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उपचुनाव का रिजल्ट: क्या नीतीश का जादू रहेगा बरकरार या PK को मिलेगा स्टार्ट? दांव पर महागठबंधन की साख

विधानसभा की चार सीटों पर उपचुनाव हो रहा है. 13 नवंबर को मतदान हुआ था. कल रिजल्ट आने वाला है. सियासी माहौल गरामया हुआ है.

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उपचुनाव का रिजल्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 5 hours ago

पटनाः बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव को विधानसभा चुनाव 2025 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. महागठबंधन की तीन सीटिंग सीटों पर मुकाबला बनाए रखने की चुनौती है, तो वहीं नीतीश कुमार के लोकसभा में चले 'जादू' की असली परीक्षा भी है. पहली बार चुनावी मैदान में उतरी प्रशांत किशोर की पार्टी ने सियासी समीकरणों में नया ट्विस्ट दिया है. शनिवार 23 नवंबर को इसके नतीजे आने वाले हैं.

कौन किस पर पड़ रहा भारीः विधानसभा उपचुनाव के नतीजा से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन बिहार की सियासी हवा का रुख तय कर सकता है. यही कारण है कि बिहार के तमाम राजनीति दलों के साथ-साथ राजनीति के जानकारों की नजर भी इस उपचुनाव पर है. 2025 विधानसभा चुनाव से पहले यह रिजल्ट नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर का लिटमस टेस्ट करेगा. 2025 चुनाव के लिए अभी से दबाव बनने लगेगा. आइये जानते हैं कि किस सीट पर कौन उम्मीदवार भारी पड़ रहा है.

उपचुनाव का रिजल्ट कल आएगा. (ETV Bharat)

"बिहार विधानसभा उपचुनाव में तो चारों सीट जीतेंगे ही. झारखंड और महाराष्ट्र में भी हम लोग सरकार बनाएंगे. उपचुनाव में महागठबंधन की तीन सीट है, यदि वो इस सीट को नहीं बचा पाएंगे तो 2025 में असर पड़ेगा ही."- मदन सहनी, समाज कल्याण मंत्री

रामगढ़ की लड़ाई दिलचस्पः 2015 में बीजेपी ने अशोक कुमार सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था और उन्हें जीत मिली थी. 2020 में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बड़े बेटे सुधाकर सिंह ने राजद के टिकट पर चुनाव जीता. सुधाकर सिंह के बक्सर से सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई. इस बार जगदानंद सिंह के छोटे बेटे और सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत कुमार सिंह चुनाव मैदान में हैं. वहीं भाजपा ने अशोक कुमार सिंह पर भरोसा जताया है. रामगढ़ की लड़ाई बसपा और जन सुराज ने दिलचस्प बना दिया है.

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प्रशांत किशोर की सभा. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

जातीय समीकरण टूट रहाः जन सुराज से सुशील कुमार सिंह चुनाव मैदान में हैं तो बसपा से सतीश कुमार सिंह यादव चुनाव मैदान में है. सतीश कुमार अंबिका सिंह यादव के भतीजे हैं. अंबिका सिंह 2009 और 2010 में राजद के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2020 में राजद ने टिकट नहीं दिया बसपा से चुनाव लड़े. राजद उम्मीदवार से केवल 182 वोट से ही पीछे रह गए. जन सुराज के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह 2019 लोकसभा चुनाव में बक्सर सीट से भाग्य आजमा चुके हैं. 80 हजार वोट आया था. इसी लोकसभा क्षेत्र में रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र आता है.

"बिहार में हो रहे उपचुनाव की चारों सीट पर एनडीए का उम्मीदवार जीत रहा है. आरजेडी का एम और वाई दोनों आधार वोट इस बार उनके साथ नहीं रहा है. जब आधार वोट ही नहीं रहा उनकी हार तय है."- रामसागर सिंह, बीजेपी प्रवक्ता

हार-जीत का अंतर कम होगाः प्रशांत किशोर ने सुशील कुमार सिंह की जीत के लिए पूरी ताकत लगाई. रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 289075 मतदाताओं में से युवा वर्ग 18 से 39 आयु के 134203 वोटर हैं सब कुछ युवा वोटर पर ही दारोमदार है. रामगढ़ में बसपा और जन सुराज के कारण बीजेपी की स्थिति मजबूत हुई है. रामगढ़ सीट में चुनाव प्रचार के दौरान सांसद सुधाकर सिंह का लाठी से पीटने वाला बयान भी खूब चर्चा में रहा है ऐसे सुधाकर सिंह के तरफ से भी पूरी कोशिश इस सीट को बचाने की हो रही है.

