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चुनावी शोरगुल में गुम है बिनोद बाबू का गांव, विकास के पहुंचने का कर रहे हैं इंतजार

धनबाद में स्थित स्व बिनोद बिहारी के परिवार और गांव, चुनावी शोरगुल के बीच आज भी विकास के लिए तरस रहे हैं.

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डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 2 hours ago

धनबाद: झारखंड के पुरोधा कहे जाने वाले स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो, जिनकी तस्वीर विधानसभा में है, झारखंड में सक्रिय सभी राजनीतिक दल उनके नाम लेने के बाद ही हर कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं. इसके बावजूद बिनोद बाबू के परिजन आज के इस चुनावी शोर में गुम हो गए हैं. राजनीतिक गलियारों में आज उनके परिवार की चर्चा नहीं होती है. उनके परिवार वाले भी कहते हैं कि जिस उद्देश्य के साथ झारखंड बना, आज वह पूरा नहीं हो सका है. बिनोद बाबू का नाम लेकर लोग कहां से कहां पहुंचे गए. लेकिन उनके सपनों को आज तक कोई भी साकार नहीं कर सकें.


बिनोद बाबू का गांव सिंदरी विधानसभा के बलियापुर प्रखंड अंतर्गत बड़ादाहा में है, जहां उनका आवास है. यहां उनके भतीजे जय किशोर महतो अपने परिवार के साथ रहते हैं. ईटीवी भारत से हुई बातचीत में उन्होंने ने बताया कि बिनोद बिहारी महतो ने जो सपना देखा था, वह आज भी अधूरा है. झारखंड में सक्रिय सभी पार्टियां इस राज्य को विकास की दिशा में लाने में असक्षम हैं. उनके गांव में भी विकास का कोई काम नहीं हुआ है. सड़क, पानी और बिजली की समस्या है. यहां के लोग बेरोजगार हैं. उनके पास रोजगार का साधन नहीं है. जहां बिनोद बाबू ने अपना जीवन बिताया, उस गांव की यह स्थिति है.

बिनोद बाबू के गांव से ईटीवी भारत संवाददाता नरेंद्र निषाद की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)


बिनोद बाबू के भतीजे जय किशोर ने कहा कि उनके सपनों को पूरा करने के लिए कोई भी राजनीतिक दल सामने नहीं आते हैं. बिनोद बाबू का नारा था, पढ़ो और लड़ो. लेकिन कहीं पढ़ाई की व्यवस्था अच्छी नहीं है. उनके नारा का पहला शब्द ही गायब हो गया है. उनके द्वारा बनाए गए कॉलेज में इंटर तक की पढ़ाई होती है. आगे की पढ़ाई के लिए यहां के बच्चों को धनबाद शहर का रुख करना पड़ता है.


बिनोद बाबू के भतीजे ने कहा कि गांव में विकास के लिए लोगों को सबसे पहले रोजगार देने की जरूरत है. रोजगार के नाम पर यहां कुछ नहीं है. यहां के ज्यादातर लोग कृषि पर आधारित हैं. लेकिन सिंचाई के लिए बेहतर सुविधा नहीं है. उन्होंने बताया कि बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और कॉमरेड एके रॉय ने धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी थी. लेकिन यह पार्टी भी अपने लक्ष्य से भटक चुकी है. उन्होंने तमाम राजनीति पार्टियों से झारखंड के विकास के लिए आगे आने की अपील की थी.


वहीं गांव के रहने वाले लखन सूत्रधर ने बताया कि झारखंड में तमाम राजनीतिक दल अपने कार्यक्रम की शुरुआत बिनोद बाबू के फोटो पर माल्यार्पण के बाद ही करते हैं. लेकिन आज उनके सपनों को पूरा करने के लिए कोई नहीं है. शिबू सोरेन भी बिनोद बाबू के घर पर रहते थे. लेकिन आज वह और उनकी पार्टी अपने अलग रास्ते पर हैं. बिनाद बाबू के गांव के विकास के बारे में उन्होंने भी नहीं सोचा. बीजेपी हो आजसू या फिर कोई भी पार्टी आज उनके गांव के विकास के लिए आगे नहीं आते हैं.


