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बीजापुर नक्सली हमला: रोड ओपनिंग पार्टी की जांच और बारूदी सुरंग हटाने के बावजूद विस्फोटकों का पता कैसे नहीं चला ? - CHHATTISGARH NAXAL ATTACK

बीजापुर नक्सली हमले में बड़ी लापरवाही होने की बात सामने आई है.

bijapur blast
बीजापुर नक्सली हमला (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 18 hours ago

Updated : 17 hours ago

रायपुर\बीजापुर: छत्तीसगढ़ के बीजापुर नक्सली हमले में 8 जवान शहीद हो गए. एक ड्राइवर की मौत हुई. मंगलवार को शहीद जवानों को दंतेवाड़ा पुलिस लाइन में श्रद्धांजलि दी गई. इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को गृह ग्राम रवाना किया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार परिजनों ने किया. लेकिन इस बड़े नक्सली हमले के बाद एक सवाल उठने लगा है. वो ये कि रोड ओपनिंग पार्टी का सर्च ऑपरेशन और बारूदी सुरंग हटाने की कवायद के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में विस्फोटकों का पता कैसे नहीं चल पाया. इस बात से विशेषज्ञ भी हैरान है. पहले जान लेते हैं कि ROP क्या है.

आरओपी क्या है: आरओपी यानी रोड ओपनिंग पार्टी एक निर्दिष्ट टीम होती है, जिसे नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा जवानों के काफिले के गुजरने से पहले सड़कों की जांच, साफ करने और निगरानी करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है.

आरओपी की लापरवाही !: सुरक्षा विशेषज्ञ और नवागढ़ (बेमेतरा जिले) के एक सरकारी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. गिरीशकांत पांडे ने कहा, "यह आश्चर्यजनक है कि आरओपी और बारूदी सुरंगों को हटाने की कवायद के बावजूद इतना शक्तिशाली विस्फोटक कैसे पकड़ा नहीं जा सका. सुरक्षा बल सड़क के दोनों ओर 100-150 मीटर तक बारूदी सुरंगों को हटाने के लिए हाई-टेक मेटल डिटेक्टर और खोजी कुत्तों का इस्तेमाल करते हैं."

पांडे ने आगे कहा कि जब सुरक्षा बलों की इतनी बड़ी आवाजाही हो रही थी, तो ROP को पूरे मार्ग पर तैनात किया जाना चाहिए था, ताकि संदिग्ध गतिविधियों को देखा जा सके. उन्होंने कहा कि विस्फोट को अंजाम देने वाले नक्सलियों की एक छोटी टीम विस्फोट को ट्रिगर करने के लिए सड़क के नजदीक ही तैनात रही होगी.

प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि आरओपी ठीक से काम नहीं कर रही थी.- डॉ. गिरीशकांत पांडे, सुरक्षा विशेषज्ञ और नवागढ़ सरकारी कॉलेज के प्रिंसीपल

6 महीने से सालभर पहले नक्सलियों ने प्लांट की थी IED: बीजापुर ब्लास्ट के बाद बस्तर आईजी सुंदरराज पी भी ये दावा कर चुके हैं कि नक्सलियों ने छह महीने या सालभर पहले सड़क के नीचे 4 से 5 फीट गहराई में लगभग 70 किलो वजनी IED प्लांट किया होगा. क्योंकि जिस रोड पर ब्लास्ट हुआ है उसके आसपास मिट्टी की नई खुदाई का कोई सबूत नहीं मिला है. आईजी ने बताया कि विस्फोटक और बैलिस्टिक विशेषज्ञ इस बात की जांच कर रहे हैं कि इलाके में लगातार बारूदी सुरंगों को हटाने के सर्च ऑपरेशन के बाद भी विस्फोटक का पता कैसे नहीं चल पाया. इस बात का अंदाजा भी जताया कि विस्फोटक को किसी गैर-धातु वाली वस्तु या प्लास्टिक की थैली में पैक किया गया होगा.

ब्लास्ट में अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की संभावना: आईजी सुंदरराज पी ने विस्फोटकों की प्रकृति के बारे में कहा कि IED में अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की संभावना है, लेकिन जांच के बाद ही इसके बारे में पता चल सकेगा.

नक्सलियों के मटवाड़ा स्थानीय संगठन की भूमिका: पुलिस ने बताया कि बीजापुर विस्फोट को अंजाम देने में माओवादियों के मटवाड़ा स्थानीय संगठन दस्ते (एलओएस) के शामिल होने का संदेह है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि मटवाड़ा एलओएस के सदस्यों के साथ-साथ क्षेत्र समितियों के कैडर भी इस घटना को अंजाम देने के पीछे हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि इसकी जांच चल रही है. माओवादियों का मटवाड़ा एलओएस कुटरू क्षेत्र में सक्रिय है, जो माओवादियों के भैरमगढ़ और राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र समितियों का संगम भी है.

