पटना: सोमवार को आए भूकंप के झटकों से दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि बिहार का सिवान भी दहल उठा. सिवान में 8:02 बजे भूकंप आया. रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 4.0 रही. बिहार में हमेशा भूकंप का खतरा बना रहता है. 1934 में आए भयानक भूकंप की यादें आज भी ताजा है. यह भूकंप इतना जबरदस्त था कि कई शहरों में आज भी इसके निशान मौजूद हैं. विस्तार से जानें आखिर क्यों बिहार पर मंडराता है भूकंप का साया..
डेंजर जोन में बिहार: हिमालय से नजदीक होने के कारण बिहार भूकंप के डेंजर जोन में है. राजधानी पटना सहित बिहार के सभी 38 जिले भूकंप की जद में है, लेकिन 8 जिले सिस्मिक जोन 5 में है. इसके अलावा 6 जिले सिस्मिक जोन 3 में और शेष सभी 24 जिले सिस्मिक जोन 4 में है. भारत सरकार के मौसम विभाग के साइंटिस्ट आनंद शंकर का कहना है कि अभी तक भूकंप का पूर्वानुमान करना संभव नहीं हो पाया है.
"हिमालय से सटे होने के कारण बिहार में हमेशा भूकंप का खतरा रहता है, इसलिए भूकंप से बचाव ही सबसे बेस्ट उपाय अभी है. जितना लोग सावधान रहे, तैयारी रहे तो अच्छा रहेगा. बिहार का नॉर्थन पार्ट सबसे हिमालय के नजदीक है."- आनंद शंकर, वैज्ञानिक भारत सरकार
कब-कब डोली बिहार की धरती: हिमालय से नजदीक होने के कारण बिहार पर भूकंप का खतरा सबसे अधिक है. पिछले आंकड़ों को देखें तो हर 100 साल पर बड़े झटके बिहार में महसूस किए गए हैं और वह विनाशकारी हुए हैं. 1934 में बिहार में बड़ा भूकंप आया था जो रिक्टर स्केल पर 8.4 नापा गया था. जिसमें जान माल की बड़ी क्षति हुई थी. उससे पहले 1833 में भी 7.5 रिक्टर स्केल का भूकंप आया था जिसमें भी बहुत क्षति हुई थी.
1934 बिहार के लिए रहा खौफनाक: 15 जनवरी 1934 बिहार के लिए तबाही लेकर आया था. दोपहर में आए इस भूकंप में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 7253 लोगों की मौत हुई थी. दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर और मुंगेर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे.
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भूकंप की जद में सभी 38 जिले: ऐसे तो भूकंप का सही पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है, लेकिन जिस प्रकार से लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं बिहार सरकार ने इसको लेकर कई स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है. बिहार के सभी 38 जिले भूकंप की जद में है. दक्षिण बिहार के 6 जिलों को छोड़ दें जो सिस्मिक जोन 3 में है. उसके बाद सभी जिले खतरनाक सिस्मिक जोन 4 और 5 में है.
क्या होता है सिस्मिक जोन: जिन स्थानों पर भूकंप आने की संभावना बहुत अधिक होती है, उन्हें सिस्मिक जोन कहा जाता है. वैज्ञानिकों की भाषा में इन्हें उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र कहा जाता है.
कौन से जिले किस जोन में हैं?: सिस्मिक जोन 5 सबसे डेंजर माना जाता है और नेपाल से सटे बिहार के आठ जिले इसमें आते हैं. इनमें अररिया, किशनगंज, मधेपुरा, सुपौल और सहरसा शामिल है. वहीं सिस्मिक जोन 4 में बिहार के 24 जिले आते हैं. पटना, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण पश्चिमी चंपारण, भागलपुर , सिवान, वैशाली, आरा, सासाराम, जहानाबाद जैसे जिले इसमें आते हैं. वहीं सिस्मिक जोन 3 में औरंगाबाद, गया, अरवल, कैमूर, रोहतास और बक्सर शामिल हैं.
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आपस में टकराती हैं प्लेट्स: वैज्ञानिकों के अनुसार प्लेट के टकराने के बाद भूगर्भ के अंदर का स्ट्रेन एनर्जी पूरी तरह से बाहर नहीं आ पाता है. यह निकलना चाहता है यही खतरा नेपाल और बिहार पर मंडराता रहता है. पृथ्वी की परत बड़ी-बड़ी टेक्टोनिक प्लेटों से बनी हुई है. इस भू-भाग में ही धरती के सभी महाद्वीप शामिल है. इन टेक्टोनिक प्लेटों में गतिविधि होती रहती है और यह हिलती और एक दूसरे से टकराती रहती है.
विशेषज्ञों की राय: ऐसे ही दो बड़ी टेक्टोनिक प्लेटों के किनारे पर नेपाल मौजूद है. दरअसल इंडो ऑस्ट्रेलिया और यूरेशियन प्लेट के बीच में नेपाल का लोकेशन है, जब इन दोनों प्लेटों की टक्कर होती है तो भूकंप आता है. विशेषज्ञों के अनुसार रिक्टर स्केल पर जो भूकंप अभी दर्ज हो रहे हैं, उसमें से अधिकांश भूकंप का सेंटर नेपाल में ही होता है और इसलिए अधिकांश भूकंप में बिहार में बहुत क्षति नहीं होती है.
