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एक समय भोजन और तपस्वी का जीवन, ढाई महीने में तैयार हुई भुंडा महायज्ञ की रस्सी से मौत की घाटी पार करेंगे बेड़ा सूरतराम - BHUNDA MAHAYAGYA 2025

2 जनवरी से स्पैल वैली के दलगांव में भुंडा महायज्ञ 2025 का आयोजन किया गया है. जिसके आयोजन में ₹100 करोड़ का खर्च आएगा.

BHUNDA MAHAYAGYA 2025
भुंडा महायज्ञ 2025 (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 1, 2025, 7:32 AM IST

शिमला: देश-विदेश में महाकुंभ की धूम के बीच देवभूमि हिमाचल में भी एक कुंभ सरीखा आयोजन हो रहा है. सरकारी मशीनरी ने इस देव आयोजन को रोहड़ू का भुंडा नाम दिया है. 2 जनवरी से 5 जनवरी तक रोहड़ू की स्पैल वैली के दलगांव में महायज्ञ भुंडा का आयोजन किया जा रहा है. इसमें करीब एक लाख से पांच लाख लोग शामिल होकर देवता महाराज बकरालू का आशीष लेंगे. पूरे आयोजन पर सौ करोड़ रुपए तक का खर्च आएगा. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू भी इस आयोजन में शामिल होंगे. इन सभी घटनाओं के बीच आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र भुंडा महायज्ञ के बेड़ा सूरतराम हैं. आज से चार दशक पहले जब वर्ष 1985 में यहीं पर भुंडा महायज्ञ हुआ था तो भी सूरतराम ने ही बेड़ा के रूप में खाई पार करने की कठिन भूमिका निभाई थी. आखिर क्या है बेड़ा और क्या होती है वो दिव्य रस्सी? जिसके माध्यम से बेड़ा सूरतराम मौत की घाटी को लांघेंगे. आइए जानते हैं ये सारी कहानी

BHUNDA MAHAYAGYA 2025
बकरालू महाराज देवता का मंदिर (ETV Bharat)

बेड़ा तैयार करता है मूंज

भुंडा महायज्ञ के दौरान बेड़ा रस्सी के जरिए मौत की घाटी को लांघते हैं. ये रस्सी दिव्य होती है और इसे मूंज कहा जाता है. ये विशेष प्रकार के नर्म घास की बनी होती है. इसे खाई के दो सिरों के बीच बांधा जाता है. भुंडा महायज्ञ की रस्सी को बेड़ा खुद तैयार करते हैं. बेड़ा उस पवित्र शख्स को कहा जाता है, जो रस्सी से खाई को लांघते हैं. बेड़ा जाति के लोग ही इस परंपरा को निभाते हैं. सूरतराम ने 1985 के भुंडा महायज्ञ में भी बेड़ा की भूमिका निभाई थी.

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बकरालू महाराज मंदिर में होगा भुंडा महायज्ञ (ETV Bharat)

ढाई महीने में तैयार हुई रस्सी

सूरतराम के अनुसार रस्सी तैयार करने में ढाई महीने का समय लगा. इस पवित्र कार्य में उनका साथ चार लोगों ने दिया. रस्सी तैयार करते समय पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. सुबह चार बजे भोजन करने के बाद फिर अगले दिन सुबह चार बजे भोजन किया जाता है. यानी 24 घंटे में केवल एक बार भोजन किया जाता है. इस दौरान अधिकतम मौन व्रत का पालन किया जाता है. बेड़ा सूरतराम 4 जनवरी को रस्सी से घाटी लांघेंगे.

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बेड़ा सूरतराम (ETV Bharat)

एक लाख से ज्यादा निमंत्रण

देवता बकरालू महाराज जी तो तहसीलों रोहड़ू व रामपुर के देवता हैं. भुंडा महायज्ञ देवता महेश्वर, देवता बौंद्रा व देवता बकरालू व देवता मोहर्रिश के प्रेम का प्रतीक है. रोहड़ू उपमंडल के नौ गांव के लोग इस यज्ञ में सहयोग कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि भुंडा महायज्ञ के लिए एक लाख से अधिक निमंत्रण दिए गए हैं. आयोजन में तीन परशुराम भी शामिल होंगे. इनमें परशुराम गुम्मा, परशुराम अंदरेयोठी व परशुराम खशकंडी शामिल हैं. ये देवता भगवान परशुराम के अवतार माने जाते हैं.

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बकरालू महाराज में भुंडा उत्सव की तैयारियां (ETV Bharat)

एसडीएम रोहड़ू विजय वर्धन का कहना है, "भुंडा महायज्ञ के लिए प्रशासन पूरा सहयोग कर रहा है. इलाके में ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू बनाने के लिए पर्याप्त संख्या में पुलिस के जवान तैनात हैं. भुंडा महायज्ञ क्षेत्र की सुख-समृद्धि के लिए आयोजित होता है. देवता बकरालू महाराज के प्रति जनता में बहुत आस्था है. स्पैल वैली में इन दिनों हर घर में देव उत्सव का माहौल है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू भी इस आयोजन में शामिल होंगे."