''यदि उलटफेर नहीं हुआ तो बीजेपी इस बार जीत हासिल कर सकती है. हालांकि जीत हार का अंतर बहुत कम होगा.''- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ

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नीतीश कुमार की सभा (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

तरारी में सुनील पांडेय का दबदबाः तरारी विधानसभा की बात करें तो सुनील पांडे का इस क्षेत्र में कभी दबदबा रहा है. बीजेपी ने इस बार सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत को टिकट दिया है. ऐसे यह सीट माले की सीटिंग सीट है. माले की तरफ से राजू यादव चुनाव लड़ रहे हैं. 2008 में परिसीमन के बाद तरारी सीट अस्तित्व में आया है. तरारी के अस्तित्व में आने के बाद 2010 में पहले चुनाव में सुनील पांडे ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की थी. इससे पहले सुनील पांडे ने 2000 और 2005 में भी जीत दर्ज की थी.

"बिहार की चारों सीट पर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार की ही जीत होगी. तरारी में तो हम लोग देख रहे थे, जनता हम लोगों के साथ खड़ी थी क्योंकि जनता के मुद्दे पर ही हम लोग चुनाव लड़े हैं."- संदीप सौरभ, माले विधायक

भाकपा माले की स्थिति मजबूत बनीः 2015 और 2020 में यहां भाकपा माले के सुदामा प्रसाद लगातार जीत दर्ज की. सुनील पांडे ने 2015 में अपनी पत्नी गीता पांडे को चुनाव लड़ाया था, लेकिन जीत नहीं सकी. 2020 में सुनील पांडे खुद चुनाव लड़े और हार गए. 2015 में सुदामा प्रसाद केवल 272 वोट से चुनाव जीते थे. 2020 में महागठबंधन के समर्थन के कारण करीब 76 हजार वोट से चुनाव जीते थे. जहां राजू यादव पर माले के गढ़ को बचाने की चुनौती है तो वही सुनील पांडे का अपना पुराना किला फतह करने की बड़ी जिम्मेवारी है.

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ETV GFX (ETV Bharat)

जनसुराज-बसपा ने मुकाबले को रोचक बनायाः यहां से जन सुराज पार्टी ने किरण सिंह को उतारा है. बसपा ने सिकंदर कुमार को टिकट दिया है. इन दोनों उम्मीदवारों ने लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. यहां राजू यादव नाम के निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं. इससे भाकपा माले उम्मीदवार को परेशानी हो सकती है. लालू प्रसाद यादव के नाम से भी निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जो काफी चर्चा में है. 3 लाख से अधिक मतदाता है इस विधानसभा क्षेत्र में हैं.

"जन सुराज पार्टी ने चारों सीटों पर उपचुनाव विकास और रोजगार के नाम पर लड़ा है, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर लड़ा है. जनता इन मुद्दों पर पार्टी से जुड़ी है और जन सुराज को वोट दिया है. हम चारों सीटों पर भरी मतों से जीत रहे हैं."- अमित विक्रम, प्रवक्ता जन सुराज

राजद का गढ़ है बेलागंजः बेलागंज विधानसभा उपचुनाव की लड़ाई दिलचस्प हो गई है. प्रशांत किशोर ने जनसुराज से यहां मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर राजद की मुश्किल जरूर बढ़ा दी है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी यहां प्रचार किया है. बेलागंज में सुरेंद्र यादव का 1990 से दबदबा रहा है. सात बार सुरेंद्र यादव यहां से विधायक रहे हैं. जहानाबाद से सांसद चुने जाने के कारण चुनाव हो रहा है. सुरेंद्र यादव का बेटा विश्वनाथ कुमार चुनाव मैदान में है. राजद के लिए यह सीट बचाना एक बड़ी चुनौती है.

