भिलाई: इस बार होली में लोगों को केमिकल युक्त गुलालों से बचाने और हर्बल रंगों को बढ़ावा देने के लिए स्व सहायता समूह की महिलाओं ने पहल की है. समूह की महिलाएं फूलों, फलों, पत्तों, सब्जियों और आरारोट से हर्बल रंग तैयार कर रही हैं. "देते हैं हम वचन, खरे उत्तरेंगे हमारे रंग" के स्लोगन के साथ हर्बल रंग को मार्केट में उतारा जा रहा है.
महिला स्व सहायता समूह की पूनम साहू ने बताया, "हमारे पास पूजा एक्सप्रेस की फूल वाली गाड़ी आती है. जिसके जरिए कई मंदिरों से फूलों को एकत्र किया जता है. प्राकृतिक रंग बनाने के लिए महिलाएं पिछले डेढ़ महीने से जुटी हुई हैं. जिसके लिए सालभर गुलाब को एकत्र कर सुखाया गया था, अब इसका ही रंग बनाया जा रहा है. अभी गुलाल को पैक किया जा रहा है. होली से पहले ही 150 किलो हर्बल गुलाल का आर्डर तैयार कर चुके हैं."
"हर्बल गुलाल का आर्डर इस बार पिछले साल से अधिक आया है. बाजार में गुलाल की बिक्री के लिए अभी ऑर्डर आ ही रहे हैं. महिला स्व सहायता समूह ने अब तक 200 किलो तक आर्डर पूरे किए हैं." - पूनम साहू, सदस्य, महिला स्व सहायता समूह
ऐसे तैयार कर रहे अलग अलग हर्बल रंग: स्व सहायता समूह की महिलाओं ने बताया, "गुलाल बनाने के लिए महिला समूह हरा धनिया, पालक, नीम पत्ती का इस्तेमाल करते हैं. लाल रंग के लिए चुकंदर, पीले रंग और नारंगी रंग के लिए गेंदे का फूल, लाल और कत्था रंग के लिए पलाश के फूलों को उबालकर इस्तेमाल कर रहे हैं."
"फूल के साथ चुकंदर, हल्दी और अमरूद की हरी पतियों को भी सुजाकर पीसा जाता है. एक किलो गुलाल बनाने में करीब 50 रुपए खर्च आ रहा है. हर्बल गुलाल मार्केट में मिलने वाले केमिकल युक्त गुलाल से सस्ता भी है." - अनामिका सिंह सार्वा, सदस्य, महिला स्व सहायता समूह
आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं: दरअसल, कोविड के बाद से छत्तीसगढ़ में लोग हर्बल गुलाल खरीदना ज्यादा पसंद कर रहे हैं, ताकि त्वचा को नुकसान न पहुंचे. पिछले कुछ सालों में शत प्रतिशत केमिकल फ्री हर्बल गुलाल की मांग बढ़ी है. इससे स्व सहायता समूह की महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिल रहा है और आमदनी भी हो रही है.