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इन जिलों में बनाया गया सिस्मिक स्टेशन: भूकंप को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से कई तरह की तैयारी हो रही है. पटना के अलावा 9 अन्य जगहों पर सिस्मिक स्टेशन बनाया जा रहा है, जिससे भूकंप का अध्ययन किया जा सके. पटना, सारण, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, मुंगेर, पूर्णिया और सीतामढ़ी शामिल है. इसमें भूकंप के अध्ययन के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी और मशीन का प्रयोग किया जाएगा.
"बिहार सरकार भूकंप के अध्ययन करने के लिए 10 स्थान पर सिस्मिक मॉनिटरिंग सेंटर स्थापित करने जा रही है. लोगों को जागरूक करने के लिए कई स्तर पर कार्यक्रम चल रहा है. भवन निर्माण से जुड़े हुए लोगों को ट्रेनिंग दी जा रही है. क्योंकि बिहार में सभी जिले भूकंप की जद में है. दक्षिण बिहार का 6 जिला जो पहाड़ी इलाका है, उसको छोड़ दें तो सभी जिले पर खतरा अधिक है."- सीएन प्रभु, विशेषज्ञ, आपदा प्रबंधन विभाग
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भूकंप का केंद्र बनने की आशंका: विशेषज्ञों के अनुसार बिहार में भूकंपीय घटना और भूकंप का केंद्र बनने की आशंका हमेशा बनी रहती है. इसके पीछे बिहार में जमीन के नीचे तीन ऐसे फॉल्ट हैं, इसमें ईस्ट पटना फॉल्ट का विस्तार नेपाल से पुनपुन लगभग 150 किलोमीटर तक है. मुंगेर सहरसा रीच फॉल्ट का विस्तार नेपाल से लेकर राजगीर तक लगभग 220 किलोमीटर में है. वहीं वेस्ट पटना फॉल्ट नेपाल से मुजफ्फरपुर होते हुए भोजपुर तक विस्तार 200 किमी में है.
बिहार में आए बड़े भूकंप: वहीं विशेषज्ञों को चिंता है कि जिस प्रकार से बिहार में हर 100 साल पर बड़े भूकंप आए हैं. यदि 100 साल पूरा होने पर भूकंप आता है तो बड़ा नुकसान हो सकता है. उसको लेकर कई स्तर पर तैयारी हो रही है. बिहार में जो बड़े भूकंप आए हैं उसमें 4 जून 1764 को रिक्टर पैमाने पर 6.0 तीव्रता, 23 अगस्त 1833 को 7.5 , 15 जनवरी 1934 को 8.4, 21 अगस्त 1988 को 6.6, और 25 अप्रैल 2015 को 7.0 तीव्रता के झटके आए थे.
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'हर साल 5 लाख भूकंप, 100 ही पहुंचाते हैं नुकसान': विशेषज्ञों के अनुसार पृथ्वी पर हर साल लगभग 5 लाख भूकंप आते हैं और इसमें से करीब एक लाख ही महसूस हो पाते हैं और इसमें भी 100 भूकंप बड़े नुकसान पहुंचाते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप सिस्मोग्राफ से भूकंप का मैप होता है और उससे यह पता चलता है कि वह कितने रिक्टर स्केल का है.
कब होती है भारी तबाही: रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता के भूकंप आने पर ही हल्का महसूस होता है. 4 से अधिक रिक्टर स्केल का भूकंप आने पर खिड़कियों के शीशे टूट सकते हैं. दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं और पंखा हिलने लगता है. 5 से ऊपर रिएक्टर स्केल का भूकंप आने पर कुर्सी हिलने लगती है. 6 से ऊपर तीव्रता के भूकंप आने पर भवन के इमारत की नींव पर भी असर पड़ता है और ऊपर की मंजिल को नुकसान पहुंच सकता है. 7 या उससे अधिक रिक्टर स्केल के भूकंप आने पर भारी तबाही होती है.
सरकार की तैयारी: भूकंप यानी पृथ्वी डोलने की भविष्यवाणी भले ही संभव न हो लेकिन जिन क्षेत्रों में लगातार भूकंप आ रहे हैं वहां विभिन्न तरह के अध्ययनों के आधार पर डेंजर जोन को चिह्नित जरूर किया जा रहा है. इलाकों में नुकसान कम हो बिहार सरकार की तरफ से इसकी तैयारी की जा रही है. पटना का आपदा प्रबंधन विभाग जहां बिहार का पुलिस मुख्यालय भी है उसे भी भूकंप रोधी बनाने की कोशिश में है. साथ ही 9 रिक्टर स्केल पर भी नुकसान ना हो, ऐसे भी भवन बनाए जा रहे हैं.
सतर्कता और सजगता की जरूरत: सरकारी कार्यालय अस्पताल और स्कूल को लेकर भी सरकार की तरफ से गाइडलाइन जारी किए जा रहे हैं. आम लोगों को भी कई तरह की सलाह दी जा रही है. अब तक 25000 से अधिक राजमिस्त्री को प्रशिक्षित किया जा चुका है तो तैयारी कई स्तर पर हो रही है, लेकिन लोगों को भी भूकंप से सतर्क और सचेत रहने की जरूरत है.
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