ये भी पढ़ें: हिमाचल का एक ऐसा यज्ञ, 5 लाख तक श्रद्धालु...100 करोड़ का खर्च, 9वीं बार मौत की घाटी लांघेंगे सूरत राम

शिमला: देश-विदेश में महाकुंभ की धूम के बीच देवभूमि हिमाचल में भी एक कुंभ सरीखा आयोजन हो रहा है. सरकारी मशीनरी ने इस देव आयोजन को रोहड़ू का भुंडा नाम दिया है. 2 जनवरी से 5 जनवरी तक रोहड़ू की स्पैल वैली के दलगांव में महायज्ञ भुंडा का आयोजन किया जा रहा है. इसमें करीब एक लाख से पांच लाख लोग शामिल होकर देवता महाराज बकरालू का आशीष लेंगे. पूरे आयोजन पर सौ करोड़ रुपए तक का खर्च आएगा. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू भी इस आयोजन में शामिल होंगे. इन सभी घटनाओं के बीच आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र भुंडा महायज्ञ के बेड़ा सूरतराम हैं. आज से चार दशक पहले जब वर्ष 1985 में यहीं पर भुंडा महायज्ञ हुआ था तो भी सूरतराम ने ही बेड़ा के रूप में खाई पार करने की कठिन भूमिका निभाई थी. आखिर क्या है बेड़ा और क्या होती है वो दिव्य रस्सी? जिसके माध्यम से बेड़ा सूरतराम मौत की घाटी को लांघेंगे. आइए जानते हैं ये सारी कहानी

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बकरालू महाराज देवता का मंदिर (ETV Bharat)

बेड़ा तैयार करता है मूंज

भुंडा महायज्ञ के दौरान बेड़ा रस्सी के जरिए मौत की घाटी को लांघते हैं. ये रस्सी दिव्य होती है और इसे मूंज कहा जाता है. ये विशेष प्रकार के नर्म घास की बनी होती है. इसे खाई के दो सिरों के बीच बांधा जाता है. भुंडा महायज्ञ की रस्सी को बेड़ा खुद तैयार करते हैं. बेड़ा उस पवित्र शख्स को कहा जाता है, जो रस्सी से खाई को लांघते हैं. बेड़ा जाति के लोग ही इस परंपरा को निभाते हैं. सूरतराम ने 1985 के भुंडा महायज्ञ में भी बेड़ा की भूमिका निभाई थी.

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बकरालू महाराज मंदिर में होगा भुंडा महायज्ञ (ETV Bharat)

ढाई महीने में तैयार हुई रस्सी

सूरतराम के अनुसार रस्सी तैयार करने में ढाई महीने का समय लगा. इस पवित्र कार्य में उनका साथ चार लोगों ने दिया. रस्सी तैयार करते समय पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. सुबह चार बजे भोजन करने के बाद फिर अगले दिन सुबह चार बजे भोजन किया जाता है. यानी 24 घंटे में केवल एक बार भोजन किया जाता है. इस दौरान अधिकतम मौन व्रत का पालन किया जाता है. बेड़ा सूरतराम 4 जनवरी को रस्सी से घाटी लांघेंगे.

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बेड़ा सूरतराम (ETV Bharat)

एक लाख से ज्यादा निमंत्रण

देवता बकरालू महाराज जी तो तहसीलों रोहड़ू व रामपुर के देवता हैं. भुंडा महायज्ञ देवता महेश्वर, देवता बौंद्रा व देवता बकरालू व देवता मोहर्रिश के प्रेम का प्रतीक है. रोहड़ू उपमंडल के नौ गांव के लोग इस यज्ञ में सहयोग कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि भुंडा महायज्ञ के लिए एक लाख से अधिक निमंत्रण दिए गए हैं. आयोजन में तीन परशुराम भी शामिल होंगे. इनमें परशुराम गुम्मा, परशुराम अंदरेयोठी व परशुराम खशकंडी शामिल हैं. ये देवता भगवान परशुराम के अवतार माने जाते हैं.

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बकरालू महाराज में भुंडा उत्सव की तैयारियां (ETV Bharat)

एसडीएम रोहड़ू विजय वर्धन का कहना है, "भुंडा महायज्ञ के लिए प्रशासन पूरा सहयोग कर रहा है. इलाके में ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू बनाने के लिए पर्याप्त संख्या में पुलिस के जवान तैनात हैं. भुंडा महायज्ञ क्षेत्र की सुख-समृद्धि के लिए आयोजित होता है. देवता बकरालू महाराज के प्रति जनता में बहुत आस्था है. स्पैल वैली में इन दिनों हर घर में देव उत्सव का माहौल है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू भी इस आयोजन में शामिल होंगे."

ये भी पढ़ें: हिमाचल का एक ऐसा यज्ञ, 5 लाख तक श्रद्धालु...100 करोड़ का खर्च, 9वीं बार मौत की घाटी लांघेंगे सूरत राम
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