भोपाल। इन मासूमों ने ना कोई गुनाह किया है और ना ही इन्हें सजा हुई है फिर भी जेल में रहने को मजबूर हैं. ये बच्चे अपने माता पिता के गुनाहों की सजा भुगत रहे हैं. जेल में बीत रहा बच्चों का बचपन कैसा होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं.एमपी की जेलों में इस समय 120 से ज्यादा मासूम रहने को मजबूर हैं. दरसअल अलग-अलग अपराधों के कारण जेल में सजा काट रहीं महिला कैदियों के साथ यह मासूम बच्चे रह रहे हैं. 5 साल तक ये बच्चे अपनी मां के साथ रह सकते हैं.
'5 साल की उम्र तक रह सकते हैं बच्चे'
मध्यप्रदेश में जेल मुख्यालय के उप महानिरीक्षक संजय पांडे का कहना है कि "एमपी की जेलों में अभी लगभग 120 से ज्यादा बच्चे रह रहे हैं. इन बच्चों ने कोई अपराध नहीं किया है बल्कि ये अपनी मां के किये अपराध की सजा भुगतने और अपना बचपन जेल में बिताने के लिये मजबूर हैं. जेल विभाग के नियमों के मुताबिक 5 साल तक की उम्र के बच्चों को अपराधी मां के साथ रखने का नियम है.
मां कर रहीं जेल में बच्चों की परवरिश
बच्चों की परवरिश की खातिर अपराधी मां के बच्चे मध्यप्रदेश की जेलों में बंद हैं. विभिन्न प्रकार के अपराध की सजा काट रहीं महिलाओं के साथ बच्चों को भी इसी परिवेश में रहकर मजबूरी में अपना बचपन बिताना पड़ रहा है. हालांकि प्रदेश की कई जेलों में तो एक से अधिक बच्चे हैं लेकिन जिन जेलों में एक-एक बच्चे हैं वहां ये बच्चे अकेलापन महसूस करते हैं.
120 से ज्यादा बच्चे हैं जेलों में
प्रदेश भर में 120 से ज्यादा बच्चे अपनी मां के साथ जेलों में रह रहे हैं. नियमों के मुताबिक 5 साल की उम्र तक परवरिश के कारण बच्चों को महिलाओं के साथ रहने का प्रावधान है. इसी प्रावधान के कारण बच्चे जेल में रहने के लिये मजबूर हैं. अब इन बच्चों का बचपन और उनके अधिकारों का हनन भले ही हो रहा है लेकिन सब नियमों से बंधे हैं. जेलों में रहने के लिये मजबूर इन बच्चों को दिन में तो खेलने के लिये मिल जाता है लेकिन शाम होते ही इन बच्चों को बैरक में मां के साथ भेज दिया जाता है.
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बच्चों को भेजा जाता है बाल कल्याण गृह
बच्चे के 5 साल के हो जाने के बाद यदि परिजन उसे नहीं ले जाते हैं या उनकी परवरिश करने वाला कोई नहीं है तो जेलर जरूरत पड़ने पर बच्चों की जेल में रहने की अवधि को एक साल तक बढ़ा सकते हैं. इसके बाद बच्चों को बाल कल्याण गृह भेज दिया जाता है. हालांकि प्रदेश की कुछ जेलों में ऐसे बच्चों के लिये पढ़ाई समेत कुछ सुविधायें जुटाने के दावे किये जाते हैं लेकिन जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के होने से सारी व्यवस्थाओं के दावों की पोल खुल जाती है. इन नियमों के आगे सरकार, जेल विभाग समेत बाल संरक्षण के लिये कार्य कर रहे लोग भी मजबूर हैं.