लखनऊ: पश्चिम उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में लगातार बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को जाटों के समर्थन का पूरा भरोसा नहीं है. अपने जाट नेताओं को भी भाजपा उस लिहाज से मजबूत नहीं मान रही. इसीलिए राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन भाजपा की मजबूरी बन गया है. पिछले लोकसभा चुनाव में भी पश्चिम उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था.
विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन पश्चिम उत्तर प्रदेश में उतना अच्छा नहीं रहा था. इसलिए भारतीय जनता पार्टी जयंत चौधरी को साथ लेकर चलना चाहती है. इसका लाभ उसको 2024 से ज्यादा 2027 के विधानसभा चुनाव में होगा. माना जा रहा है कि 14 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन भाजपा और रालोद के बीच गठबंधन का औपचारिक ऐलान किया जा सकता है.
पश्चिम यूपी में भाजपा के नेता
- भूपेंद्र सिंह चौधरी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. वे पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के हैं. उनकी छवि अब प्रदेश के बड़े नेता की है. मगर जाटों के बीच बतौर जाट नेता पार्टी उनको प्रस्तुत नहीं कर पा रही है. यह बात अलग है कि बतौर प्रदेश अध्यक्ष वे आला नेताओं में शामिल हैं.
- सतपाल सिंह मालिक ने साल 2014 में मुंबई पुलिस की नौकरी छोड़कर उत्तर प्रदेश की बागपत लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी से चुनाव लड़ा. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने यहां से जीत हासिल की. लगातार दो बार जीत हासिल करने के बावजूद सतपाल मलिक का अब खुद का टिकट खतरे में है. बतौर जाट नेता उनकी कोई पहचान नहीं है.
- डॉ. संजीव बालियान मुजफ्फरनगर से लगातार दो बार के सांसद हैं और कहने को भारतीय जनता पार्टी के पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े जाट नेता हैं. मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान वह भाजपा के मुखर चेहरा रहे थे. लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं मगर मुजफ्फरनगर के बाहर उनका प्रभाव बहुत अधिक नहीं नजर आता.
कुछ प्रमुख सीटें जो भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा चुनौती पूर्ण रहीं: नगीना, कैराना, बिजनौर, सम्भल, मुरादाबाद, सहारनपुर सीट भाजपा 2019 में हार गई थी. जबकि मुजफ्फरनगर और बागपत सीट भले ही भाजपा ने जीती हों मगर भाजपा को यहां काटे की टककर का सामना करना पड़ा. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी यहां जाट बाहुल्य सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल को लड़ाकर जीत हासिल करने की इच्छुक है.
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