उनके भावपूर्ण प्रदर्शन ने दर्शकों का मन मोह लिया.

आशुतोष राणा ने किया असली रावण को जीवंत: प्रसिद्ध अभिनेता आशुतोष राणा ने नाटक में रावण का किरदार बेहद प्रभावशाली ढंग से निभाया. उनके संवाद की शैली, उनकी भाव-भंगिमाएं और मंच पर उनकी एंट्री इतनी जबरदस्त थी कि दर्शक उनके साथ रावण के द्वंद्व, संघर्ष और अंतर्द्वंद को महसूस कर रहे थे. तीन घंटे के इस नाटक में आशुतोष राणा ने रावण के चरित्र की गहराईयों को काफी अच्छे से पेश किया. नाटक में एक ओर वह अत्यंत ज्ञानी, विद्वान और तपस्वी के रूप में दिखे. वहीं दूसरी ओर एक अहंकारी, क्रोधी और शक्ति के प्रतीक के तौर पर भी नजर आए. एक ओर वह श्रीराम को ललकार रहे थे, लेकिन दूसरी ओर अंदर ही अंदर इसी के जरिए वह अपने ज्ञान और पांडित्य के अहंकार से भी मुक्त होना चाह रहे थे.

ACTOR ASHUTOSH RANA BECAME RAAVAN
पुरुषोत्तमपुरा बाग के मुख्य मंच पर नाटक "हमारे राम" का शानदार मंचन (ETV Bharat)

खलनायक नहीं विद्वान था रावण: दरअसल रावण को हमेशा एक नकारात्मक चरित्र के रूप में देखा गया है, लेकिन उसके व्यक्तित्व में कई परतें है. वह सिर्फ एक खलनायक नहीं था, बल्कि वह एक महान विद्वान, शिव भक्त और तपस्वी था. उसकी नकारात्मकता उसके अहंकार और वासनाओं से आई, लेकिन उसके भीतर भी ज्ञान और सच्चाई की तलाश थी. आशुतोष राणा ने नाटक के जरिए रावण की गहराई और उसके प्रति अपने दृष्टिकोण पर खुलकर प्रकाश डाला. उन्होंने नाटक में दिखाया कि रावण को नकारात्मक रूप में देखना उसकी महानता को कम आंकने जैसा है.

रावण का अंत मृत्यु नहीं मुक्ति की खोज: रावण न केवल एक शक्तिशाली राजा था, बल्कि वह एक ज्ञानी और विद्वान भी था, जिसकी इच्छा आत्मज्ञान और मोक्ष से भी परे मुक्त होने की थी. रावण का अंत केवल मृत्यु नहीं था, बल्कि वह आत्मज्ञान और मुक्ति की खोज में था. उसका अंत उसके अहंकार का अंत था. यह उसकी आध्यात्मिक यात्रा का समापन था. इस दृष्टिकोण से, रावण एक आदर्श विरोधाभास है. जहां वह बुराई का प्रतीक होने के बावजूद अंतत: ज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर होता है.

International Gita Festival 2024
नाटक "हमारे राम" का शानदार मंचन (ETV Bharat)

नाटक के जरिए दिया गया खास मैसेज: नाटक के जरिए आधुनिक जीवन के संदर्भ को जोड़ा गया. नाटक के जरिए ये बताया गया कि आज हर व्यक्ति के भीतर रावण और राम दोनों है. यह हमारे ऊपर है कि हम किसे प्राथमिकता देते हैं. जब हम अपने भीतर की इच्छाओं और वासनाओं को नियंत्रित करते हैं, तभी हम सच्चे राम के अनुयायी बनते है. नाटक में आज के समय में अच्छाई और बुराई के बीच के संघर्ष को दर्शाया गया. वर्तमान में भी हर व्यक्ति इस द्वंद्व से गुजर रहा है. वह अच्छाई और बुराई के बीच उलझ रहा है. हमारे जीवन में भी राम और रावण का संघर्ष है. यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने भीतर के राम को जगह दें या रावण को.

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