जयपुर: राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम आ चुके हैं. 7 में से 5 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की, लेकिन सबसे चौंकाने वाले आंकड़े बीजेपी के लिए दौसा विधानसभा सीट के रहे. यहां कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा की हार हुई है. भाई की हार से व्यथित किरोड़ी ने बयान जारी कर अपने संघर्ष की कहानी बताई. साथ ही उन्होंने हार के लिए अपनी ही पार्टी को कठघरे में खड़ा किया. बोले- गैरों में कहां दम था, मुझे तो सदा अपनों ने ही मारा है.
दिग्गज भाजपा नेता मीणा ने कहा कि 45 साल हो गए. राजनीति के सफर के दौरान सभी वर्गों के लिए संघर्ष किया, जनहित में सैंकड़ों आंदोलन किए. साहस से लड़ा, बदले में पुलिस के हाथों अनगिनत चोटें खाईं. आज भी बदरा घिरते हैं तो समूचा बदन कराह उठता है. मीसा से लेकर जनता की खातिर दर्जनों बार जेल की सलाखों के पीछे रहा. संघर्ष की इसी मजबूत नींव और सशक्त धरातल के बूते दौसा का उपचुनाव लड़ा. जनता के आगे संघर्ष की दास्तां रखी. घर-घर जाकर वोटों की भीख भी मांगी, फिर भी कुछ लोगों का दिल नहीं पसीजा.
यह बहुत गहरी भी है और पल-प्रति-पल सताने वाली भी। जिस भाई ने परछाईं बनकर जीवन भर मेरा साथ दिया, मेरी हर पीड़ा का शमन किया, उऋण होने का मौका आया तो कुछ जयचंदों के कारण मैं उसके ऋण को चुका नहीं पाया।
— Dr. Kirodi Lal Meena (@DrKirodilalBJP) November 23, 2024
मुझमें बस एक ही कमी है कि मैं चाटुकारिता नहीं करता और 5/6
लक्ष्मण जैसे भाई पर शक्ति चला दी: मीणा ने आगे कहा कि भितरघाती मेरे सीने में वाणों की वर्षा कर देते तो मैं दर्द को सीने में दबा सारी बातों को दफन कर देता, लेकिन उन्होंने मेघनाथ बनकर मेरे लक्ष्मण जैसे भाई पर शक्ति का बाण चला डाला. इसके आगे मीणा ने लिखा कि साढ़े चार दशक के संघर्ष से न तो हताश हूं और न ही निराश. पराजय ने मुझे सबक अवश्य सिखाया है, लेकिन विचलित नहीं हूं. आगे भी संघर्ष के इसी पथ पर बढ़ते रहने के लिए कृतसंकल्प हूं.
45 साल हो गए। राजनीति के सफर के दौरान सभी वर्गों के लिए संघर्ष किया। जनहित में सैंकड़ों आंदोलन किए। साहस से लड़ा। बदले में पुलिस के हाथों अनगिनत चोटें खाईं। आज भी बदरा घिरते हैं तो समूचा बदन कराह उठता है। मीसा से लेकर जनता की खातिर दर्जनों बार जेल की सलाखों के पीछे रहा। 1/6 pic.twitter.com/pKZdu5BVNv
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हृदय में है पीड़ा: मीणा ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि गरीब, मजदूर, किसान और हरेक दुखिया की सेवा के व्रत को कभी नहीं छोड़ सकता, लेकिन हृदय में एक पीड़ा अवश्य है. यह बहुत गहरी भी है और पल-प्रति-पल सताने वाली भी. जिस भाई ने परछाईं बनकर जीवन भर मेरा साथ दिया. मेरी हर पीड़ा का शमन किया, उऋण होने का मौका आया तो कुछ जयचंदों के कारण मैं उसके ऋण को चुका नहीं पाया. मुझमें बस एक ही कमी है कि मैं चाटुकारिता नहीं करता और इसी प्रवृत्ति के चलते मैंने राजनीतिक जीवन में बहुत नुकसान उठाया है. मीणा ने लिखा कि स्वाभिमानी हूं, जनता की खातिर जान की बाजी लगा सकता हूं. गैरों में कहां दम था, मुझे तो सदा ही अपनों ने ही मारा है.