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बेलागंज में लालू यादव की सभा. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

मनोरमा देवी पर जदयू को भरोसाः नीतीश कुमार ने बेलागंज से मनोरमा देवी को उम्मीदवार बनाया है. मनोरमा देवी बिंदी यादव की पत्नी हैं. दो बार लगातार एमएलसी रही हैं. 2020 में अतरी विधानसभा से चुनाव भी लड़ी थी, लेकिन जीत नहीं पाई थी. अब बेलागंज से किस्मत आजमा रही हैं. पिछले दिनों एनआईए की छापेमारी के बाद चर्चा में आई थी, क्योंकि उनके आवास से 4 करोड़ से अधिक की राशि और हथियार बरामद हुआ था. इसके बावजूद नीतीश कुमार ने मनोरमा देवी पर भरोसा जताया है.

सुरेंद्र यादव का है दबदबाः बेलागंज से जन सुराज के टिकट पर मोहम्मद अमजद चुनाव लड़ रहे हैं. इस कारण महागठबंधन की मुश्किलें थोड़ी बढ़ी हुई है. एआईएमआईएम ने भी उम्मीदवार दिया है. मुस्लिम वोट बंटने से महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती है. बेलागंज में सबसे अधिक 14 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है इसमें से 6 निर्दलीय उम्मीदवार है. मुश्किल बढ़ाने के कारण ही अंत समय में लालू प्रसाद यादव ने भी प्रचार किया था. सुरेंद्र यादव के दबदबा के कारण आरजेडी यह सीट निकाल ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.

जीतन राम मांझी की प्रतिष्ठा दांव परः इमामगंज में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू और हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार सरकार के मंत्री संतोष सुमन की पत्नी दीपा मांझी चुनाव लड़ रही हैं. जनसुराज की ओर से जितेंद्र पासवान को यहां उतारा गया है जबकि एआइएमआइएम के कंचन पासवान भी चुनौती दे रहे हैं. बिहार विधानसभा के चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में इमामगंज सुरक्षित सीट है. इमामगंज सीट एकमात्र एनडीए की सीटिंग सीट है.

एआईएमआईएम ने लड़ाई दिलचस्प बनायाः जीतन मांझी के गया से सांसद बनने के कारण यह सीट खाली हुई है. ऐसे में एनडीए के लिए यह सीट बचाए रखने की चुनौती है. ऐसे तो लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच कही जा रही है, लेकिन प्रशांत किशोर और एआईएमआईएम के तरफ से भी ये गए उम्मीदवार लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. राजद ने रोशन मांझी को चुनाव मैदान में उतारा है 2005 और 2010 में चुनाव लड़ चुके हैं दोनों बार उसे समय जदयू की तरफ से उदय नारायण चौधरी ने इन्हें हराया था.

दीपा के लिए जीत नहीं है आसानः प्रशांत किशोर ने जितेंद्र पासवान पर विश्वास जताया है. जो ग्रामीण चिकित्सक के रूप में फेमस है उनकी उम्मीदवारी को लेकर खूब चर्चा भी हुआ है. इमामगंज में उदय नारायण चौधरी पांच बार विधायक रहे हैं. फिलहाल राजद के साथ हैं. उनको टिकट देने की चर्चा थी, लेकिन राजद ने टिकट नहीं दिया. राजनीतिक विशेषज्ञ भी कह रहे हैं इमामगंज एनडीए ने ताकत जरूर लगाई है, लेकिन दीपा मांझी के लिए जीत आसानी से हो सकती है, यह कोई नहीं कर सकता है. जनसुराज को भी यहां से उम्मीद है.

उपचुनाव से 2025 के लिए उम्मीद: एनडीए 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगा. उपचुनाव भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा गया है. दूसरी तरफ महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2025 का चुनाव लड़ेगा. प्रशांत किशोर भी 243 सीटों पर जन सुराज के उम्मीदवार उतारेंगे. इसलिए उपचुनाव का रिजल्ट पर सब की नजर है. इसी उपचुनाव से सभी राजनीतिक दलों के लिए 2025 की उम्मीद है.