ये भी पढ़ें- पढ़ो और लड़ो का नारा देकर अमर हो गए बिनोद बिहारी महतो- चंद्रप्रकाश चौधरी - Binod Bihari Mahto

धनबाद में बिनोद बिहारी महतो की प्रतिमा से छेड़छाड़, लोगों ने की दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग - Binod Bihari Mahto statue

धनबाद: झारखंड के पुरोधा कहे जाने वाले स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो, जिनकी तस्वीर विधानसभा में है, झारखंड में सक्रिय सभी राजनीतिक दल उनके नाम लेने के बाद ही हर कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं. इसके बावजूद बिनोद बाबू के परिजन आज के इस चुनावी शोर में गुम हो गए हैं. राजनीतिक गलियारों में आज उनके परिवार की चर्चा नहीं होती है. उनके परिवार वाले भी कहते हैं कि जिस उद्देश्य के साथ झारखंड बना, आज वह पूरा नहीं हो सका है. बिनोद बाबू का नाम लेकर लोग कहां से कहां पहुंचे गए. लेकिन उनके सपनों को आज तक कोई भी साकार नहीं कर सकें.


बिनोद बाबू का गांव सिंदरी विधानसभा के बलियापुर प्रखंड अंतर्गत बड़ादाहा में है, जहां उनका आवास है. यहां उनके भतीजे जय किशोर महतो अपने परिवार के साथ रहते हैं. ईटीवी भारत से हुई बातचीत में उन्होंने ने बताया कि बिनोद बिहारी महतो ने जो सपना देखा था, वह आज भी अधूरा है. झारखंड में सक्रिय सभी पार्टियां इस राज्य को विकास की दिशा में लाने में असक्षम हैं. उनके गांव में भी विकास का कोई काम नहीं हुआ है. सड़क, पानी और बिजली की समस्या है. यहां के लोग बेरोजगार हैं. उनके पास रोजगार का साधन नहीं है. जहां बिनोद बाबू ने अपना जीवन बिताया, उस गांव की यह स्थिति है.

बिनोद बाबू के गांव से ईटीवी भारत संवाददाता नरेंद्र निषाद की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)


बिनोद बाबू के भतीजे जय किशोर ने कहा कि उनके सपनों को पूरा करने के लिए कोई भी राजनीतिक दल सामने नहीं आते हैं. बिनोद बाबू का नारा था, पढ़ो और लड़ो. लेकिन कहीं पढ़ाई की व्यवस्था अच्छी नहीं है. उनके नारा का पहला शब्द ही गायब हो गया है. उनके द्वारा बनाए गए कॉलेज में इंटर तक की पढ़ाई होती है. आगे की पढ़ाई के लिए यहां के बच्चों को धनबाद शहर का रुख करना पड़ता है.


बिनोद बाबू के भतीजे ने कहा कि गांव में विकास के लिए लोगों को सबसे पहले रोजगार देने की जरूरत है. रोजगार के नाम पर यहां कुछ नहीं है. यहां के ज्यादातर लोग कृषि पर आधारित हैं. लेकिन सिंचाई के लिए बेहतर सुविधा नहीं है. उन्होंने बताया कि बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और कॉमरेड एके रॉय ने धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी थी. लेकिन यह पार्टी भी अपने लक्ष्य से भटक चुकी है. उन्होंने तमाम राजनीति पार्टियों से झारखंड के विकास के लिए आगे आने की अपील की थी.


वहीं गांव के रहने वाले लखन सूत्रधर ने बताया कि झारखंड में तमाम राजनीतिक दल अपने कार्यक्रम की शुरुआत बिनोद बाबू के फोटो पर माल्यार्पण के बाद ही करते हैं. लेकिन आज उनके सपनों को पूरा करने के लिए कोई नहीं है. शिबू सोरेन भी बिनोद बाबू के घर पर रहते थे. लेकिन आज वह और उनकी पार्टी अपने अलग रास्ते पर हैं. बिनाद बाबू के गांव के विकास के बारे में उन्होंने भी नहीं सोचा. बीजेपी हो आजसू या फिर कोई भी पार्टी आज उनके गांव के विकास के लिए आगे नहीं आते हैं.


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