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परंपरागत कार्य से पेट पालना हुआ मुश्किल, मिट्टी की कलाकृतियों से दौड़ी जीवन की 'गाड़ी' - traditional business of Pottery

भरतपुर के तोताराम पारंपरिक व्यवसाय छोड़कर कलात्मक, आकर्षक व रंगीन कलाकृतियों के जरिए परिवार का भरन-पोषण कर रहे हैं. तोताराम इससे न केवल अच्छी आमदनी कर रहे हैं, बल्कि गांव के अन्य लोगों को भी प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना रहे हैं. पढ़िए ये रिपोर्ट...

traditional business of Pottery
traditional business of Pottery
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 27, 2024, 10:11 PM IST

भरतपुर के तोताराम बना रहे मिट्टी की रंगीन कलाकृतियां

भरतपुर. जिले के प्रजापत समाज के अधिकतर लोग आज भी अपनी पुश्तैनी मिट्टी के दीपक, कुल्हड़ और बर्तन बनाने के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. यही वजह है कि समाज के लोग आज भी आर्थिक मुश्किलों से गुजर रहे हैं, लेकिन जिले के बरौली रान निवासी तोताराम ने पुश्तैनी और परंपरागत व्यवसाय से हटकर कलात्मक, आकर्षक व रंगीन कलाकृतियों का कार्य शुरू किया है. अब ये कलाकृतियां न केवल तोताराम बल्कि कई परिवारों के जीवन में खुशियों के रंग भर रही हैं. आर्थिक तंगी से जूझने वाले तोताराम को अब इन कलाकृतियों से अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है. साथ ही तोताराम समाज की अन्य महिला-पुरुषों को भी प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना रहे हैं.

परंपरागत कार्य से परिवार पालना मुश्किल : तोताराम प्रजापत और उनकी पत्नी गोला देवी ने बताया कि पहले वो मिट्टी के मटके, दीपक, बर्तन बनाने का कार्य करते थे. डिस्पोजल पत्तल, गिलास, दोने का प्रचलन बढ़ने के साथ ही पुश्तैनी कार्य ठप पड़ गया. हालात ये हो गए कि मिट्टी के पुश्तैनी कार्य से परिवार पालना मुश्किल हो गया था. बच्चों के पालन पोषण और घर चलाने की चिंता सताती रहती थी.

पढ़ें. Special : लकड़ी का एक घर जो बयां करता है अतीत की कहानियां, अद्भुत है राजस्थान की कावड़ कला

फरीदाबाद से लिया प्रशिक्षण : तोताराम ने बताया कि फरीदाबाद में उनके जीजा कलात्मक बर्तन व सजावटी सामान बनाने का कार्य करते हैं. उनके कहने पर वो फरीदाबाद गए और तीन साल तक कलात्मक कलाकृतियां बनाना, उनमें रंग भरना, उन्हें पूरी तरह तैयार करना सीखा. इसके बाद अपने नदबई क्षेत्र स्थित गांव बरौलीरान लौटकर कलात्मक कलाकृतियां तैयार करना शुरू किया. पहले अपनी पत्नी गोला को कलात्मक कलाकृतियां तैयार करना सिखाया, इसके बाद दोनों मिलकर इसे तैयार करने लगे.

तोताराम और उसकी पत्नी
तोताराम और उसकी पत्नी

कमा रहे अच्छा मुनाफा : तोताराम और गोला देवी ने बताया कि परंपरागत कार्य से घर चलाना मुश्किल था, लेकिन अब कलात्मक कलाकृतियों से अच्छी आमदनी होने लगी है. कई बार मेलों में भी स्टॉल लगाकर बिक्री करते हैं, जहां लोगों को कलाकृतियां बहुत पसंद आती हैं. फिलहाल पुश्तैनी कार्य की तुलना में कलात्मक कलाकृतियों से अच्छा मुनाफा हो जाता है.

पढ़ें. राजस्थान का 'बेर ग्राम' : 25 साल से किसानों की झोली भर रहा बेर, कई राज्यों में डिमांड

महिलाओं को बना रहे आत्मनिर्भर : तोताराम ने बताया कि कलात्मक कलाकृतियों की अच्छी बिक्री को देखते हुए प्रजापत समाज के अन्य लोगों में भी रुचि जागने लगी है. अब कई महिला-पुरुष कलाकृतियों का प्रशिक्षण लेने आते हैं. गांव की कई महिलाएं तो सीखकर कलाकृतियां तैयार भी करने लगीं हैं. उनकी भी अब अच्छी बिक्री होने लगी है. तोताराम ने बताया कि गांव की करीब 11-12 महिलाओं ने मिलकर 'राधारानी' नाम से एक संगठन भी बना लिया है. राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद से जुड़कर सरकार की ओर से समूह को आर्थिक मदद भी मिल जाती है, जिससे संगठन को कार्य करने में सहायता मिल जाती है.