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पटनाः बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव को विधानसभा चुनाव 2025 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. महागठबंधन की तीन सीटिंग सीटों पर मुकाबला बनाए रखने की चुनौती है, तो वहीं नीतीश कुमार के लोकसभा में चले 'जादू' की असली परीक्षा भी है. पहली बार चुनावी मैदान में उतरी प्रशांत किशोर की पार्टी ने सियासी समीकरणों में नया ट्विस्ट दिया है. शनिवार 23 नवंबर को इसके नतीजे आने वाले हैं.

कौन किस पर पड़ रहा भारीः विधानसभा उपचुनाव के नतीजा से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन बिहार की सियासी हवा का रुख तय कर सकता है. यही कारण है कि बिहार के तमाम राजनीति दलों के साथ-साथ राजनीति के जानकारों की नजर भी इस उपचुनाव पर है. 2025 विधानसभा चुनाव से पहले यह रिजल्ट नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर का लिटमस टेस्ट करेगा. 2025 चुनाव के लिए अभी से दबाव बनने लगेगा. आइये जानते हैं कि किस सीट पर कौन उम्मीदवार भारी पड़ रहा है.

उपचुनाव का रिजल्ट कल आएगा. (ETV Bharat)

"बिहार विधानसभा उपचुनाव में तो चारों सीट जीतेंगे ही. झारखंड और महाराष्ट्र में भी हम लोग सरकार बनाएंगे. उपचुनाव में महागठबंधन की तीन सीट है, यदि वो इस सीट को नहीं बचा पाएंगे तो 2025 में असर पड़ेगा ही."- मदन सहनी, समाज कल्याण मंत्री

रामगढ़ की लड़ाई दिलचस्पः 2015 में बीजेपी ने अशोक कुमार सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था और उन्हें जीत मिली थी. 2020 में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बड़े बेटे सुधाकर सिंह ने राजद के टिकट पर चुनाव जीता. सुधाकर सिंह के बक्सर से सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई. इस बार जगदानंद सिंह के छोटे बेटे और सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत कुमार सिंह चुनाव मैदान में हैं. वहीं भाजपा ने अशोक कुमार सिंह पर भरोसा जताया है. रामगढ़ की लड़ाई बसपा और जन सुराज ने दिलचस्प बना दिया है.

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प्रशांत किशोर की सभा. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

जातीय समीकरण टूट रहाः जन सुराज से सुशील कुमार सिंह चुनाव मैदान में हैं तो बसपा से सतीश कुमार सिंह यादव चुनाव मैदान में है. सतीश कुमार अंबिका सिंह यादव के भतीजे हैं. अंबिका सिंह 2009 और 2010 में राजद के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2020 में राजद ने टिकट नहीं दिया बसपा से चुनाव लड़े. राजद उम्मीदवार से केवल 182 वोट से ही पीछे रह गए. जन सुराज के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह 2019 लोकसभा चुनाव में बक्सर सीट से भाग्य आजमा चुके हैं. 80 हजार वोट आया था. इसी लोकसभा क्षेत्र में रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र आता है.

"बिहार में हो रहे उपचुनाव की चारों सीट पर एनडीए का उम्मीदवार जीत रहा है. आरजेडी का एम और वाई दोनों आधार वोट इस बार उनके साथ नहीं रहा है. जब आधार वोट ही नहीं रहा उनकी हार तय है."- रामसागर सिंह, बीजेपी प्रवक्ता

हार-जीत का अंतर कम होगाः प्रशांत किशोर ने सुशील कुमार सिंह की जीत के लिए पूरी ताकत लगाई. रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 289075 मतदाताओं में से युवा वर्ग 18 से 39 आयु के 134203 वोटर हैं सब कुछ युवा वोटर पर ही दारोमदार है. रामगढ़ में बसपा और जन सुराज के कारण बीजेपी की स्थिति मजबूत हुई है. रामगढ़ सीट में चुनाव प्रचार के दौरान सांसद सुधाकर सिंह का लाठी से पीटने वाला बयान भी खूब चर्चा में रहा है ऐसे सुधाकर सिंह के तरफ से भी पूरी कोशिश इस सीट को बचाने की हो रही है.

