मेरठ: लोकसभा चुनाव 2024 में पश्चिम यूपी के 27 सीटों को भाजपा काफी अहम मान रही है. इन सीटों को भाजपा चुनौती लेकर चल रही है. यही कारण है कि भाजपा ने यहां राष्ट्रीय लोकदल (RLD) से गठबंधन किया है. इसके अलावा मेरठ से टीवी के राम अरुण गोविल को चुनावी मैदान में उतारा है. इस तरह से भाजपा ने पश्चिम के रण को भेदने के लिए दो तीर चलाए हैं.
रालोद के जरिए भाजपा जाट लैंड में किसानों और जाटों को साधने की कोशिश करेगी. जबकि अरुण गोविल के जरिए भाजपा ने भगवान राम के चेहरे को चुनावी मैदान में उतारा. राम लहर को भुनाने के लिए भाजपा ने अरुण गोविल पर दांव खेला है. इसके साथ ही जातीय समीकरण का भी ध्यान रखा है. दरअसल, वर्तमान में मेरठ से राजेंद्र अग्रवाल भाजपा सांसद हैं. उनकी ही तरह अरुण गोविल भी अग्रवाल यानि वैश्य समुदाय से हैं.
दरअसल, मेरठ को पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी कहा जाता है. अयोध्या की राम लहर को भुनाने के लिए पार्टी एकमत हुई और भगवान राम के प्रतिनिधि चरित्र और हिंदुत्व का चेहरा कहलाने वाले अरुण गोविल के नाम पर मुहर लग गई. रामानंद सागर द्वारा बनाए गए मेगा सीरियल रामायण में भगवान राम की भूमिका निभाने गोविल घर-घर में मशहूर हो गए थे.
12 जनवरी 1958 को यूपी के मेरठ में जन्में अरुण गोविल वैश्य समाज से ताल्लुक रखते हैं. इनके पिता चंद्र प्रकाश गोविल सरकारी ऑफिसर थे और वो चाहते थे कि अरुण भी किसी सरकारी विभाग में नौकरी करें. लेकिन, वो कुछ ऐसा करना चाहते थे कि लोग उन्हें याद रखें, उन्हें अलग पहचान मिले. अरुण गोविल के 4 भाई और 2 बहने हैं.
इनके बड़े भाई विजय गोविल ने एक्ट्रेस और एंकर तबस्सुम के साथ शादी की थी. अरुण गोविल ने श्रीलेखा नाम की महिला से शादी की थी. उनसे उन्हें दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी है. अरुण गोविल की बेटी यूएसए में पढ़ाई करती है. वहीं उनके बेटे ने साल 2010 में एक बैंकर से शादी की थी जिनसे उन्हें एक बेटा है.
अयोध्या से निकली अरुण गोविल के राजनीतिक सफर की राह: अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को हुई थी. बड़ा आयोजन हुआ था. इसमें टीवी के राम, सीता और लक्ष्मण भी पहुंचे थे. टीवी के राम अरुण गोविल के राजनीतिक सफर की बुनियाद वहीं से पड़ गई थी. माना जा रहा है कि अयोध्या में अरुण गोविल की मुलाकात राम दरबार में यूपी के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य व प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी से हुई थी. उसी दौरान उनसे राजनीति में आने को लेकर चर्चा हुई थी. इसके बाद अब भाजपा ने उनको मेरठ से लोकसभा चुनाव 2024 में उतार दिया है.
बीते चुनावों की बात करें को 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने पश्चिम यूपी की 27 सीटों में से 24 सीट पर कब्जा जमाया था. लेकिन, 2019 के चुनाव में भाजपा को यहां 5 सीटों का नुकसान हुआ था. कारण, सपा-रालोद, कांग्रेस बसपा का एकजुट होकर चुनाव लड़े थे. लेकिन, इस बार रालोद भाजपा के साथ है और बसपा अकेले ही चुनाव लड़ रही है. इससे सपा-कांग्रेस गठबंधन के वोटों में बिखराव तय है और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलने के आसार हैं. ऐसे में मौजूदा समीकरण और सियासी गुणा-गणित को देखते हुए यह माना जा रहा है कि भाजपा अपने के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहरा सकती है या उसे बेहतर कर सकती है.
पश्चिम में मुस्लिम वोटर निर्णायक: जातिगत आंकड़ों की बात करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है. ये किसी भी चुनाव का परिणाम बदलने में सक्षम रहते हैं. शायद यही वजह है कि बसपा ने कई सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट्स उतारे हैं.
सपा, बसपा ने 2019 के चुनाव में इसी समीकरण के जरिए 8 सीटें जीती थीं. वैसे, पश्चिम प्रदेश में 54 फीसदी से ज्यादा पिछड़े भी हैं. ऐसे में कश्यप, प्रजापति, धींवर, कुम्हार, माली जैसी जातियों से भाजपा को मजबूती मिल सकती है.
इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन सीटों पर 18 फीसदी से ज्यादा जाट हैं. जिनको साधने के लिए भाजपा ने रालोद को अपने साथ कर लिया है. इसके अलावा भाजपा का काडर वोटर वैश्य भी हैं. जिनकी संख्या खासकर शहरों में अच्छी है.
रालोद ने भाजपा का दामन थामकर बदला जाट-मुस्लिम समीकरण: वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों और मुस्लिमों के बीच जो दूरी बढ़ी थी, वह रालोद ने कम की थीं. मुस्लिमों ने खुले दिल से रालोद को वोट दिया था. लेकिन इस बार ये समीकरण बिलकुल बदल गया है. रालोद के भाजपा के साथ जाते ही जाट-मुस्लिम समीकरण बिखरता नजर आ रहा है. अब मुस्लिम किसका साथ देंगे, यह अहम सवाल है. जो 4 जून को ही पता चलेगा.