एसओपी ने पूरी रणनीति का किया पालन: आईजी ने बताया कि जवानों के वापसी के दौरान पूरे स्टैंडर्ड ओपरेटिंग प्रोसीजर का पालन किया गया. उन्होंने कहा "अबूझमाड़ में 3 दिन तक चले अभियान को पूरा करने के बाद 1000 से ज्यादा जवानों की अलग अलग टीम 6 जनवरी की सुबह बेदरे (बीजापुर) पहुंचीं. इससे पहले पुलिस उप महानिरीक्षक (दक्षिण बस्तर) कमलोचन कश्यप और दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक गौरव राय दंतेवाड़ा से बेदरे उसी रास्ते से पहुंचे थे. रोड ओपनिंग पार्टी सुरक्षा बलों की सुरक्षित वापसी पर नजर रखी गई थी."

70-80 किलोमीटर पैदल चलने के बाद जवान गाड़ी से कैंप पहुंच रहे थे: आईजी ने कहा "अभियान से वापस लौटते समय हम कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों को लाने-ले जाने के लिए वाहनों का इस्तेमाल करते हैं. सोमवार को भी सुरक्षा बल जंगल में अभियान के दौरान 70-80 किलोमीटर पैदल चलकर बेदरे पहुंचे थे, जिसके बाद उन्हें चार पहिया वाहनों और मोटरसाइकिलों से उनके ठिकानों पर भेजा गया. डीआरजी और बस्तर फाइटर्स की टीमें करीब 12 वाहनों में बेदरे से रवाना हुईं. गाड़ियां क्रमवार चल रही थी, लेकिन दोनों के बीच की दूरी 300-500 मीटर थी. जिस वाहन को निशाना बनाया गया, वह सातवें स्थान पर था. विस्फोट इतना भीषण था कि वाहन के कुछ हिस्से विस्फोट स्थल से 100-150 मीटर दूर पाए गए. वाहन के कुछ हिस्से पीछे से आ रहे वाहन से टकराए जिससे उसका विंडशील्ड क्षतिग्रस्त हो गया. हालांकि, उस वाहन में सवार सुरक्षाकर्मी सुरक्षित हैं."

सुंदरराज ने कहा कि नक्सलियों द्वारा जंगलों और सड़कों पर बेतरतीब ढंग से लगाए गए आईईडी हमेशा से ही आतंकवाद विरोधी अभियानों में चुनौती रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सुरक्षा एजेंसियां ​​उनसे निपट नहीं सकती. उन्होंने कहा, "हमने पिछले साल सात जिलों वाले बस्तर संभाग में 311 आईईडी बरामद किए थे. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, लेकिन इससे सुरक्षा बलों की परिचालन प्रतिबद्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जिनका मनोबल पिछले साल नक्सल विरोधी मोर्चे पर सफलता हासिल करने के बाद ऊंचा है."

एजेंसी इनपुट के साथ

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रायपुर\बीजापुर: छत्तीसगढ़ के बीजापुर नक्सली हमले में 8 जवान शहीद हो गए. एक ड्राइवर की मौत हुई. मंगलवार को शहीद जवानों को दंतेवाड़ा पुलिस लाइन में श्रद्धांजलि दी गई. इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को गृह ग्राम रवाना किया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार परिजनों ने किया. लेकिन इस बड़े नक्सली हमले के बाद एक सवाल उठने लगा है. वो ये कि रोड ओपनिंग पार्टी का सर्च ऑपरेशन और बारूदी सुरंग हटाने की कवायद के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में विस्फोटकों का पता कैसे नहीं चल पाया. इस बात से विशेषज्ञ भी हैरान है. पहले जान लेते हैं कि ROP क्या है.

आरओपी क्या है: आरओपी यानी रोड ओपनिंग पार्टी एक निर्दिष्ट टीम होती है, जिसे नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा जवानों के काफिले के गुजरने से पहले सड़कों की जांच, साफ करने और निगरानी करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है.

आरओपी की लापरवाही !: सुरक्षा विशेषज्ञ और नवागढ़ (बेमेतरा जिले) के एक सरकारी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. गिरीशकांत पांडे ने कहा, "यह आश्चर्यजनक है कि आरओपी और बारूदी सुरंगों को हटाने की कवायद के बावजूद इतना शक्तिशाली विस्फोटक कैसे पकड़ा नहीं जा सका. सुरक्षा बल सड़क के दोनों ओर 100-150 मीटर तक बारूदी सुरंगों को हटाने के लिए हाई-टेक मेटल डिटेक्टर और खोजी कुत्तों का इस्तेमाल करते हैं."

पांडे ने आगे कहा कि जब सुरक्षा बलों की इतनी बड़ी आवाजाही हो रही थी, तो ROP को पूरे मार्ग पर तैनात किया जाना चाहिए था, ताकि संदिग्ध गतिविधियों को देखा जा सके. उन्होंने कहा कि विस्फोट को अंजाम देने वाले नक्सलियों की एक छोटी टीम विस्फोट को ट्रिगर करने के लिए सड़क के नजदीक ही तैनात रही होगी.