''यदि उलटफेर नहीं हुआ तो बीजेपी इस बार जीत हासिल कर सकती है. हालांकि जीत हार का अंतर बहुत कम होगा.''- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ

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नीतीश कुमार की सभा (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

तरारी में सुनील पांडेय का दबदबाः तरारी विधानसभा की बात करें तो सुनील पांडे का इस क्षेत्र में कभी दबदबा रहा है. बीजेपी ने इस बार सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत को टिकट दिया है. ऐसे यह सीट माले की सीटिंग सीट है. माले की तरफ से राजू यादव चुनाव लड़ रहे हैं. 2008 में परिसीमन के बाद तरारी सीट अस्तित्व में आया है. तरारी के अस्तित्व में आने के बाद 2010 में पहले चुनाव में सुनील पांडे ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की थी. इससे पहले सुनील पांडे ने 2000 और 2005 में भी जीत दर्ज की थी.

"बिहार की चारों सीट पर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार की ही जीत होगी. तरारी में तो हम लोग देख रहे थे, जनता हम लोगों के साथ खड़ी थी क्योंकि जनता के मुद्दे पर ही हम लोग चुनाव लड़े हैं."- संदीप सौरभ, माले विधायक

भाकपा माले की स्थिति मजबूत बनीः 2015 और 2020 में यहां भाकपा माले के सुदामा प्रसाद लगातार जीत दर्ज की. सुनील पांडे ने 2015 में अपनी पत्नी गीता पांडे को चुनाव लड़ाया था, लेकिन जीत नहीं सकी. 2020 में सुनील पांडे खुद चुनाव लड़े और हार गए. 2015 में सुदामा प्रसाद केवल 272 वोट से चुनाव जीते थे. 2020 में महागठबंधन के समर्थन के कारण करीब 76 हजार वोट से चुनाव जीते थे. जहां राजू यादव पर माले के गढ़ को बचाने की चुनौती है तो वही सुनील पांडे का अपना पुराना किला फतह करने की बड़ी जिम्मेवारी है.

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ETV GFX (ETV Bharat)

जनसुराज-बसपा ने मुकाबले को रोचक बनायाः यहां से जन सुराज पार्टी ने किरण सिंह को उतारा है. बसपा ने सिकंदर कुमार को टिकट दिया है. इन दोनों उम्मीदवारों ने लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. यहां राजू यादव नाम के निर्दलीय उम्मीदवार भी हैं. इससे भाकपा माले उम्मीदवार को परेशानी हो सकती है. लालू प्रसाद यादव के नाम से भी निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जो काफी चर्चा में है. 3 लाख से अधिक मतदाता है इस विधानसभा क्षेत्र में हैं.

"जन सुराज पार्टी ने चारों सीटों पर उपचुनाव विकास और रोजगार के नाम पर लड़ा है, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर लड़ा है. जनता इन मुद्दों पर पार्टी से जुड़ी है और जन सुराज को वोट दिया है. हम चारों सीटों पर भरी मतों से जीत रहे हैं."- अमित विक्रम, प्रवक्ता जन सुराज

राजद का गढ़ है बेलागंजः बेलागंज विधानसभा उपचुनाव की लड़ाई दिलचस्प हो गई है. प्रशांत किशोर ने जनसुराज से यहां मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर राजद की मुश्किल जरूर बढ़ा दी है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी यहां प्रचार किया है. बेलागंज में सुरेंद्र यादव का 1990 से दबदबा रहा है. सात बार सुरेंद्र यादव यहां से विधायक रहे हैं. जहानाबाद से सांसद चुने जाने के कारण चुनाव हो रहा है. सुरेंद्र यादव का बेटा विश्वनाथ कुमार चुनाव मैदान में है. राजद के लिए यह सीट बचाना एक बड़ी चुनौती है.

