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टंडन परिवार की सियासत की विरासत पर ग्रहण, 32 साल बाद परिवार के हाथ नहीं आया टिकट - lucknow news

लखनऊ पूर्वी विधानसभा चुनाव सीट पर होने वाले उपचुनाव में इस बार टंडन परिवार को टिकट नहीं मिला है. जबकि लालजी टंडन के बड़े बेटे के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 16, 2024, 8:22 PM IST

लखनऊ : लालजी टंडन और उनके परिवार की सियासत की विरासत पर ग्रहण लग गया है. पिछले 32 साल से टंडन परिवार का कोई ना कोई सदस्य भाजपा की टिकट के जरिए किसी न किसी सदन का सदस्य जरूर रहता है. यह पहला मौका होगा जब टंडन परिवार की विरासत सियासत में समाप्त होती नजर आ रही है. पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन के 2020 में निधन के बाद उनके बड़े बेटे आशुतोष टंडन का निधन 9 नवंबर 2023 को हो गया था. इसके बाद लखनऊ पूर्वी विधानसभा चुनाव क्षेत्र खाली था. आशुतोष टंडन के छोटे भाई अमित टंडन उर्फ कल्लू भैया टिकट के लिए प्रयासरत थे. बीजेपी के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात कर रहे थे. यहां तक कि कार्यकर्ताओं की मीटिंग भी ले रहे थे, इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का निर्णय उनके विपरीत चल गया. इनकी जगह बीजेपी ने अवध क्षेत्र के कोषाध्यक्ष ओपी श्रीवास्तव को इस विधानसभा से उपचुनाव में टिकट दे दिया.



टंडन परिवार 32 साल लगातार रहा जनप्रतिनिधिः लालजी टंडन 70 के दशक में एमएलसी रहे थे. लगातार किसी न किसी पद पर रहने की बात की जाए तो 1991 से यह सिलसिला शुरू हुआ. लालजी टंडन 1991 में पहली बार मंत्री बने थे. जब जब भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी लालजी टंडन मंत्री बनते रहे. 2009 में जब वे लोकसभा में लखनऊ सीट से चुने गए उसके बाद में उनके पुत्र आशुतोष टंडन को अलग-अलग सीटों से भारतीय जनता पार्टी का टिकट मिला. 2014 में कलराज मिश्र ने देवरिया से चुनाव लड़ा तो लखनऊ पूर्व की सीट खाली हो गई थी. यहां से आशुतोष टंडन ने उपचुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की. 2017 में योगी वन की सरकार में आशुतोष टंडन कैबिनेट मिनिस्टर भी थे. लेकिन उनके सेहत को देखते हुए 2022 में आशुतोष टंडन को मंत्री नहीं बनाया गया था. इस दौरान विधायक रहते हुए 9 नवंबर 2023 को आशुतोष का निधन हो गया. इसके बाद लखनऊ की पूर्व सीट खाली थी और लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ इस सीट के लिए उपचुनाव की भी घोषणा हो गई थी.


दयाशंकर सिंह की पैरोकारी से बना ओपी श्रीवास्तव का कामः लंबे समय से टिकट पाने वालों की रेस में अमित टंडन सबसे आगे चल रहे थे. जिस किसी से भी बात की जा रही थी वह सभी अमित टंडन का नाम ले रहे थे. भारतीय जनता पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ओपी श्रीवास्तव के नाम को हरी झंडी इसलिए दी. क्योंकि लखनऊ में कायस्थ समाज से जुड़ा कोई प्रतिनिधि नहीं है. परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह भी ओपी श्रीवास्तव के लिए पैरोकारी कर रहे थे. कायस्थ समाज से होना और दयाशंकर सिंह की पैरोकारी ओपी श्रीवास्तव के लिए काम कर गई और टंडन परिवार को किनारे कर दिया गया.

लखनऊ : लालजी टंडन और उनके परिवार की सियासत की विरासत पर ग्रहण लग गया है. पिछले 32 साल से टंडन परिवार का कोई ना कोई सदस्य भाजपा की टिकट के जरिए किसी न किसी सदन का सदस्य जरूर रहता है. यह पहला मौका होगा जब टंडन परिवार की विरासत सियासत में समाप्त होती नजर आ रही है. पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन के 2020 में निधन के बाद उनके बड़े बेटे आशुतोष टंडन का निधन 9 नवंबर 2023 को हो गया था. इसके बाद लखनऊ पूर्वी विधानसभा चुनाव क्षेत्र खाली था. आशुतोष टंडन के छोटे भाई अमित टंडन उर्फ कल्लू भैया टिकट के लिए प्रयासरत थे. बीजेपी के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात कर रहे थे. यहां तक कि कार्यकर्ताओं की मीटिंग भी ले रहे थे, इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का निर्णय उनके विपरीत चल गया. इनकी जगह बीजेपी ने अवध क्षेत्र के कोषाध्यक्ष ओपी श्रीवास्तव को इस विधानसभा से उपचुनाव में टिकट दे दिया.



टंडन परिवार 32 साल लगातार रहा जनप्रतिनिधिः लालजी टंडन 70 के दशक में एमएलसी रहे थे. लगातार किसी न किसी पद पर रहने की बात की जाए तो 1991 से यह सिलसिला शुरू हुआ. लालजी टंडन 1991 में पहली बार मंत्री बने थे. जब जब भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी लालजी टंडन मंत्री बनते रहे. 2009 में जब वे लोकसभा में लखनऊ सीट से चुने गए उसके बाद में उनके पुत्र आशुतोष टंडन को अलग-अलग सीटों से भारतीय जनता पार्टी का टिकट मिला. 2014 में कलराज मिश्र ने देवरिया से चुनाव लड़ा तो लखनऊ पूर्व की सीट खाली हो गई थी. यहां से आशुतोष टंडन ने उपचुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की. 2017 में योगी वन की सरकार में आशुतोष टंडन कैबिनेट मिनिस्टर भी थे. लेकिन उनके सेहत को देखते हुए 2022 में आशुतोष टंडन को मंत्री नहीं बनाया गया था. इस दौरान विधायक रहते हुए 9 नवंबर 2023 को आशुतोष का निधन हो गया. इसके बाद लखनऊ की पूर्व सीट खाली थी और लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ इस सीट के लिए उपचुनाव की भी घोषणा हो गई थी.


दयाशंकर सिंह की पैरोकारी से बना ओपी श्रीवास्तव का कामः लंबे समय से टिकट पाने वालों की रेस में अमित टंडन सबसे आगे चल रहे थे. जिस किसी से भी बात की जा रही थी वह सभी अमित टंडन का नाम ले रहे थे. भारतीय जनता पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ओपी श्रीवास्तव के नाम को हरी झंडी इसलिए दी. क्योंकि लखनऊ में कायस्थ समाज से जुड़ा कोई प्रतिनिधि नहीं है. परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह भी ओपी श्रीवास्तव के लिए पैरोकारी कर रहे थे. कायस्थ समाज से होना और दयाशंकर सिंह की पैरोकारी ओपी श्रीवास्तव के लिए काम कर गई और टंडन परिवार को किनारे कर दिया गया.

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