प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि आरओपी ठीक से काम नहीं कर रही थी.- डॉ. गिरीशकांत पांडे, सुरक्षा विशेषज्ञ और नवागढ़ सरकारी कॉलेज के प्रिंसीपल

6 महीने से सालभर पहले नक्सलियों ने प्लांट की थी IED: बीजापुर ब्लास्ट के बाद बस्तर आईजी सुंदरराज पी भी ये दावा कर चुके हैं कि नक्सलियों ने छह महीने या सालभर पहले सड़क के नीचे 4 से 5 फीट गहराई में लगभग 70 किलो वजनी IED प्लांट किया होगा. क्योंकि जिस रोड पर ब्लास्ट हुआ है उसके आसपास मिट्टी की नई खुदाई का कोई सबूत नहीं मिला है. आईजी ने बताया कि विस्फोटक और बैलिस्टिक विशेषज्ञ इस बात की जांच कर रहे हैं कि इलाके में लगातार बारूदी सुरंगों को हटाने के सर्च ऑपरेशन के बाद भी विस्फोटक का पता कैसे नहीं चल पाया. इस बात का अंदाजा भी जताया कि विस्फोटक को किसी गैर-धातु वाली वस्तु या प्लास्टिक की थैली में पैक किया गया होगा.

ब्लास्ट में अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की संभावना: आईजी सुंदरराज पी ने विस्फोटकों की प्रकृति के बारे में कहा कि IED में अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की संभावना है, लेकिन जांच के बाद ही इसके बारे में पता चल सकेगा.

नक्सलियों के मटवाड़ा स्थानीय संगठन की भूमिका: पुलिस ने बताया कि बीजापुर विस्फोट को अंजाम देने में माओवादियों के मटवाड़ा स्थानीय संगठन दस्ते (एलओएस) के शामिल होने का संदेह है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि मटवाड़ा एलओएस के सदस्यों के साथ-साथ क्षेत्र समितियों के कैडर भी इस घटना को अंजाम देने के पीछे हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि इसकी जांच चल रही है. माओवादियों का मटवाड़ा एलओएस कुटरू क्षेत्र में सक्रिय है, जो माओवादियों के भैरमगढ़ और राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र समितियों का संगम भी है.

एसओपी ने पूरी रणनीति का किया पालन: आईजी ने बताया कि जवानों के वापसी के दौरान पूरे स्टैंडर्ड ओपरेटिंग प्रोसीजर का पालन किया गया. उन्होंने कहा "अबूझमाड़ में 3 दिन तक चले अभियान को पूरा करने के बाद 1000 से ज्यादा जवानों की अलग अलग टीम 6 जनवरी की सुबह बेदरे (बीजापुर) पहुंचीं. इससे पहले पुलिस उप महानिरीक्षक (दक्षिण बस्तर) कमलोचन कश्यप और दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक गौरव राय दंतेवाड़ा से बेदरे उसी रास्ते से पहुंचे थे. रोड ओपनिंग पार्टी सुरक्षा बलों की सुरक्षित वापसी पर नजर रखी गई थी."

70-80 किलोमीटर पैदल चलने के बाद जवान गाड़ी से कैंप पहुंच रहे थे: आईजी ने कहा "अभियान से वापस लौटते समय हम कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों को लाने-ले जाने के लिए वाहनों का इस्तेमाल करते हैं. सोमवार को भी सुरक्षा बल जंगल में अभियान के दौरान 70-80 किलोमीटर पैदल चलकर बेदरे पहुंचे थे, जिसके बाद उन्हें चार पहिया वाहनों और मोटरसाइकिलों से उनके ठिकानों पर भेजा गया. डीआरजी और बस्तर फाइटर्स की टीमें करीब 12 वाहनों में बेदरे से रवाना हुईं. गाड़ियां क्रमवार चल रही थी, लेकिन दोनों के बीच की दूरी 300-500 मीटर थी. जिस वाहन को निशाना बनाया गया, वह सातवें स्थान पर था. विस्फोट इतना भीषण था कि वाहन के कुछ हिस्से विस्फोट स्थल से 100-150 मीटर दूर पाए गए. वाहन के कुछ हिस्से पीछे से आ रहे वाहन से टकराए जिससे उसका विंडशील्ड क्षतिग्रस्त हो गया. हालांकि, उस वाहन में सवार सुरक्षाकर्मी सुरक्षित हैं."

सुंदरराज ने कहा कि नक्सलियों द्वारा जंगलों और सड़कों पर बेतरतीब ढंग से लगाए गए आईईडी हमेशा से ही आतंकवाद विरोधी अभियानों में चुनौती रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सुरक्षा एजेंसियां ​​उनसे निपट नहीं सकती. उन्होंने कहा, "हमने पिछले साल सात जिलों वाले बस्तर संभाग में 311 आईईडी बरामद किए थे. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, लेकिन इससे सुरक्षा बलों की परिचालन प्रतिबद्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जिनका मनोबल पिछले साल नक्सल विरोधी मोर्चे पर सफलता हासिल करने के बाद ऊंचा है."

एजेंसी इनपुट के साथ

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