भरतपुर के तोताराम बना रहे मिट्टी की रंगीन कलाकृतियां

भरतपुर. जिले के प्रजापत समाज के अधिकतर लोग आज भी अपनी पुश्तैनी मिट्टी के दीपक, कुल्हड़ और बर्तन बनाने के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. यही वजह है कि समाज के लोग आज भी आर्थिक मुश्किलों से गुजर रहे हैं, लेकिन जिले के बरौली रान निवासी तोताराम ने पुश्तैनी और परंपरागत व्यवसाय से हटकर कलात्मक, आकर्षक व रंगीन कलाकृतियों का कार्य शुरू किया है. अब ये कलाकृतियां न केवल तोताराम बल्कि कई परिवारों के जीवन में खुशियों के रंग भर रही हैं. आर्थिक तंगी से जूझने वाले तोताराम को अब इन कलाकृतियों से अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है. साथ ही तोताराम समाज की अन्य महिला-पुरुषों को भी प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना रहे हैं.

परंपरागत कार्य से परिवार पालना मुश्किल : तोताराम प्रजापत और उनकी पत्नी गोला देवी ने बताया कि पहले वो मिट्टी के मटके, दीपक, बर्तन बनाने का कार्य करते थे. डिस्पोजल पत्तल, गिलास, दोने का प्रचलन बढ़ने के साथ ही पुश्तैनी कार्य ठप पड़ गया. हालात ये हो गए कि मिट्टी के पुश्तैनी कार्य से परिवार पालना मुश्किल हो गया था. बच्चों के पालन पोषण और घर चलाने की चिंता सताती रहती थी.

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फरीदाबाद से लिया प्रशिक्षण : तोताराम ने बताया कि फरीदाबाद में उनके जीजा कलात्मक बर्तन व सजावटी सामान बनाने का कार्य करते हैं. उनके कहने पर वो फरीदाबाद गए और तीन साल तक कलात्मक कलाकृतियां बनाना, उनमें रंग भरना, उन्हें पूरी तरह तैयार करना सीखा. इसके बाद अपने नदबई क्षेत्र स्थित गांव बरौलीरान लौटकर कलात्मक कलाकृतियां तैयार करना शुरू किया. पहले अपनी पत्नी गोला को कलात्मक कलाकृतियां तैयार करना सिखाया, इसके बाद दोनों मिलकर इसे तैयार करने लगे.

तोताराम और उसकी पत्नी
तोताराम और उसकी पत्नी

कमा रहे अच्छा मुनाफा : तोताराम और गोला देवी ने बताया कि परंपरागत कार्य से घर चलाना मुश्किल था, लेकिन अब कलात्मक कलाकृतियों से अच्छी आमदनी होने लगी है. कई बार मेलों में भी स्टॉल लगाकर बिक्री करते हैं, जहां लोगों को कलाकृतियां बहुत पसंद आती हैं. फिलहाल पुश्तैनी कार्य की तुलना में कलात्मक कलाकृतियों से अच्छा मुनाफा हो जाता है.

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महिलाओं को बना रहे आत्मनिर्भर : तोताराम ने बताया कि कलात्मक कलाकृतियों की अच्छी बिक्री को देखते हुए प्रजापत समाज के अन्य लोगों में भी रुचि जागने लगी है. अब कई महिला-पुरुष कलाकृतियों का प्रशिक्षण लेने आते हैं. गांव की कई महिलाएं तो सीखकर कलाकृतियां तैयार भी करने लगीं हैं. उनकी भी अब अच्छी बिक्री होने लगी है. तोताराम ने बताया कि गांव की करीब 11-12 महिलाओं ने मिलकर 'राधारानी' नाम से एक संगठन भी बना लिया है. राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद से जुड़कर सरकार की ओर से समूह को आर्थिक मदद भी मिल जाती है, जिससे संगठन को कार्य करने में सहायता मिल जाती है.

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