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हृदय की बीमारी से पीड़ित थे 3 बच्चे, भगवान बने एम्स भोपाल के डॉक्टर, दिया नया जीवन - Bhopal AIIMS Doctors SAVED 3 CHILD

भोपाल एम्स में जन्मजात ह्रदय रोग से पीड़ित 3 बच्चों का कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. भूषण शाह ने इलाज किया. जहां एक 2 माह की बच्ची का डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर नया जीवन दिया. वहीं 11 माह के एक बच्चे का डॉक्टरों ने बिना ऑपरेशन किए जान बचाई. तीसरे मामले में एक बच्चे के दोनों हार्ट चेंबर के बीच छेद था जिसका सफलतापूर्वक इलाज किया गया.

BHOPAL AIIMS DOCTORS SAVED 3 CHILD
अपने अपने परिजनों की गोद में पीड़ित बच्चे (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jun 4, 2024, 5:01 PM IST

भोपाल। जटिल बीमारियों के इलाज में एम्स भोपाल नित नए कीर्तिमान रच रहा है. यहां नवजात बच्चों से लेकर बुजुर्गाें तक को गंभीर बीमारियों से निजात मिल रही है. ताजा मामला ह्रदय रोग से संबंधित है जिसमें जन्मजात ह्रदय रोग से पीड़ित तीन बच्चों के लिए एम्स के डॉक्टर भगवान बन गए और उनको एक बार फिर से जीवनदान दिया. हालांकि इसके लिए कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. भूषण शाह और उनकी टीम को काफी मेहनत करनी पड़ी.

दो माह के बच्ची की जुड़ी थी धमनियां

सबसे पहले दो माह की बच्ची का आपरेशन डॉक्टरों ने किया. यह बच्ची जन्मजात ह्रदय रोग से पीड़ित थी. इसके ह्रदय की दोनों धमनियां जुड़ी हुई थीं. कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. भूषण शाह ने इकोकार्डियोग्राफी की मदद से कमर की एक नस के माध्यम से नीतिनोल डिवाइस के द्वारा बिना सर्जरी के इस चैनल को बंद किया. इस प्रक्रिया के बाद बच्ची मां का दूध भी पीने लगी और हार्ट फेलियर के लक्षण भी कम होने लगे. केवल तीन दिनों के बाद ही उसे अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई.

हार्ट फेल होने की बन चुकी थी स्थिति

डाक्टरों ने बताया कि पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस (पीडीए) हृदय की जन्मजात खराबी है, जो कि तब होती है जब जन्म के समय भ्रूण की पल्मोनरी धमनी और एओर्टा के बीच का सामान्य चैनल बंद नहीं होता. दो माह की बच्ची का हार्ट फेल होने की स्थिति में भी पहुंच चुका था. ऐसे में ऑपरेशन करना लगभग नामुमकिन था, क्योंकि बच्ची की जान भी जा सकती थी. लेकिन हमने बच्ची के परिजनों को भरोसे में लेकर यह रिस्क लिया और सफल भी हुए.

बड़े अस्पतालों में चक्कर लगाने के बाद एम्स में मिला नया जीवन

इसी तरह एक 11 माह के बच्चे की जटिल हार्ट सर्जरी की गई. इस बच्चे को उसके परिजन कई बड़े अस्पतालों में दिखा चुके थे, लेकिन बच्चे की कम उम्र को देखते हुए डॉक्टरों ने उसके इलाज से मना कर दिया था. ऐसे में इलाज नहीं मिलने के कारण परिजन बच्चे को लेकर एम्स भोपाल आए. यहां डॉक्टरों ने बिना ऑपरेशन किए नीतिनोल डिवाइस के माध्यम से बच्चे को जीवन दान दिया.

ये भी पढ़ें:

क्या किसी भी इंसान के हूबहू अंग बनाना संभव है, एम्स भोपाल में होगा चमत्कार

भोपाल एम्स में किया गया पहला किडनी ट्रांसप्लांट, मरीज ठीक हुआ और किडनी भी अच्छे से कर रही काम

तीसरे मामले में 3 वर्षीय बच्चे के दोनों हार्ट चेंबर के बीच एक छेद था. जिस कारण हृदय से ऑक्सीजन युक्त रक्त पूरे शरीर में नहीं पहुंच पा रहा था. इसे वीएसडी या वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष कहते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जब दिल के दो निचले कक्षों के बीच की दीवार में एक छेद हो जाता है. नीतिनोल डिवाइस से इस छेद को बंद करने में हृदय की गति धीमी होने की सम्भावना बनी रहती है. लेकिन भूषण शाह ने उपयुक्त आकार के नीतिनोल डिवाइस को बिना सर्जरी के धमनी के माध्यम से कुशलता पूर्वक हर्ट चेंबर तक पहुंचाकर उस छेद को बंद कर दिया. जिससे बच्चे को एक नया जीवन मिला. तीनों बच्चों का इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत नि:शुल्क किया गया.

