लखनऊः लगभग 118 साल पहले देश की सरजमीं पर एक ऐसा मसीहा पैदा हुआ, जो जीवन भर किसानों के लिए सड़क से लेकर सदन तक लड़ता (Chaudhary Charan Singh struggled for farmers) रहा. किसानों की मुखर आवाज बनने वाले इस नेता ने देश की राजनीति के शिखर पर भी नाम रोशन किया. किसानों ने अपने चहेते 'किसान मसीहा' की उपाधि दी थी. इस शख्सियत का नाम है चौधरी चरण सिंह. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की किसान पूजा करते हैं और आज भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न देकर अपने नेता में किसानों की आस्था और बढ़ा दी है.
चौधरी चरण सिंह की जीवन यात्रा: किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह का जन्म मेरठ कमिश्नरी के नूरपुर गांव में हुआ था. 23 दिसंबर 1902 को पैदा हुए चौधरी चरण सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. जीवन भर उन्होंने किसानों के शोषण के खिलाफ संघर्ष किया. भारतीय राजनीति में भी चौधरी चरण सिंह ने अहम योगदान दिया है. उन्होंने अपनी योग्यता और कार्यकुशलता के बल पर उत्तर प्रदेश के मंत्री, मुख्यमंत्री और भारत सरकार के गृहमंत्री, वित्त मंत्री, उप प्रधानमंत्री के बाद प्रधानमंत्री के पद को भी सुशोभित किया. 29 मई 1987 को यह सितारा पंचतत्व में विलीन हो गया. अब वे भारत रत्न स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के नाम से जाने जाएंगे.
इस तरह संघर्ष कर हासिल किया सत्ता का शिखर: कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ था. उससे प्रभावित होकर चौधरी चरण सिंह ने राजनीति में कदम रखा. 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो उन्होंने हिंडन नदी पर नमक बनाकर बापू का साथ दिया. इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. जमीदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था, उसे तैयार किया. 1952 को जमीदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला.
लेखपाल का पद बनाया: लेखपाल का पद भी चौधरी चरण सिंह ने ही बनाया था. उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून पारित किया. 1967 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने 1968 में इस्तीफा दे दिया, लेकिन 1970 में फिर मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद सरकार में गृह मंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. 1979 में वित्त मंत्री और उप प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की. 1979 में वे देश के प्रधानमंत्री बने.
अहम योजनाओं का किया था आगाज: किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह ने भूमि संरक्षण कानून, चकबंदी कानून, जमीदारी उन्मूलन विधेयक, ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना, काम के बदले अनाज और अंत्योदय जैसी योजनाओं का शुभारंभ किया था. उन्हें जातिवाद का घोर विरोधी माना जाता था और राष्ट्रहित को हमेशा सर्वोपरि रखने वाला. किसानों, मजदूरों और गरीबों के उत्थान के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया. किसानों के लिए वे कहा करते थे कि 'जो जमीन को जोते बोए वो जमीन का मालिक है. पेशे से वकील और राजनीतिक कार्यकर्ता रहे चौधरी साहब की शान इतनी थी कि 23 दिसंबर यानी चौधरी साहब के जन्मदिन को किसान दिवस के तौर पर मनाया जाता है. यह किसान दिवस सरकारी बाद में हुआ पहले जनता ने ही इस दिन को खास बनाने की घोषणा कर दी थी.
नेहरू से मतभेद के बाद छोड़ी थी कांग्रेस: देश आजाद हुआ तो चौधरी चरण सिंह की राजनीति भी रंग लाने लगी. यूनाइटेड प्रोविंस से लेकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनावों में लगातार चुने गए. उस दौर के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों की परिषद में उनका पद और कद भी बढ़ता गया. मगर 1967 के आते-आते उनका पंडित जवाहर लाल नेहरू से मतभेद हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भारतीय क्रांति दल का गठन किया. जनाधार का आलम यह था कि कुछ दिन के अंदर ही यूपी में पहली गैर कांग्रेसी सरकार गठित की. इसके बाद जब यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए तो जनता ने अभूतपूर्व समर्थन के साथ विजयी बनाकर यूपी की कुर्सी पर काबिज कर दिया.
जनता पार्टी सरकार में पहले गृहमंत्री फिर प्रधानमंत्री बने: लंबे वक्त तक उत्तर प्रदेश के सीएम के रूप में किसान व गरीब हितैषी कामों से चौधरी साहब यूपी ही नहीं देश भर के किसानों के दिलों में बसने वाले नेता बन गए. 1975 आते-आते इंदिरा गांधी ने पीएम की कुर्सी पर खतरा देख देश पर इमरजेंसी थोप दी. चौधरी साहब को इस तानाशाही के विरोधी होने के नाते लोकनायक जयप्रकाश नारायण और सभी लोकतंत्र सेनानियों के साथ जेल में डाल दिया. दो साल संघर्ष के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए. इंदिरा गांधी की गद्दी चली गई और कई दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी ने सरकार गठित की.
इस सरकार में चौधरी साहब देश के गृहमंत्री बने. लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था. इसी दौरान कांग्रेस चौधरी साहब को पीएम पद के लिए समर्थन के लिए राजी हो गई. अंतत: देश के इतिहास में पहली बार किसानों का कोई नेता पीएम की गद्दी पर बैठा. उनका कार्यकाल कांग्रेस की धोखाधड़ी की वजह से कुछ महीने का ही रहा. अब तक उनकी उम्र 80 के करीब पहुंच चुकी थी. उसके बाद राजनीतिक गतिविधियां कम होने लगीं. इसी बीच 1987 के मई महीने की 29 तारीख को वह दिन आया जब इस किसान नेता ने अपने प्राण त्याग दिए. उनकी मृत्यु के बाद अब भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न सम्मान देकर नवाजा है.
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