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बेलागंज में लालू यादव की सभा. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

मनोरमा देवी पर जदयू को भरोसाः नीतीश कुमार ने बेलागंज से मनोरमा देवी को उम्मीदवार बनाया है. मनोरमा देवी बिंदी यादव की पत्नी हैं. दो बार लगातार एमएलसी रही हैं. 2020 में अतरी विधानसभा से चुनाव भी लड़ी थी, लेकिन जीत नहीं पाई थी. अब बेलागंज से किस्मत आजमा रही हैं. पिछले दिनों एनआईए की छापेमारी के बाद चर्चा में आई थी, क्योंकि उनके आवास से 4 करोड़ से अधिक की राशि और हथियार बरामद हुआ था. इसके बावजूद नीतीश कुमार ने मनोरमा देवी पर भरोसा जताया है.

सुरेंद्र यादव का है दबदबाः बेलागंज से जन सुराज के टिकट पर मोहम्मद अमजद चुनाव लड़ रहे हैं. इस कारण महागठबंधन की मुश्किलें थोड़ी बढ़ी हुई है. एआईएमआईएम ने भी उम्मीदवार दिया है. मुस्लिम वोट बंटने से महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती है. बेलागंज में सबसे अधिक 14 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है इसमें से 6 निर्दलीय उम्मीदवार है. मुश्किल बढ़ाने के कारण ही अंत समय में लालू प्रसाद यादव ने भी प्रचार किया था. सुरेंद्र यादव के दबदबा के कारण आरजेडी यह सीट निकाल ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.

जीतन राम मांझी की प्रतिष्ठा दांव परः इमामगंज में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू और हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार सरकार के मंत्री संतोष सुमन की पत्नी दीपा मांझी चुनाव लड़ रही हैं. जनसुराज की ओर से जितेंद्र पासवान को यहां उतारा गया है जबकि एआइएमआइएम के कंचन पासवान भी चुनौती दे रहे हैं. बिहार विधानसभा के चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में इमामगंज सुरक्षित सीट है. इमामगंज सीट एकमात्र एनडीए की सीटिंग सीट है.

एआईएमआईएम ने लड़ाई दिलचस्प बनायाः जीतन मांझी के गया से सांसद बनने के कारण यह सीट खाली हुई है. ऐसे में एनडीए के लिए यह सीट बचाए रखने की चुनौती है. ऐसे तो लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवारों के बीच कही जा रही है, लेकिन प्रशांत किशोर और एआईएमआईएम के तरफ से भी ये गए उम्मीदवार लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. राजद ने रोशन मांझी को चुनाव मैदान में उतारा है 2005 और 2010 में चुनाव लड़ चुके हैं दोनों बार उसे समय जदयू की तरफ से उदय नारायण चौधरी ने इन्हें हराया था.

दीपा के लिए जीत नहीं है आसानः प्रशांत किशोर ने जितेंद्र पासवान पर विश्वास जताया है. जो ग्रामीण चिकित्सक के रूप में फेमस है उनकी उम्मीदवारी को लेकर खूब चर्चा भी हुआ है. इमामगंज में उदय नारायण चौधरी पांच बार विधायक रहे हैं. फिलहाल राजद के साथ हैं. उनको टिकट देने की चर्चा थी, लेकिन राजद ने टिकट नहीं दिया. राजनीतिक विशेषज्ञ भी कह रहे हैं इमामगंज एनडीए ने ताकत जरूर लगाई है, लेकिन दीपा मांझी के लिए जीत आसानी से हो सकती है, यह कोई नहीं कर सकता है. जनसुराज को भी यहां से उम्मीद है.

उपचुनाव से 2025 के लिए उम्मीद: एनडीए 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगा. उपचुनाव भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा गया है. दूसरी तरफ महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2025 का चुनाव लड़ेगा. प्रशांत किशोर भी 243 सीटों पर जन सुराज के उम्मीदवार उतारेंगे. इसलिए उपचुनाव का रिजल्ट पर सब की नजर है. इसी उपचुनाव से सभी राजनीतिक दलों के लिए 2025 की उम्मीद है.

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