वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में केन्द्र सरकार ने आंखों के लिए एक बड़ी सौगात नेत्र संस्थान की दी है. यहां पर हैदराबाद के संस्थान और टाटा के आई संस्थान के साथ मिलकर BHU ने एक आई बैंक बनाया, जिसने महज एक साल में 44 लोगों को निशुल्क रौशनी दी है. इसकी मदद से आज लोगों को उनकी आंखें लौटाने की कोशिश की जा रही है. सबसे खास बात ये है कि जरूरतमंद मरीजों को क्वालिटी आंखें की ट्रांसप्लांट की जाती हैं, जिससे कि लोगों का भरोसा आई ट्रांसप्लांट पर बना रहे.
वाराणसी में बीते 10 साल में सबसे अधिक सुधार अस्पतालों में देखने को मिला है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदर लाल अस्पताल में कार्डियोलॉजी से लेकर अलग-अलग विभागों में सुधार के काम हुए हैं. इसके साथ ही अन्य बड़े अस्पतालों में व्यापक सुधार देखने को मिला है. वहीं बनारस को एक मेडिकल कॉलेज का भी तोहफा मिल चुका है. इसी बीच बीएचयू के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान ने भी कमाल कर दिखाया है. संस्थान ने एक साल में 44 नेत्र ट्रांसप्लांट कर दिए हैं, जबकि 4 आंखें अन्य अस्पतालों को दी गई हैं.
साल 2021 में इसका प्रधानमंत्री मोदी ने किया उद्घाटन: इस बारे में क्षेत्रीय नेत्र संस्थान के एचओडी डॉक्टर प्रशांत भूषण ने बताया कि साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आई बैंक का शिलान्यास किया था. इसके बाद साल 2021 में इसका उद्घाटन किया था. क्षेत्रीय नेत्र संस्थान जो होता है इसमें आई बैंकिंग एक महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है. एलबी प्रसाद इंस्टीट्यूट हैदराबाद और इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज बीएचयू के साथ ही टाटा ट्रस्ट के हंस फाउंडेशन के साथ MOU किया गया. इसकी मदद से हमने एक अच्छा सा आई बैंक बनाया. हमारे संस्थान में लोगों के नेत्र दान होते हैं. यहां पर जिस व्यक्ति की मौत अस्पताल में ही होती है उसके नेत्र लिए जाते हैं. इसके लिए हमें एक ग्रीफ काउंसलर की जरूरत थी, जिसे हमें एलबी प्रसाद इंस्टीट्यूट ने ट्रेंन्ड करके दिया.
44 ट्रांसप्लांट कर चुके हैं, 3 दूसरे अस्पतालों को दिया: उन्होंने बताया कि, हमें एक काउंसलर राज्य सरकार ने भी मुहैया कराया है. दोनों काउंसलर की मदद से हम रेगुलर बेसिस पर लोगों को मोटिवेट कराकर डोनेट कराते हैं. यहां पर हम ट्रांसप्लांटेशन करते हैं. अगस्त 2022 में इसकी शुरुआत हुई थी. तब से लेकर अभी तक हम लोगों ने 44 ट्रांसप्लांट कर चुके हैं, जबकि 3 से 4 आंखों को हम दूसरे मेडिकल कॉलेज को दे चुके हैं. हर मामले का हम रिकॉर्ड रखते हैं. इसमें पहले उसके साथ क्या था, बाद में क्या स्थिति है ये देखा जाता है. इसके साथ ही उसकी फोटो, वीडियो और उसको छुट्टी देने के सारे डॉक्यूमेंट्स को रखते हैं. एलवी प्रसाद के माध्यम से ये प्रॉपर तरीके से मॉनीटर किए जाते हैं. उनके स्टैंडर्ड से यह किसी भी तरीके से हम नहीं होना चाहिए.
एमओयू करने के बाद स्थिति में हुआ सुधार: उन्होंने बताया कि वाराणसी में पहले से कई संस्थान नेत्रदान कराते रहे हैं.आईबैंक बीएचयू में भी चलता था, लेकिन ऐसी सुविधाएं नहीं थीं. किसी का ध्यान इस पर नहीं था. कॉर्निया ट्रांसप्लांट यहां पर लोग पहले भी करते थे, लेकिन बीच में एकदम से बंद था. फिर जब से हमारा क्षेत्रीय नेत्र संस्थान बना और हमारा एमओयू हुआ तब से यहां पर व्यवस्थाएं ठीक हुई हैं. इससे काफी फायदा हुआ है, क्योंकि यहां पर गरीब वर्ग के लोग भी आते हैं. नेत्र दान को लेकर बहुत सी भ्रांतियां भी हैं. ऐसे में हमें अपने रिजल्ट्स पर भी ध्यान देना होता है, जिससे कि लोगों को इस प्रक्रिया पर भरोसा हो और लोग इसे अच्छा मानें.
सरकारी तौर पर यह पहला प्रॉपर वर्किंग आई बैंक: डाक्टर प्रशांत कहते हैं कि, हम चाहें तो बहुत सारी कार्निया बटोर सकते हैं मगर हम क्वालिटी आई और क्वालिटी पेशेंट पर अधिक ध्यान देते हैं, जिससे जरूरतमंद की मदद हो सके. यह कह सकते हैं कि बनारस में सरकारी तौर पर हमारा यह पहला प्रॉपर वर्किंग आई बैंक है. यहां पर नेत्रदान लेने के लिए एक व्यवस्थित ब्लाइंड रजिस्टर है. हम मरीजों की लिल्ट बनाते हैं कि कौन-कौन से लोगों को इसकी जरूरत है. उसमें हम ये देखते हैं कि एज और जरूरत कितनी है. इसके आधार पर प्रायरिटी बनाते हैं. ये कहने वाले लोग बहुत से हैं कि हम नेत्रदान करेंगे. मगर मृत्यु के बाद हालात ऐसे होते हैं कि परिवार वाले राजी नहीं होते हैं. ऐसे में ग्रीफ काउंसलर का काम उनको समझाना होता है.
नि:शुल्क ट्रांसप्लांट और दवाइयां भी सस्ती: उन्होंने बताया कि, हम यहां नि:शुल्क ट्रांसप्लांट किया जाता है और दवाइयां भी सस्ती दी जाती हैं. बहुत से गरीब लोग होते हैं, जिन्हें इसकी जरूरत होती है. जो व्यक्ति डोनेट कर रहा है और जिसको नेत्र मिला है उसको हम आगे नेत्रदान के लिए मोटिवेट करते हैं. हम लोग नेत्र को ट्रांस्प्लांट करके दिखाएंगे. बहुत से लोग वेटिंग में हैं. बहुत बड़ी लिस्ट है. लगभग एक लाख कॉर्निया की हर साल डिमांड है. मगर मुश्किल से 8000 से 10000 कॉर्निया ही मिल पाती है. क्वालिटी कॉर्निया नहीं मिल पाती है. अगर लोगों का भरोसा इससे उठ जाता है तो लोगों को इसका भरोसा दिलाना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में हम क्वालिटी ट्रांसप्लांट पर अधिक काम करते हैं, जिससे लोग नेत्रदान करने का काम बंद न करें.
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