भोपाल। जटिल बीमारियों के इलाज में एम्स भोपाल नित नए कीर्तिमान रच रहा है. यहां नवजात बच्चों से लेकर बुजुर्गाें तक को गंभीर बीमारियों से निजात मिल रही है. ताजा मामला ह्रदय रोग से संबंधित है जिसमें जन्मजात ह्रदय रोग से पीड़ित तीन बच्चों के लिए एम्स के डॉक्टर भगवान बन गए और उनको एक बार फिर से जीवनदान दिया. हालांकि इसके लिए कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. भूषण शाह और उनकी टीम को काफी मेहनत करनी पड़ी.

दो माह के बच्ची की जुड़ी थी धमनियां

सबसे पहले दो माह की बच्ची का आपरेशन डॉक्टरों ने किया. यह बच्ची जन्मजात ह्रदय रोग से पीड़ित थी. इसके ह्रदय की दोनों धमनियां जुड़ी हुई थीं. कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. भूषण शाह ने इकोकार्डियोग्राफी की मदद से कमर की एक नस के माध्यम से नीतिनोल डिवाइस के द्वारा बिना सर्जरी के इस चैनल को बंद किया. इस प्रक्रिया के बाद बच्ची मां का दूध भी पीने लगी और हार्ट फेलियर के लक्षण भी कम होने लगे. केवल तीन दिनों के बाद ही उसे अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई.

हार्ट फेल होने की बन चुकी थी स्थिति

डाक्टरों ने बताया कि पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस (पीडीए) हृदय की जन्मजात खराबी है, जो कि तब होती है जब जन्म के समय भ्रूण की पल्मोनरी धमनी और एओर्टा के बीच का सामान्य चैनल बंद नहीं होता. दो माह की बच्ची का हार्ट फेल होने की स्थिति में भी पहुंच चुका था. ऐसे में ऑपरेशन करना लगभग नामुमकिन था, क्योंकि बच्ची की जान भी जा सकती थी. लेकिन हमने बच्ची के परिजनों को भरोसे में लेकर यह रिस्क लिया और सफल भी हुए.

बड़े अस्पतालों में चक्कर लगाने के बाद एम्स में मिला नया जीवन

इसी तरह एक 11 माह के बच्चे की जटिल हार्ट सर्जरी की गई. इस बच्चे को उसके परिजन कई बड़े अस्पतालों में दिखा चुके थे, लेकिन बच्चे की कम उम्र को देखते हुए डॉक्टरों ने उसके इलाज से मना कर दिया था. ऐसे में इलाज नहीं मिलने के कारण परिजन बच्चे को लेकर एम्स भोपाल आए. यहां डॉक्टरों ने बिना ऑपरेशन किए नीतिनोल डिवाइस के माध्यम से बच्चे को जीवन दान दिया.

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तीसरे मामले में 3 वर्षीय बच्चे के दोनों हार्ट चेंबर के बीच एक छेद था. जिस कारण हृदय से ऑक्सीजन युक्त रक्त पूरे शरीर में नहीं पहुंच पा रहा था. इसे वीएसडी या वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष कहते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जब दिल के दो निचले कक्षों के बीच की दीवार में एक छेद हो जाता है. नीतिनोल डिवाइस से इस छेद को बंद करने में हृदय की गति धीमी होने की सम्भावना बनी रहती है. लेकिन भूषण शाह ने उपयुक्त आकार के नीतिनोल डिवाइस को बिना सर्जरी के धमनी के माध्यम से कुशलता पूर्वक हर्ट चेंबर तक पहुंचाकर उस छेद को बंद कर दिया. जिससे बच्चे को एक नया जीवन मिला. तीनों बच्चों का इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत नि:शुल्क किया गया.

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